मुद्दा : काम के घंटे घटाना वक्त की मांग

Last Updated 16 Jan 2025 01:24:57 PM IST

इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक साल पहले युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी और अब निर्माण कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एल एंड टी) के अध्यक्ष एस. एन. सुब्रमण्यम ने अपने कर्मचारियों से कहा है कि कामगारों को हफ्ते में 90 घंटे काम करने को तैयार रहना चाहिए।


मुद्दा : काम के घंटे घटाना वक्त की मांग

इतने पर ही नहीं रु के, आगे कहा कि एक्स्ट्रा रिजल्ट के लिए एक्स्ट्रा काम करना होगा और इसके लिए रविवार को भी काम करना चाहिए। आखिर, घर में रह कर मजदूर बीवी का मुंह कितनी देर तक निहारते रहेंगे। अदानी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अदानी ने भी उनकी बातों का समर्थन करते हुए कहा कि अगर काम ही नहीं रहा तो बीवी घर से भाग जाएगी और फिर क्या होगा?
एल एंड टी के चेयरमैन के बयान के बाद देश में फिर से मजदूरों के काम के घंटे को लेकर बहस शुरू हो गई है। कॉरपोरेट जगत के अंदर भी इसका विरोध हो रहा है।

आरपीजी ग्रुप के चेयरपर्सन हर्ष गोयनका ने एल एंड टी चेयरमैन के बयान की आलोचना करते हुए कहा, एक हफ्ते में 90 घंटे काम? रविवार को ‘सन-ड्यूटी’ क्यों न कहा जाए और ‘छुट्टी’ को एक मिथकीय अवधारणा क्यों न बना दिया जाए! वर्क-लाइफ बैलेंस वैकल्पिक नहीं, बल्कि जरूरी है। यह भी सवाल उठाया जा रहा है कि जब भारत में पहले से ही लोग सबसे ज्यादा काम करते हैं, तो क्यों कामगारों के घंटे बढ़ाने की बात उठती रहती है?  अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय सबसे ज्यादा काम करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति सप्ताह 46.7 घंटे, चीन में 46.01, ब्राजील में 39,  अमेरिका में 38, जापान में 36.6, इटली में 36.3, ब्रिटेन में 35.5, फ्रांस में 35.9, जर्मनी में 34.2 और कनाडा में 32.5 घंटे मजदूरों से काम कराया जाता है। इन आंकड़ों के बावजूद भारत में काम के घंटे बढ़ाने के लिए जब-तब शिगूफा छोड़ा जाता रहा है।

सच तो यह है कि पूरी बहस को इसलिए संचालित किया जा रहा है ताकि मोदी सरकार द्वारा मार्च, 2025 में लाए जाने वाले लेबर कोड, जिसमें काम के घंटे 12 कर दिए जाने हैं, की सामाजिक स्वीकृति हासिल की जा सके। इसके लिए बीच-बीच में इस तरह की चर्चाएं शुरू करवाने का ताना-बाना बुना जाता है। सच तो यह है कि दुनिया में काम के घंटे बढ़ाने के तकरे के विरुद्ध आर्टििफशियल इंटेलीजेंस के दौर में काम के घंटे कम करने की कवायद- कार्रवाई हो रही है। तमाम देशों में सप्ताह में चार दिन काम की पद्धति शुरू हुई है।

जूम के मालिक एरिक युवान जैसे एआई इनोवेटर्स का मानना है कि एआई हर कंपनी के लिए चार दिन का कार्यसप्ताह हासिल करने की कुंजी होगा। उनके अनुसार चार दिन के वर्किंग में 92 प्रतिशत की सफलता दर है। जापान जैसे देशों में काम के घंटे लगातार कम किए जा रहे हैं। साउथ चाइना मॉर्निग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां जापान में वर्ष 2000 में 1839 घंटे सालाना काम के थे वहीं उसे 2022 में घटा कर 1629 घंटे सालाना कर दिया गया। इससे लगभग वार्षिक काम के घंटे में 11.6 प्रतिशत की गिरावट आई। बेल्जियम, आइसलैंड, यूएई, स्पेन और नीदरलैंड जैसे देशों में चार दिन के कार्य दिवस सप्ताह में कर दिए गए हैं। जापान की रिक्रूट वर्क्‍स इंस्टिट्यूट के विश्लेषक ताकाशी सकामोटो के निष्कर्ष के अनुसार, देश में अब कई यूरोपीय देशों की तरह काम के घंटे कम किए जा रहे हैं।  

ऑटोनॉमी की एक रिपोर्ट के अनुसार, आर्टििफशियल इंटेलिजेंस आने के बाद ब्रिटेन में 88 प्रतिशत कंपनियां अपने कर्मचारियों के काम के घंटे 10 प्रतिशत तक कम कर रही हैं यानी कुल मिला कर कहा जाए तो दुनिया में काम के घंटे कम करने की दिशा में काम हो रहा है वहीं भारत, जहां पहले से ही काम के घंटे ज्यादा हैं, में उन्हें बढ़ाने की वकालत की जा रही है। दरअसल, देश में भीषण बेरोजगारी और महंगाई में मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठा कर काम के घंटे 12 करने का कानून बनाया जा रहा है। दुखद यह है कि इस सबसे उत्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

संवैधानिक दृष्टि से देखें तो काम के घंटे बढ़ाने को जो कुछ भी किया जा रहा है, वह स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 42 और 43 का उल्लंघन है। हमारे संविधान की प्रस्तावना में ही व्यक्ति की गरिमा की बात कही गई है, जिसकी मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्वों में व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 42 जहां काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं के लिए राज्य की जवाबदेही तय करता है वहीं अनुच्छेद 43 मजदूरों को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर और अवकाश की संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त करने के लिए राज्य को जिम्मेदार बनाता है। आर्टििफशियल इंटेलीजेंस के दौर में जब दुनिया बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के खतरे को महसूस कर रही है, तब भारत में काम के घंटे बढ़ाने के कारण बेरोजगारी और भी बढ़ेगी, यह तय है।

आईएएनएस
कुमार समीर


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