सामयिक : दांव पर परमाणु वैज्ञानिक

Last Updated 15 Jan 2025 12:55:25 PM IST

पाकिस्तान के परमाणु बम के निर्माता अब्दुल कादिर खान के बारे में कहा जाता है कि इस शख्स ने परमाणु बम बनाने की तकनीक को उन देशों तक पहुंचा दिया जहां से आतंकवादी संगठन, आपराधिक समूह या अन्य अस्थिर समूह परमाणु सामग्री का उपयोग करके पूरी दुनिया में विनाशकारी हमले कर सकते हैं।


सामयिक : दांव पर परमाणु वैज्ञानिक

सीआईए के पूर्व निदेशक जॉर्ज टेनेट ने एक बार कहा था कि खान उतना ही खतरनाक है, जितना कि ओसामा बिन लादेन। अब्दुल कादिर खान अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने लीबिया, उत्तर कोरिया, ईरान जैसे अस्थिर और अधिनायकवादी देशों को परमाणु तकनीक और सामग्रियों का अनधिकृत हस्तांतरण करके वैश्विक सुरक्षा को संकट में डाल दिया। डॉ. खान ने 1990 के दशक के अंत से 2003 तक लीबिया को गुप्त रूप से सेंट्रीफ्यूज प्लांट और परमाणु हथियार डिजाइन की आपूर्ति की जिससे वहां हथियार कार्यक्रम बनाने में मदद मिल सके। उन्होंने 1990 के दशक में उत्तर कोरिया और ईरान को सेंट्रीफ्यूज तकनीक भी हस्तांतरित की थी। 1990 में ही खान की परमाणु प्रयोगशाला ने कथित तौर पर इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को पत्र भेजा था जिसमें परमाणु सेंट्रीफ्यूज बनाने में सहायता की पेशकश थी।

एक बार फिर पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठान से जुड़े घटनाक्रम पर दुनिया की नजर है। दरअसल, ऐसी खबरें सामने आई हैं, जिनमें दावा किया गया है कि पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय आतंकी समूह तहरीक-ए-तालिबान ने कुछ पाकिस्तानी वैज्ञानिकों का अपहरण कर लिया है। इन परमाणु वैज्ञानिकों का अपहरण खैबर पख्तूनख्वा से किया गया है। पाकिस्तान की सेना, आईएसआई और वहां की सरकार की विसनीयता को लेकर अमेरिका समेत दुनिया भर में अविश्वास रहा है लेकिन इसके बावजूद इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया भर के आतंकी संगठन परमाणु बम बनाने की तकनीक प्राप्त करना चाहते हैं, इनमें अल-कायदा और आईएस का नाम सबसे ऊपर है। कम से कम दो पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों ने 2000-01 में अल-कायदा के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी, हालांकि अभी तक साबित नहीं हो पाया है कि उन्होंने परमाणु संबंधी जानकारी साझा की थी। पाकिस्तान में परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर वैश्विक चिंताएं रही हैं। 2008 में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख मोहम्मद अलबरदेई ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में अपनी आशंकाएं व्यक्त की थीं लेकिन पाकिस्तान ने उनकी चिंताओं को खारिज कर दिया और दोहराया था कि उसका परमाणु शस्त्रागार सुरक्षित है।

पाकिस्तान में परमाणु प्रतिष्ठानों और हथियारों की सुरक्षा वर्ष 2000 से देश के प्रमुख परमाणु संस्थान राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण (एनसीए) के एकीकृत नियंत्रण में है, जो दस सदस्यीय निकाय है। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष, रक्षा, आंतरिक और वित्त मंत्री, सामरिक योजना प्रभाग के महानिदेशक और सेना, वायुसेना और नौसेना के कमांडर शामिल हैं। परमाणु तैनाती के बारे में निर्णय लेने की शक्ति एनसीए के पास है। इसके अध्यक्ष, जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति हैं, अंतिम वोट देते हैं। सेना, वायुसेना और नौसेना में से प्रत्येक के पास एक सामरिक बल कमान है, जो परमाणु हथियारों के उपयोग की योजना, नियंत्रण और निर्देशों के लिए जिम्मेदार है। सामरिक योजना प्रभाग एनसीए के सचिवालय के रूप में कार्य करता है। परमाणु क्षमता के विकास एवं प्रबंधन का प्रभारी है और दिन-प्रतिदिन नियंत्रण रखता है। पाकिस्तान में फौज का सभी संस्थानों पर गहरा नियंत्रण है, और सेना के अधिकारियों की जवाबदेही को लेकर वहां कोई स्वतंत्र और पारदर्शी निकाय काम नहीं करता है।

यह भी दिलचस्प है कि पाकिस्तान के प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्जा ने पाकिस्तान की सेना पर यूरेनियम की चोरी को ईरान को तस्करी के बड़े षड्यंत्र के तहत अंजाम देने का आरोप लगाया है। मिर्जा ने  दावा किया है कि पाकिस्तान की सेना लंबे समय से गुप्त रूप से परमाणु प्रौद्योगिकी बेचती रही है, जिससे वैश्विक सुरक्षा खतरे में पड़ रही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से इस घटना की स्वतंत्र जांच की अपील की है।

पिछले साल जुलाई में खैबर पख्तूनख्वा गृह विभाग ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक यात्रा सलाह जारी की थी, जिसमें बढ़तीं आतंकी गतिविधियों के कारण टैंक, डेरा इस्माइल खान, लक्की मारवात और बन्नू जैसे क्षेत्रों में बढ़ते जोखिमों की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद भी वैज्ञानिकों के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात नहीं किए गए। खैबर-पख्तूनख्वा पाकिस्तान का सूबा है। इसे सूबा-ए-सरहद के नाम से भी जाना जाता है जो अफगानिस्तान की सीमा पर स्थित है। इसके दक्षिण में बलूचिस्तान है। बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा, दोनों प्रांतों में गहरी अशांति है, और आतंकी संगठन पाकिस्तान की सेना पर हमले करते रहते हैं। इन क्षेत्रों में कई कबाइली संगठन भी सक्रिय हैं, और भौगोलिक परिस्थितियां इतनी जटिल हैं कि मुजाहिद्दीनों से निपटने में पाकिस्तान की सेना नाकाम है।

पाकिस्तान की सेना में धार्मिंक संगठनों और कट्टरपंथ का गहरा प्रभाव है  तथा आतंकी संगठनों को लेकर गहरे मतभेद हैं। पाकिस्तानी सेना के कई पूर्व अधिकारी तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को प्रशिक्षित करने में भूमिका निभाते रहे हैं। परमाणु हथियारों और उनसे संबंधित सामग्री की सुरक्षा के लिए उच्चतम स्तर के सुरक्षा उपायों का पालन किया जाता है, जिनमें अत्याधुनिक निगरानी, चौकस सुरक्षा बल और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। पाकिस्तान अपने हथियार कार्यक्रम के कारण परमाणु अप्रसार संधि से बाहर है, इसलिए उसे परमाणु संयंत्र या सामग्री के व्यापार से काफी हद तक बाहर रखा गया है। पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम जितना रहस्यमय रहा है, उससे ज्यादा खतरनाक पाकिस्तानी की परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर बदनीयती रही है। राजनीतिक अस्थिरता, आतंकवादी संगठनों, सेना के प्रभाव और धार्मिंक कट्टरपंथ से अभिशप्त तथा परमाणु हथियारों के अवैधानिक हस्तांतरण में शामिल पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत को गंभीरता से विचार करना होगा।
(लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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