अफगानिस्तान से सेना की वापसी की समयसीमा बढ़ाने पर बाइडन को नहीं मना सके जी-7 नेता

Last Updated 25 Aug 2021 07:02:30 PM IST

राष्ट्रपति जो बाइडन के अफगानिस्तान से 31 अगस्त तक सैनिकों की वापसी पर अड़े रहने को लेकर अमेरिका का अपने कुछ करीबी सहयोगियों से टकराव हुआ क्योंकि इस समयसीमा के बाद तालिबान के शासन के बीच, लोगों को युद्धग्रस्त देश से निकालने के प्रयास बंद हो जाएंगे।


अफगानिस्तान से सेना की वापसी की समयसीमा बढ़ाने पर बाइडन को नहीं मना सके जी-7 नेता

बाइडन ने जी7 के नेताओं के साथ मंगलवार को वर्चुअल बातचीत में इस बार पर जोर दिया कि अमेरिका और उसके करीबी सहयोगी अफगानिस्तान और तालिबान पर भविष्य की कार्रवाई में ‘‘एक साथ खड़े रहेंगे’’। हालांकि उन्होंने वहां से लोगों को निकालने के लिए और समय देने के उनके आग्रह को ठुकरा दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति इस बात पर अड़े रहे कि जी-7 नेताओं की अपीलों को मानने पर आतंकवादी हमलों का खतरा अधिक है। काबुल हवाईअड्डे पर अब भी अमेरिका के 5,800 सैनिक मौजूद हैं।

ब्रिटेन और अन्य सहयोगी देशों ने बाइडन से अमेरिकी सेना को काबुल हवाईअड्डे पर और अधिक वक्त तक रखने का अनुरोध किया था। सहयोगी देशों के अधिकारियों ने कहा था कि कोई भी देश अपने सभी नागरिकों को निकाल नहीं पाया है।

31 अगस्त के बाद भी हवाईअड्डे पर सैनिकों की मौजूदगी बनाए रखने की वकालत करते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा, ‘‘हम अंतिम क्षण तक प्रयास करेंगे।’’ जॉनसन ने माना कि वह मंगलवार को हुई वार्ता में अमेरिकी सेना की मौजूदगी बनाए रखने के लिए बाइडन को मना नहीं पाए।

फ्रांस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों ने 31 अगस्त की समयसीमा बढ़ाने पर जोर दिया लेकिन वह अमेरिका के फैसले को स्वीकार करेंगे।



आंशिक रूप से एकजुटता दिखाते हुए जी-7 नेता तालिबान के नेतृत्व वाली अफगान सरकार को मान्यता देने और उसके साथ काम करने की शर्तों पर राजी हो गए लेकिन वे इस बात को लेकर निराश हुए कि बाइडन को काबुल हवाईअड्डे पर सैनिकों की मौजूदगी की समयसीमा बढ़ाने पर राजी नहीं किया जा सका। सैनिकों की मौजूदगी की समयसीमा बढ़ाने पर यह सुनिश्चित हो पाता कि हजारों अमेरिकी, यूरोपीय, अन्य देशों के नागरिक और वे अफगान नागरिक बचाये जा सकें जो खतरे में हैं।

ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘‘अभी हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि हमारे नागरिकों और उन अफगान नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके जिन्होंने पिछले 20 वर्षों के दौरान हमारा सहयोग किया।’’

उन्होंने कहा कि तालिबान को उसकी बातों से नहीं बल्कि उसके काम से आंका जाएगा। साथ ही उन्होंने उन चेतावनियों को दोहराया कि तालिबान सख्त इस्लामिक सरकार न चलाए जैसा कि उसने 1996 से 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले हमले के जरिये उन्हें खदेडे जाने तक चलायी थी।

नेताओं ने कहा, ‘‘हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि तालिबान को आतंकवाद रोकने, मानवाधिकारों खासतौर से महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यकों और अफगानिस्तान में समावेशी राजनीतिक सरकार चलाने पर उनके कामों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।’’

जी-7 नेताओं की बैठक में यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वोन देर लेयेन, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस और नाटो महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग भी शामिल हुए।

एपी
वाशिंगटन


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment