सामयिक : नेपाल की सत्ता में फिर ओली

Last Updated 20 Jul 2024 01:44:56 PM IST

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कई बार कहा है कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है और अगर कभी कोई ईश्वर रहा है तो वो सिर्फ कार्ल मार्क्‍स थे।


नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली

2018 में प्रधानमंत्री बनते ही ओली ने वह सब कुछ किया जिसकी धार्मिंक और सनातन परंपरा में विश्वास करने वाले इस देश में कल्पना भी नहीं की गई थी।

ओली को अपनी कम्युनिस्ट पहचान मजबूत करने और चीन के साथ खड़े दिखने का इतना उतावलापन था कि उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए ईश्वर का नाम लेने से इंकार कर दिया, यह बुद्ध और विष्णु की भूमि के लिए बेहद अप्रत्याशित घटना थी।

इसके बाद भारत के प्रधानमंत्री जब नेपाल गए तो पीएम नरेन्द्र मोदी ने जनकपुर में पूजा की लेकिन ओली ने नहीं की। ओली यहीं नहीं रुके उन्होंने चीन के इशारे पर नेपाल का अपना नया नक्शा जारी कर भारतीय क्षेत्रों कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को शामिल कर इन्हें अपने देश के इलाके बताया, राम जन्मभूमि को नेपाल में ही बताया और चीन के लिए अपने देश के दरवाजे खोल दिए।

ओली ने सत्ता में रहते भारत और नेपाल के संबंधों को प्रभावित करने के लिए धार्मिंक, ऐतिहासिक और सामरिक रूप से तथ्यों को उलट-पुलट कर भारत से सीमा विवाद को बढ़ाया और इसे राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ दिया। 

चीन की यात्रा की और उन्होंने चीन के साथ ट्रेड एंड ट्रांसपोर्टेशन अग्रीमेंट यानी व्यापार एवं परिवहन समझौता कर लिया। ओली का यह कदम भारत को चुनौती देने वाला रहा और यहीं से भारत और नेपाल के कूटनीतिक रिश्ते भी प्रभावित हुए बिना न रह सके। ओली के भगवान र्का मार्क्‍स चीन में भी पूजे जाते हैं।

चीन ने नेपाल में अनेक परियोजनाएं आक्रामक ढंग से शुरू की हैं। तिब्बत से सीधी सड़क भारत के तराई क्षेत्रों तक बनाई, रेल मार्ग नेपाल की कुदारी सीमा तक बनाया, नेपाली कम्युनिस्ट और माओवादी गुटों को आर्थिक और सैनिक मदद से चीन का समर्थन और आम नेपालियों में उनके द्वारा भारत विरोधी भावनाएं भड़काने की साजिशें रची गई। ओली की चीन परस्त और भारत विरोधी नीतियों के कारण चीनी सामानों की नेपाल के रास्ते भारत में डम्पिंग, माओवादी हिंसा के जरिए नेपाल से आंध्र- तमिलनाडू तक रेड कॉरिडोर में भारत को उलझाएं रखना, पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई की नेपाल में लगातार गतिविधियां, तस्करी और आतंकवादियों का भारत में प्रवेश सुलभ हुआ है।

कई शताब्दियों तक राजशाही को स्वीकार करने वाले इस देश में 2007 में अंतरिम संविधान बनने के बाद राजतंत्र को खत्म तो कर दिया गया था लेकिन वामपंथ के उभार से लोकतंत्र स्थापित करने के सपने चकनाचूर हो गए।  कार्ल मार्क्‍स की दो  किताबों कम्युनिस्ट घोषणापत्र और दास कैपिटल ने दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक-आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला  है। कम्युनिस्ट घोषणापत्र में मार्क्‍स ने पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष की बात की है और बताया है कि कैसे अंतत: संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लेगा। मार्क्‍स ने धर्म को जनता के लिए अफीम के रूप में वर्णित किया है। कम्युनिज्म धर्म को नहीं मानता और बुद्ध के विचारों में सनातन धर्म की समानता निहित है। ओली नेपाल को चीन जैसा बना देना चाहते है।

भारत के लिए मुश्किल यह है कि नेपाल के सांस्कृतिक इतिहास और परंपराओं में सनातन धर्म और बुद्ध की मान्यताओं के चलते उसकी भारत से निकटता खत्म  नहीं होने दे। ओली के भगवान मार्क्‍स, भारत के आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े खतरे नक्सलियों के भी आदर्श पुरु ष हैं। भारत के मध्य, दक्षिणी और पूर्वी भागों को मिला कर बना  रेड कॉरिडोर ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड में प्रमुख रूप से केंद्रित 11 राज्यों को कवर करता है।

नेपाल से शुरू हुए इस गलियारे में नेपाल की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण है। नेपाल  ने इस क्षेत्र के लड़ाकों के साथ हथियारों, रणनीतियों और प्रशिक्षण योजनाओं और कई अन्य सामरिक हथियारों का भी खूब आदान-प्रदान किया है। ओली माओवादी संगठन से जुड़े हैं, और हिंसा के चलते नेपाल की जेल में भी रह चुके हैं। चीन निर्मित हथियारों के जरिए नक्सली भारतीय सुरक्षा बलों को हमले करते हैं। नक्सली हिंसा का इतिहास लंबा है। भारत  सरकार इसे खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।

नेपाल और भारत करीब अठारह सौ पचास किमी. से अधिक लंबी सीमा साझा करते हैं, जिससे भारत के  पांच राज्य सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जुड़े हैं। दोनों देशों की सीमाओं से यातायात पर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक-आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है। भारत नेपाल की सीमा खुली हुई है और आवागमन के लिए किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट से चीन भी डरता है क्योंकि भारत-चीन तनाव में गोरखा चीन को भौगोलिक रूप से ज्यादा चुनौती देते हैं।

पिछले कुछ सालों में चीन ने यह जानने में दिलचस्पी दिखाई है कि आखिर, नेपाली गोरखा भारतीय सेना में जाना क्यों पसंद करते हैं। भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं का स्थान इतना उच्च है कि पाकिस्तान और चीन से लड़ाई में गोरखा रेजिमेंट के बलिदान को सदैव याद किया जाता है। वर्तमान में हर वर्ष बारह सौ से तेरह सौ नेपाली गोरखे भारतीय सेना में शामिल होते हैं।  गोरखा राइफल्स में लगभग 80 हजार नेपाली गोरखा सैनिक हैं। इसके अतिरिक्त रिटार्यड गोरखा जवानों और असम राइफल्स में गोरखों की संख्या करीब एक लाख है। भारतीय सेना से रिटार्यड नेपाली गोरखाओं की तादाद तकरीबन एक लाख पैतीस हजार है।

इनकी सैलरी और पेंशन मिला दें तो यह रकम 62 करोड़ डॉलर है। यह नेपाल की जीडीपी का तीन फीसद है। दूसरी तरफ नेपाल का रक्षा बजट महज 43 करोड़ डॉलर है यानी नेपाल के रक्षा बजट से ज्यादा भारत से नेपाली गोरखाओं को हर साल सैलरी और पेंशन मिल रही है। अग्निवीर योजना का नेपाल में विरोध हो रहा है। भारत भी इसे लेकर आशंकित हो सकता है कि ओली कहीं चीन में गोरखाओं की भर्ती को लेकर कोई समझौता नहीं कर लें। बहरहाल, ओली  के भगवान कार्ल मार्क्‍स, नक्सलियों से उनके संबंध और चीनपरस्त नीतियां भारत को आशंकित करती हैं। उनका नेपाल की सत्ता में राजनीतिक रूप से मजबूत होना भारत की परेशानियां बढ़ा सकता है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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