वैश्विकी : कौन डरता है ब्रिक्स से

Last Updated 06 Aug 2023 01:22:01 PM IST

दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS Summit) को लेकर जहां अधिकतर देशों में उत्सुकता है वहीं अमेरिका (America) और उसके सहयोगी देश आशंका से ग्रसित हैं।


वैश्विकी : कौन डरता है ब्रिक्स से

इस सम्मेलन को कमजोर या असफल बनाने के लिए पश्चिमी देशों की मीडिया ने अभियान छेड़ रखा है। उसकी ओर से भ्रामक सूचनाओं का प्रसार किया गया जिसका अनुसरण भारत की मीडिया के एक वर्ग ने भी किया है। कुछ दिन पहले तक यह माहौल बनाया गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए जोहांसबर्ग नहीं जाएंगे। इसके पहले पश्चिमी देशों की मीडिया में ब्रिक्स को लेकर प्रमुख मुद्दा यह था कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन को जोहांसबर्ग में गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं। पुतिन ने पश्चिम के इस मंसूबे को ध्यान में रखकर द. अफ्रीका नहीं जाने का फैसला किया। वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सम्मेलन में शिरकत करेंगे। इस फैसले से ब्रिक्स के एजेंडे पर ही मीडिया को ध्यान केंद्रित करना होगा।

ब्रिक्स की स्थापना वर्ष 2009 में ब्राजील, रूस, भारत और चीन को मिलाकर हुई थी। बाद में इसमें द. अफ्रीका को शामिल किया गया। वास्तव में जोहांसबर्ग शिखर वार्ता इस संगठन की महत्त्वपूर्ण बैठक है। यह नई विश्व व्यवस्था का शिलान्यास साबित हो सकती है। शिखर वार्ता का मुख्य एजेंडा ब्रिक्स का विस्तार और सदस्य देशों के बीच व्यापार के लिए मुद्रा निर्धारण है। पश्चिमी देशों की मीडिया इन दोनों मुद्दों पर लगातार भ्रामक खबरें प्रसारित कर रही है। आश्चर्य की बात यह है कि इसके लिए भारत के रुख का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह धारणा बनाने की कोशिश की जा रही है कि भारत ब्रिक्स के विस्तार के खिलाफ है। देर से ही सही भारत के विदेश मंत्रालय ने इन खबरों का खंडन किया है।

भारत निश्चित मानकों के आधार पर इस संगठन का विस्तार चाहता है। जोहांसबर्ग में ब्रिक्स नेता नए सदस्य देशों को शामिल करने के संबंध में फैसला करेंगे। चर्चा का एक अन्य मुद्दा ‘ब्रिक्स करेंसी’ भी है। ऐसी भ्रामक खबरें प्रसारित की जा रही हैं कि भारत ब्रिक्स करेंसी के पक्ष में नहीं है, जबकि वास्तविकता इससे अलग है। दुनिया में नई मुद्रा का प्रचलन करना बहुत जटिल और दुरुह प्रक्रिया है। इसी बात को ध्यान में रखकर ब्रिक्स देशों की प्राथमिकता यह है कि नई मुद्रा के स्थान पर विभिन्न देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं में लेन-देन की व्यवस्था अधिक सुगम एवं व्यावहारिक है। कुछ अथरे में यह मुद्दा भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात कर रहा है। रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण लेन-देन में समस्या पैदा हो रही है। रूस का आग्रह है कि भारत रुपए के साथ ही अन्य मुद्राओं में भी भुगतान करे ताकि वह धनराशि का आसानी से उपयोग कर सके। पूरी संभावना है कि शिखर सम्मेलन में कोई ठोस भुगतान प्रणाली कायम करने की घोषणा की जाएगी।

अमेरिका और पश्चिमी देशों के घटते प्रभाव के कारण विभिन्न महाद्वीपों के अनेक देश ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं। इनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया, अज्रेटीना और नाइजीरिया जैसे बड़े देश शामिल हैं। यदि इन देशों को ब्रिक्स में शामिल किया जाए तो यह संगठन अमेरिका के प्रभाव वाले जी-7 संगठन से भी अधिक मजबूत हो जाएगा। ब्रिक्स के विस्तार के बाद इस संगठन की एकजुटता और मतैक्य कायम करने की प्रणाली को बनाए रखना एक चुनौती अवश्य साबित होगा।

प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग जोहांसबर्ग में दो दिनों के दौरान घंटों तक आमने-सामने रहेंगे। दोनों नेताओं के बीच औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता नहीं भी होती है तो यह अवसर सीमा संबंधी मुद्दों और विश्व मामलों पर चर्चा करने का मौका साबित हो सकता है। ब्रिक्स शिखर वार्ता के अगले महीने सितम्बर में जी-20 बैठक के लिए राष्ट्रपति शी को नई दिल्ली आना है। एशिया की दो महाशक्तियों के ये दो शीर्ष नेता द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए नई शुरुआत कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के लिए जोहांसबर्ग में अफ्रीकी देशों के नेताओं के साथ बातचीत का भी अवसर होगा। 22-24 अगस्त तक होने वाले इस शिखर सम्मेलन में अफ्रीका के सभी देशों को आमंत्रण भेजा गया है। ब्रिक्स अब चट्टान के रूप में बदल रहा है। ब्रिक्स नेताओं को भी अब चट्टान जैसी संकल्पशक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए।

डॉ. दिलीप चौबे


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