वासंतिक नवरात्र : सप्तमं कालरात्रीति

Last Updated 02 Oct 2022 06:46:11 AM IST

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।


वासंतिक नवरात्र : सप्तमं कालरात्रीति

मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है।

सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रrाण्ड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के ास-प्रास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ-गदहा है।

ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं।

दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकरी’ भी है। 

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रर’ चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

सहारा न्यूज ब्यूरो


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