लकीर के फकीर
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रस्तुत धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर करारे कटाक्ष किए। कहा कि हम तीसरी बार सत्ता में हैं, हम अनेक बार सत्ता में आएंगे।
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उन्होंने पिछले दस सालों का लेखा-जोखा और 2047 तक की कार्य-योजना प्रस्तुत की। कहा कि पिछली सरकारों ने तुष्टिकरण का रास्ता चुना, लेकिन हमने संतुष्टिकरण का रास्ता चुना। राष्ट्रपति के अभिभाषण को बोरिंग बताने वाले लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर भी उन्होंने तंज किया। पच्चीस करोड़ लोगों के गरीबी से ऊपर उठने और गरीबों को चार करोड़ पक्के घर देने की बात भी की।
कुछ देशों के बीस सालों में विकसित बनने की तारीफ करते हुए मोदी ने सवाल किया कि हम क्यों नहीं बन सकते। तार्किक तौर पर देखा जाए तो मोदी का यह जवाब चुनावी भाषण ज्यादा प्रतीत हुआ। बेशक, सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करना उनका दायित्व है मगर जब बात सदन में हो तो प्रधानमंत्री को देश की नुमाइंदगी करनी होती है। बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई तथा अन्य सामायिक मसलों से ध्यान हटाने की कोशिशों को उन्होंने हमेशा की तरह दर-किनार ही रखा।
राहुल गांधी ने जवाब में संविधान की किताब दिखाते हुए याद दिलाया कि 2024 में भाजपा का चार सौ से ज्यादा सीटों पर आने का दावा धरा रह गया। भाषण के दौरान लगातार शोरशराबा होता रहा जो लोकतांत्रिक बर्ताव नहीं है। सदन की गरिमा और संवैधानिक नियमों का सबको पालन करना सीखना होगा। मोदी का राष्ट्रपति पर की गई टिप्पणी का जिक्र किया जाना भी उचित माना जाना चाहिए। मगर वे जिस तुष्टिकरण को लेकर विपक्ष को घेर रहे हैं, उससे उनकी सरकार भी मुक्त नहीं है।
बात राशन बांटने की हो, मकान बना कर देने या सीधा बैंक खातों में धन राशि देने की, और मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में भी मोदी सरकार पीछे नहीं है। जनता या कार्यबल के सार्थक सदुपयोग की बजाय देशवासियों में अकर्मण्यता का भाव भरना मुल्क की तरक्की में बाधक बन सकता है।
चीन की कथित घुसपैठ को लेकर भी इस सरकार का रवैया स्पष्ट नहीं है। विपक्ष द्वारा यह मुद्दा उठाने पर वे हमेशा बगलें झांकते हैं। यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। इस पर सरकार को कड़ा रुख इख्तियार करना ही होगा। केवल छींटा-कशी के लिए ही इस गंभीर मसले का प्रयोग तत्काल बंद होना जरूरी है।
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