अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल को अभी केवल एक महीना हुआ है, लेकिन इसी अवधि में लगता है कि दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है।
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इस नये कार्यकाल की शुरुआत में ट्रंप प्रशासन ने जो फैसले किए हैं उससे अमेरिका की घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नक्शा बदल रहा है। सब कुछ इतनी तेज रफ्तार से हो रहा है कि अमेरिका के मित्र और सहयोगी देश सकते में हैं। विरोधी देश भी आशंका के साथ ट्रंप के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।
पहले कार्यकाल की तुलना में इस बार ट्रंप के पास एक मजबूत कैबिनेट या टीम है। उन्होंने जिन लोगों को सहयोगी के रूप में चुना है उन्हें लेकर काफी विवाद की स्थिति रही। पहले यह लग रहा था कि राष्ट्रीय खुफिया प्रमुख के रूप में तुलसी गबार्ड और संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) के प्रमुख के रूप में काश पटेल की नियुक्ति को सीनेट खारिज कर सकती है। इन सारे विरोध के बावजूद इन दोनों व्यक्तियों की नियुक्ति पर सीनेट की मुहर लग गई। यह कहा जा सकता है कि ट्रंप की विदेश नीति के निर्धारण में तुलसी गबार्ड की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी। तुलसी बार-बार यह कह चुकी हैं कि ट्रंप शांति के पक्षधर राष्ट्रपति होंगे। वह नया युद्ध शुरू करने के बजाय मौजूद संघर्ष को समाप्त करने के लिए निर्णायक पहल करेंगे। यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए अमेरिका रूस के बीच वार्ता भी इसी लक्ष्य से प्रेरित है। इस संदर्भ में ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को लेकर जैसा उपहास किया हुआ वह उनकी चिर-परिचित शैली के अनुरूप है। लेकिन यह निश्चित है कि शुरु आती दौर में ही ट्रंप ने अपनी विदेश नीति के रूपरेखा तय कर दी है।
यदि यह जारी रही तो दुनिया पहले की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण और स्थिरता वाली होगी। आश्चर्यजनक रूप से ट्रंप चीन के खिलाफ भी संयत रवैया अपनाए हुए हैं। अमेरिका में शक्तिशाली से सैन्य उद्योग और हथियारों के कारोबारी ट्रंप की नीतियों के संदर्भ में अपने नफा-नुकसान का लेखा-जोखा ले रहे हैं। वे ट्रंप को अपना रास्ता बदलने के लिए बाध्य कर सकेंगे या नहीं यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। घरेलू मोच्रे पर हालात दुरुस्त करने की जिम्मेदारी काश पटेल पर है। उन्हें डोनाल्ड ट्रंप का बाहुबली माना जाता है। उनकी तुलना अभी से एफबीआई के ‘सर्वशक्तिमान’ प्रमुख एडगर हूबर से की जा रही है। हूबर करीब 50 वर्षो तक खुफिया एजेंसी के प्रमुख रहे थे। उनके कार्यकाल के दौरान 6 राष्ट्रपति आए और गए। हूबर इतने शक्तिशाली थे कि राष्ट्रपति भी उनसे खौफ खाते थे। काश जैसे कम उम्र और कम अनुभवी व्यक्ति की तुलना हूबर से किया जाना बहुत कुछ बयां करता है। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि रिपब्लिकन पार्टी के असंतुष्ट नेता भी काश पटेल से भयभीत हैं। इतना ही नहीं सीएनएन और वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया संस्थानों के नामी-गिरामी पत्रकार भी चिंतित हैं। काश पटेल पहले ही यह ऐलान कर चुके हैं कि ट्रंप के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की खबर ली जाएगी। लेकिन भारत के लिए काश की नियुक्ति एक अच्छी बात है। जेहादी और खालिस्तान समर्थक अमेरिका को सुरक्षित पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। गुरपतवंत सिंह पन्नू जैसे आतंकवादियों को नया ठिकाना ढूंढना होगा।
भारत की घरेलू राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप के संबंध में ट्रंप के हालिया बयानों को लेकर राजनीतिक भूचाल सा आ गया है। एलन मस्क की अगवाई वाले सरकार दक्षता विभाग (डीओजीई) ने भारत की चुनाव प्रक्रिया में दखलअंदाजी करने के लिए करीब 180 करोड रु पये का आवंटन किए जाने का खुलासा किया है। ट्रंप ने यह चौंकाने वाला बयान दिया कि यह धनराशि मोदी के बजाय किसी अन्य व्यक्ति को चुनाव जिताने के लिए थी।
ट्रंप के इस बयान का प्रतिवाद करने के लिए अमेरिका की मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही हैं। लेकिन ट्रंप बार-बार अपने इस बयान को दोहरा रहे हैं। ट्रंप ने यह भी कहा कि बांग्लादेश की राजनीति को प्रभावित करने के लिए करीब 3 करोड़ डॉलर निर्धारित किए गए। बांग्लादेश में क्या हुआ यह दुनिया के सामने है। विदेशी पैसे के बलबूते तीसरी दुनिया के देशों में अमेरिका ऐसा खेल खेलता रहा है। लगता है ट्रंप टीम इस पर विराम लगाना चाहती है।
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