आजादी का दिन : प्रकटीकरण की ओर राष्ट्रीयत्व

Last Updated 15 Aug 2023 01:34:01 PM IST

हम अंग्रेजों से मुक्ति का 75 वर्ष पूरा कर चुके हैं। इसे अमृत महोत्सव नाम दिया गया था। सूर्य लालिमा के साथ निकल रहा हो और पूर्ण उदय नहीं हुआ हो उसे ही अमृत काल कहते हैं। साफ है कि काफी विचार-विमर्श के बाद अमृत काल नाम दिया गया। अमृत काल आशावादी शब्द है।


आजादी का दिन : प्रकटीकरण की ओर राष्ट्रीयत्व

एक राष्ट्र के नाते निराशावादी होना अंतर्निहित संभावनाओं और क्षमताओं को प्रस्फुटित होने से रोकेगा। स्वतंत्रता संघर्ष का सबसे बड़ा स्वप्न यही था कि संपूर्ण वि के लिए अनूठा भारतवर्ष अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद अपनी सभ्यता संस्कृति और अध्यात्म के आधार पर ऐसी राष्ट्र जीवन पण्राली फिर से विकसित करेगा जो पूरे वि के लिए मार्गदर्शक होगा। सामान्यत: वि गुरु  शब्द से लोग अर्थ निकालते हैं कि हम स्वयं को सबसे बड़ा मानते हैं और यह अहम भाव का द्योतक है। भारतीय संदर्भ में साधना, संयम, त्याग, तपस्या से निखरे ऐसे व्यक्तित्व को गुरु  माना गया है जिसका कोई भौतिक स्वार्थ नहीं, जो देश, काल, परिस्थिति, जाति, जीव-अजीव सभी भेदों से ऊपर उठा हुआ हो। भारतीय मनीषियों ने इसी अर्थ में भारत के वि गुरु  होने की संज्ञा दी है। इतिहास के कालखंड में भारत की ख्याति विशिष्ट जीवन दर्शन वाले देश के रूप में थी।

मोटा-मोटी 1000 वर्ष की आंशिक या संपूर्ण परकीय राजसत्ता के कारण राष्ट्रीय चरित्र के रूप में यह जीवन दर्शन गौण हो गया। वर्तमान वि व्यवस्था और उसके अंतरराष्ट्रीय ढांचे की आधारभूमि अंग्रेजों से मिली स्वतंत्रता तक लगभग स्पष्ट होने लगी थी। कम्युनिस्ट सत्ता वाले सोवियत संघ और पूंजीवाद एवं संसदीय लोकतंत्र वाले अमेरिका का वि क्षितिज पर शीर्ष प्रतिस्पर्धी राष्ट्र के रूप में आविर्भाव दिख रहा था। इसके साथ अलग-अलग देशों की गुलामी तथा रंगभेद और नस्लवाद के साथ सत्ता बदलने के लिए वैचारिक आधार पर संगठित हिंसक विद्रोहों का सिलसिला भी चल पड़ा था। स्वतंत्रता संघर्ष के हमारे नेताओं के सामने ये सारी परिस्थितियां थीं और उसमें उनका स्वप्न भारतीय राष्ट्र के मूल चरित्र के आधार पर विकसित होना तथा वि को रास्ता दिखाना था तो भविष्य के राष्ट्र पुनर्निर्माण की रूपरेखा भी अंतर्मन में बन रही होगी। यानी इस वैश्विक ढांचे की परिभाषा में मान्य सशक्त विकसित राष्ट्र के आधार आर्थिक, वैज्ञानिक, रक्षा आदि क्षेत्रों में प्रगति करते हुए ही भारतीय राष्ट्र के मूल दर्शन को व्यवहार में लाना होगा।

यह कहना उचित नहीं होगा कि 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत इस व्यापक दृष्टि से कुछ नहीं कर सका। प्रगति के कई सोपान भारत ने लांघे और कुछ की आधारभूमि बनी। किंतु समग्रता में एक साथ भारत अपनी आत्मा और संस्कृति सभ्यता की अंतशक्ति को प्रकट करते हुए आगे बढ़े तथा वि को भी इसका भान कराए इस दिशा में योजनापूर्वक नेतृत्व आगे नहीं बढ़ सका। पश्चिमी पण्राली की शिक्षा, उसके अनुसार राजनीति, सत्ता, प्रशासन, संस्कृति, राष्ट्रवाद आदि की सोच और विकास के ढांचे को लेकर वैश्विक स्तर पर मतभेदों के कारण स्पष्ट रास्ता नहीं पकड़ पाना इसका प्रमुख कारण रहा। एक बड़ा समूह ऐसा था जो अंग्रेजी सत्ता को तो खत्म करना चाहता था पर उनकी व्यवस्था के प्रति आकषर्ण था। गांधीजी अंग्रेजी सत्ता के साथ उनकी सभ्यता, उसके आधार पर टिकी व्यवस्था को परिवर्तित कर उसका भारतीय सभ्यता संस्कृति के आधार पर स्थानापन्न करने के लक्ष्य से काम करना चाहते थे।

दुर्भाग्य से गांधीजी स्वतंत्रता के 6 महीने तक भी नहीं रह सके। सरदार बल्लभभाई पटेल भी पहले आम चुनाव के पूर्व ही गुजर गए। पटेल के गुजर जाने के कारण पंडित जवाहरलाल नेहरू के समानांतर कांग्रेस में दूसरी सशक्त धारा कमजोर पड़ गई।  अंग्रेजी और वामपंथी सोच वालों ने धर्म, संस्कृति, राष्ट्रवाद को लेकर हीन भावना पैदा की, जिसके प्रभाव में सत्ता प्रतिष्ठान और नीतियां इनके विरु द्ध हो गई। गांधी जी की निर्मम हत्या का आरोप संघ पर गलत साबित होने के बावजूद सत्ता की ताकत से उसकी छवि धूमिल की जाती रही, जिसमें इसके लिए काम करना कई वर्षो तक कठिन था। इस तरह पूरा वातावरण उस सोच के विपरीत हो गया जो स्वतंत्रता आंदोलन की एक प्रमुख धारा थी। फलत: भारतीय दृष्टि गौण हो गई और समाज, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति आदि की ऐसी रचना की कोशिश हुई जो न पूरी तरह पश्चिम का था और न अपना।

उससे तुलना करें तो पिछले कुछ वर्षो में भारत की सोच और व्यवहार में अमूल अंतर आता दिखा है। वर्तमान भारत खुलकर बोल रहा है कि हमारे धर्म की अवधारणा रीलिजन की नहीं और न पश्चिमी शैली का राष्ट्रवाद ही हमारा राष्ट्रीयत्व है। अकल्पनीय रूप में भारत के अंदर और बाहर फैले हुए भारतवासियों के अंदर अपनी सभ्यता, संस्कृति, धर्म तथा विरासत को लेकर प्रखरता घनीभूत हुई है। ठीक है कि इसमें कुछ अस्पष्टता, भावुकता,नकारात्मकता और अतिवाद भी है लेकिन अंतत: परिणामकारी तत्व वही हैं जो होने चाहिए। समग्र तौर पर देखें तो भारत अमृत काल में है और संपूर्ण जीवन दर्शन के साथ भारतीय राष्ट्रीयत्व का सूर्य धीरे-धीरे आभामय हो पूर्ण प्रकटीकरण की ओर अग्रसर है।

आईएएनएस
अवधेश कुमार


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