गांधी पुण्यतिथि : एक नहीं, हजारों बार मरे हैं गांधी

Last Updated 30 Jan 2025 01:15:22 PM IST

शारीरिक रूप से 30 जनवरी 1948 को गांधी की गोली से देह से आत्मा में तब्दील हो गए थे मगर सच कहें तो हम ने गांधी को उसके बाद भी एक बार नहीं बार-बार मारा है, हजार बार मारा है।


गांधी पुण्यतिथि : एक नहीं, हजारों बार मरे हैं गांधी

देश के विभाजन के समय मारा एक लंबे कालखंड तक चले मजहबी दंगों में मारा, 1984 में मारा गोधरा में मारा,  और न जाने कहां-कहां मारा बस फर्क इतना है कि इन सब दिनों में 30 जनवरी वाली कैलेंडर की तारीख नहीं थी और आज वही कैलेंडर वाली 30 जनवरी है, जिसे गांधी की हत्या का कल दिन माना जाता है।

बेशक 30 जनवरी  गांधी की शहादत को नमन करने का दिन है उनकी असमय  मृत्यु पर रोने का दिन है परंतु  उनके बताए रास्ते पर चलने के संकल्प दिन है या नहीं इस पर बड़ी बहस की संभावना आज भी है। गांधी ने देश को क्या दिया या क्या नहीं दिया? या गांधी देश के लिए क्या थे, अथवा उनके आंदोलन, कार्य, सिद्वांत, जीवन शैली, उनके लिए गए फैसले, भारत विभाजन पर उनकी जिद, मुस्लिमों को इस देश में रहने देने की जिद , उस पर भी पाकिस्तान को 200 करोड़ रु पये और एक बड़ा भू-भाग देने पर कई बड़े नेताओं से अलग सोच व राय ही नहीं अपितु अपनी ही मनमर्जी करना मत मतांतर का विषय हो सकता है। उनके अनुयायियों व विरोधियों मे कमोबेश इन मुद्दों पर गांधी के जीते जी ही तलवारें नहीं खिंचती रही वरन उनके जाने के बाद भी खिंचती रही हैं और हो सकता है तब तक खिंची रहे जब तक गांधी का नाम इस देश व दुनिया में रहेगा। अपने लंबे राजनैतिक जीवन में गांधी ने कितना सही या कितना गलत किया इस पर बहस या चिंतन करना गलत भले ही न हो पर उनकी पुण्य तिथि पर शायद यह उचित न हो। आज उनके जाने के बाद यदि गोडसे जैसे हत्यारे के नाम पर कुछ लोग जो राजनीति करते रहे हैं वह बेहद चिंता का सबब है। कोई भी कानून किसी हत्यारे को निरपराध नहीं मानेगा।

आप किसी से सहमत या असमत हो सकते हैं इसका हक आप को लोकतंत्र देता है, पर हत्यारों को सम्मानित करना  उसका मंदिर बनवाना, मजहब की आड़ लेकर उन्हे शहीद जैसे शब्द देना क्या है? अगर गांधी गोडसे की गोली से बच जाते बहुत संभव था कि वे उसे बचा लेते या बचाने के लिए अनशन अथवा सत्याग्रह पर बैठ जाते मगर ऐसा हुआ नहीं और देश उनके आखिर शब्द ‘हे राम’ को अपना कर बैठ गया। गांधी के हत्यारे के साथ कानून को जो करना था उसने किया, अब वह किसी संघ से जुड़ा था या नहीं यह महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है। महत्त्वपूर्ण यह है कि क्या सरकरें बदलने के साथ राष्ट्रपिता के प्रति भाव भी बदलते रहेंगे? गांधी को बिरला मंदिर में नियमित  होने वाली प्रार्थना सभा में आजाद होने के महज पांच महीने 14 दिन बाद ही देश ने लाश में तब्दील होते देखा, नफरत  की पौध को हरे होते देखा, आम आदमी को सचमुच ही किसी नेता की मृत्यु पर बिलख- बिलख कर रोते देखा। समय के साथ गोडसे अपनी नियति को प्राप्त हो गया, जिंदा होकर गांधी नहीं लौटे।

खेद, कि वक्त ने उनके सपनों व गांधीवाद को भी मरते देखा पर आज यदि गोडसे लौटता दिख रहा है तो यह गांधी की शहादत को नमन करने पर प्रश्न तो खड़े करेगा ही। भले ही कुछ लोगों के लिए 30 जनवरी गांधी के मरने पर रोने का दिन न हो पर उनके आदश्रे की लगातार हो रही हत्या पर रोने का दिन तो है ही। गांधी को तब मारा गया जब सारा जमाना, उन्हें गौर से सुन रहा था, आइंस्टीन जैसे चिंतक उन्हें एक चमत्कार बता रहे थे, देश को उनके नेतृत्व की जरूरत थी, पर गोलियों की धांय..धांय..धांय..’ की तीन आवाजों के साथ ‘हे राम..’ कह कर वें शांत हो गए। चारों तरफ कोहराम,  मच गया, उन घरों में भी कई दिन चूल्हा नहीं जला जिन्होंने गांधी जी को कभी देखा सुना तक न था,  यह थी  गांधी के मरने के गम की आम जन की अभ्व्यिक्ति। ‘आजादी का भगवान’  देश  के लिए प्रार्थना करने के लिए आया था , सबके लिए  ‘सबको सन्मति दे भगवान..’ का तराना गाने’ आया था। जिसे देश ने ‘बापू’ कहा था, दुनिया ने ‘महात्मा’ बताया था, हमारी छोटी सोच के चलते बीसवीं सदी का चमत्कार कहे जाने वाला, वह  महानायक हमने अपने हाथों ही मार डाला था आज के दिन।

यही है 30 जनवरी पर रोने का सबब। गांधी आम आदमी के लिए पूज्य थे और आज भी हैं। गांधी की महात्मा होने की छवि हमेशा जस की तस आगे भी बनी रहेगी। भले ही कुछ खास लोग गोडसे से कहलवाते रहे ‘मैंने गांधी का वध किया है।’ आज भी दुनिया गांधी से ऊर्जा लेकर, किसी समस्या का अहिंसापूर्वक, विरोधी को अपनी बातों व विचारों से प्रभावित करके, आपस में बातचीत करके हल ढूंढती दिख रही है यही है गांधी के गांधी होने का अद्भुत रहस्य। वे बेखौफ जिये, निस्पृह रहे, जो करना था करते रहे। इसी आत्मबल ने गांधी को महात्मा बनाया। हमें आजादी दिलवाई। पर हमने गोडसे गढ़े, नफरत पाली मजहब, राजनीति, वोट व आदमी का घालमेल कर उन्हें शूट कर दिया इसी शर्मनाक शूटआउट पर रोने का दिन है आज।

डॉ. घनश्याम बादल


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