मुद्दा : शिक्षक शिक्षा के बदलते परिदृश्य

Last Updated 20 Jul 2024 01:38:03 PM IST

वर्तमान शिक्षा के बदलते स्वरूप में शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों की गुणवत्ता जरूरी है जो हमारे देश की भावी पीढ़ी को नया आकार देगी और शिक्षकों की मजबूत पहचान सुनिश्चित करेगी। इसके लिए हमें अपने शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम को नये परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की जरूरत है।


मुद्दा : शिक्षक शिक्षा के बदलते परिदृश्य

इस दिशा में एनईपी-2020 ने शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को उचित रूप से मान्यता दी है, जिसमें 21वीं सदी के सीखने के कौशल एवं सामग्री के साथ-साथ शिक्षा शास्त्र में उच्च गुणवत्तायुक्त प्रशिक्षण भी शामिल होगा और जो भावी शिक्षकों को बदलते समय की गति के साथ आगे ले जाएगा।

हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने हमेशा व्यक्ति के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। इसलिए शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों को गौरवशाली भारतीय संस्कृति और विरासत को दृष्टिगत करते हुए नया स्वरूप दिया जाना चाहिए। शिक्षा सामूहिक सामाजिक प्रयास है जो सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक नागरिक गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए अनुशासित होकर अपनी पूर्ण कार्यक्षमता के साथ समाज का महत्त्वपूर्ण सदस्य बने। 21वीं सदी में हम जब वैश्विक समाज में रह रहे हैं तब शिक्षकों के लिए शिक्षा और प्रशिक्षण के बहुमुखी कार्यक्रमों की जरूरत है। शिक्षा पाठ्यक्रम को इस तरह से संशोधित करने की भी आवश्यकता है कि वह समावेशी हो और उसमें आजीवन सीखने, शिक्षार्थियों के विकास और अनुप्रयोगों पर जोर हो।

लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मूल्यों पर भी बल दिया जाना चाहिए और भावी शिक्षकों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत करने की दिशा में प्रयास होने चाहिए। पाठ्यक्रम को समाज की लगातार बदलती जरूरतों, नैतिक मानदंडों, प्रौद्योगिकी उन्नति और प्रसार एवं वर्तमान संदर्भ में दूरस्थ-वर्चुअल सीखने की पद्वति का भी संज्ञान लेना चाहिए। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद संपूर्ण भारत में अध्यापक शिक्षा का नियामक और पथप्रदर्शक है।

आज उसकी भूमिका और भी बढ़ती जा रही है। इसने कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए भी हैं। इनमें से 4-वर्षीय एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम (आईटीईपी) महत्त्वपूर्ण कदम है। एक ओर चार वर्षीय विशिष्ट पाठ्यचर्या का निर्माण किया गया है तो दूसरी ओर कुछ चयनित संस्थानों में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा जहां नवीन आवश्यकताओं के अनुसार आधारभूत संरचना और मानव संसाधन उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीएसटी) अध्यापकों की गुणवत्ता का एक आधार प्रस्तुत करता है। इससे 21वीं सदी में अध्यापकों की कार्यदक्षता निर्धारित होगी ताकि बदलती तकनीक से वे स्वयं को कुशल बनाते रहे।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद का एक और अभिनव प्रयास राष्ट्रीय मेंटरिंग मिशन (एनएमएम) है। यह शिक्षकों को सलाह देने, ज्ञान के औपचारिक-अनौपचारिक प्रसार के साथ ही शिक्षकों के व्यावसायिक कौशल के विकास की दिशा में कार्य करता है। अनेक सरकारी नवाचारों को लागू करने के लिए ब्रिज कोर्स का निर्माण सरल और प्रभावी कदम होगा। जैसे-शारीरिक शिक्षा और योग शिक्षण। इसी प्रकार समावेशी शिक्षा पर भी पाठ्यक्रम जरूरी है। हम अपने समाज में बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की पाते हैं, जो किसी न किसी तरह की शारीरिक या मानसिक अक्षमता से ग्रसित होते हैं। उनकी आवश्यकताएं बाकी बच्चों से अलग होती हैं। यही कारण है कि वे कहीं न कहीं शिक्षण की मुख्यधारा से अलग हो जाते हैं। अध्ययन- शिक्षण प्रक्रिया में उनका समावेशन अत्यावश्यक है। शिक्षकों में यह कौशल विकसित करना जरूरी है।

भारत से अतीत में ज्ञान की कई धाराएं प्रवाहित हुई, परंतु कालांतर में कहीं खो गई। शिक्षक का अत्यंत महत्त्वपूर्ण दायित्व उस समर्थ और श्रेष्ठ भारत से विद्यार्थियों का परिचय कराना भी है। अत: एक ओर जहां शिक्षण- अध्यापन सामग्री के पुनरीक्षण के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परंपरा के समावेशन की आवश्यकता है, वहीं शिक्षकों को भी इस दिशा में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इसमें भारत के दर्शन, चिकित्सा, गणित, खगोल शास्त्र, धातु विज्ञान, जीवन मूल्यों आदि जैसे विविध ज्ञान क्षेत्र से परिचय ब्रिज कोर्स के माध्यम से हो सकता है। सूचना तकनीक आज ज्ञान के प्रसार और शिक्षण का अत्यंत प्रभावी माध्यम है।

यह शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच की दूरी को भी कम कर देती है। बदलते परिवेश और और बदलती तकनीक के साथ शिक्षकों का सूचना प्रौद्योगिकी में पारंगत होना समय की आवश्यकता है। तकनीकी विकास ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी परिष्कृत  प्रौद्योगिकी को भी संभव बना दिया है, जो ज्ञान का एक नया संसार है। लेकिन हर प्रौद्योगिकी के साथ उसके न्यायपूर्ण उपयोग की आवश्यकता होती है ताकि संतुलन बना रहे। शिक्षक  संतुलन बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण माध्यम बन सकता है। शिक्षक शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग भविष्य के शिक्षकों के साथ भावी विद्यार्थियों को भी सशक्त बनाएगा।

प्रो. सरोज शर्मा


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