महाकुंभ : डुबकी-डुबकी में सियासत
महाकुंभ में बड़ा-छोटा कोई भी व्यक्ति स्नान करने जाए वह सामान्यत: चर्चा का विषय नहीं होना चाहिए। यह हमारी सनातन परंपरा में हर व्यक्ति का स्वाभाविक दायित्व है।
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किंतु पहले योगी आदित्यनाथ सरकार की पूरी कैबिनेट का एक साथ संगम में स्नान करना अनेक कारणों से चर्चा और विमर्श का विषय बना। उसके बाद जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव स्नान करने गए तो संपूर्ण मीडिया की दृष्टि उनकी ओर गई। स्नान करती उनकी तस्वीरें और छोटे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुई या की गई।
मकर संक्रांति को हरिद्वार गंगा में स्नान की उनकी तस्वीरें भी इसी तरह वायरल हुई थी। हालांकि उसमें स्नान से ज्यादा सोशल मीडिया पर उनके शरीर सौष्ठव की ज्यादा चर्चा हुई। जब योगी आदित्यनाथ सहित संपूर्ण मंत्रिमंडल ने एक साथ संगम में डुबकी लगाई मां गंगा, यमुना और सरस्वती की पूजा की तथा उसके बाद मुख्यमंत्री के साथ दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक साथ पूजा कर रहे थे तब भी वीडियो और तस्वीरें वायरल हुई। उस समय अखिलेश जी ने महाकुंभ पर राजनीति न करने की प्रतिक्रिया दी। यानी उन्होंने यह संदेश दिया कि भाजपा के मंत्री और नेता महाकुंभ पर राजनीति कर रहे हैं जो ठीक नहीं है। हालांकि उनके स्नान पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद ने सधी प्रतिक्रिया में कहा कि ‘देर आयद दुरुस्त आयद’, अखिलेश यादव जी महाकुंभ में पवित्र स्नान किया और उम्मीद है कि अब वह आस्था पर चोट नहीं पहुंचाएंगे।
अखिलेश जी को भाजपा के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्रियों मंत्रियों और नेताओं के कुंभ स्नान में राजनीति दिखाई दी तो स्वाभाविक है कि उनके स्नान में भी राजनीति देखी जाएगी। हालांकि स्नान के बाद उन्होंने भाजपा को सहनशील होने की सलाह दी तथा 11 डुबकियों के बारे में उनके एक्स हैंडल पर कुछ अच्छी पंक्तियां लिखी हुई थी। उन्होंने गंगा, यमुना और सरस्वती को साथ मिलकर चलने की प्रेरणा देने वाला भी बताया। क्या वाकई अखिलेश जी के स्नान को इन्हीं सद्भाव, सामाजिक एकता और धार्मिंक भावनाओं की परिधि के अंदर मान लिया जाएगा? दरअसल, केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने हिन्दुत्व, धार्मिंक आस्था, धर्मस्थलों, कर्मकांडों से लेकर इनसे जुड़े विषयों पर जैसी प्रखरता और सुस्पष्टता दिखाई है उसका असर चारों ओर है।
महाकुंभ में निहित हिन्दुत्व की व्यापकता, विशालता, सर्व सामूहिकता तथा भारत की महान अध्यात्म , संस्कृति, सभ्यता, परंपराओं, सामाजिक- पंथीय-एकता के भावों को संपूर्ण विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने और दिखाने की रणनीति अपनाई है उनसे राजनीति अप्रभावित रहे ऐसा संभव नहीं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार के संपूर्ण मंत्रिमंडल ने महाकुंभ स्नान और वहीं मंत्रिमंडल का बैठक की। महाकुंभ की पूर्व तैयारी में जैसी सक्रियता मुख्यमंत्री एवं दोनों उप मुख्यमंत्रियों तथा अनेक मंत्रियों के दिखाई उसका भी संदेश था और लोगों ने माना कि इस तरह किसी सरकार ने करने की कोशिश नहीं की। अखिलेश जी के कार्यकाल में 2013 में हुए महाकुंभ में मुख्यमंत्री और सरकार की भूमिका से वर्तमान सरकार की व्यवस्थाओं, दोनों के आचरणों आदि की तुलना हो रही है।
वैसे तो 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद से हिन्दुत्व, धर्म, भारतीयता आदि के संदर्भ में धीरे-धीरे माहौल बदला है और जिन मुद्दों पर बोलने तक से बचते थे, पूजा-पाठ व कर्मकांड को दिखाने तक में संकोच करते थे वो सब वर्जनायें लगभग ध्वस्त हुई हैं। सौभाग्य भारत की चेतना इन आधारों पर बहुत कुछ निर्धारित करने लगी है जिसमें राजनीति भी है। अखिलेश यादव जी ने जब महाकुंभ में कैबिनेट की बैठक को गलत बताया तो लोगों की सामान्य प्रतिक्रियाएं उनके विरु द्ध थीं। अगर संपूर्ण भारत के जिलों तक का प्रतिनिधित्व प्रयागराज महाकुंभ में है, उत्तर प्रदेश के कोने-कोने लोग आ रहे हैं, देश और विश्व भर के सनातन धर्म के साधु-संत-संन्यासी, विचारक, संस्कृतिकर्मी, पुजारी वहां प्रवचन, कर्मकांड आदि करते हुए विश्व कल्याण के भाव से साधना कर रहे हों, विचार-विमर्श हो रहा हो तो कैबिनेट की बैठक स्वाभाविक रूप से वही होनी चाहिए। सरकार जनप्रतिनिधि है तो यह अवसर है जनता के मनोभाव के साथ खड़े होने और काम करने की निष्ठा प्रदर्शित करने का। ऐसे सकारात्मक जन भावों के साथ एकता दिखाना भी सरकारों और राजनीति का दायित्व होना चाहिए। आज तक की राजनीति सेक्यूलरलाद की झूठी अवधारणा के कारण इनसे भागती रही है। इसी भाव से अखिलेश जी की नकारात्मक प्रतिक्रिया आई। सच महाकुंभ आरंभ के पहले से ही उनकी और पार्टी की प्रतिक्रियाएं नकारात्मक रहीं।
विपक्ष के नाते सपा को सरकार की कमियों, महाकुंभ में अगर जनता को समस्याएं व असुविधाएं हैं, नौकरशाही, कर्मचारी, ठेकेदारों के कार्य में कहीं कोताही है तो उन्हें उठाना या मुद्दा बनाना बिल्कुल स्वाभाविक है। विपक्ष के नाते यह उसकी भूमिका भी है। पर विपक्ष की इतनी ही भूमिका नहीं हो सकती। आपकी महाकुंभ में वैसी ही आस्था है जैसी अखिलेश जी ने स्नान करके प्रदर्शित की तो यह पहले से भी कई रूपों में दिखनी चाहिए थी। क्या सपा की कोई भूमिका महाकुंभ में है? कम-से-कम सपा जगह-जगह महाकुंभ में आए लोगों के स्वागत के कुछ बैनर भी लगा देती तो लगता कि वाकई कुंभ के प्रति उसकी आस्था है। 2013 के महाकुंभ को याद करिये, तो आपको भाजपा के बैनर तस्वीरें मिलेंगी। संघ विचार परिवार के अनेक संगठनों ने जगह-जगह सेवा के कैंप लगाए थे। इसलिए भाजपा सरकार कुछ कर रही है तो उसकी अतीत से वर्तमान तक सुसंगति है।
आप चाहे कुछ भी करिए, योगी सरकार और भाजपा को अलग से कुछ साबित करने या प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है। इस मौलिक अंतर को समझना पड़ेगा। राजनीति इतनी नैतिक और पवित्र हो, सनातन के प्रति स्वाभाविक रूप से आस्थावान होकर राजनीतिक रणनीति बनाएं और काम करें तभी भारत, मानवता और विश्व का वास्तविक मंगल होगा और यह किसी दृष्टि से सेक्यूलर विरोधी नहीं होगा। अभी तक की गलत धारणा और स्वयं को हिन्दू कहने में संकोच, व्यक्तिगत स्तर पर पूजा-पाठ, पर सार्वजनिक स्तर पर इसे दिखाने से परहेज करने का स्वभाव ध्यान रखें तो जो हो रहा है उसे आसानी से समझ सकते हैं।
(लेख में विचार निजी है)
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