विश्लेषण : बज गई लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी
पक्ष और विपक्ष अपने-अपने हाथी, घोड़े, रथ और पैदल तैयार करने में जुट गए हैं। दिल्ली और बेंगलुरू में दोनों पक्षों ने अपना-अपना कुनबा जोड़ा है।
विश्लेषण : बज गई 2024 की रणभेरी |
जहां नये बने संगठन ‘इंडिया’ में 25 दल शामिल हुए हैं, वहीं एनडीए 39 दलों के साथ आने का दावा कर रहा है। अगर इन दावों की गहराई में पड़ताल करें तो बड़ी रोचक तस्वीर सामने आती है।
पिछले चुनाव में एनडीए में अब शामिल हुए इन 39 दलों को मिले वोट जोड़ें तो इस गठबंधन को देश भर में 23 से 24 करोड़ के बीच वोट मिले थे जबकि ‘इंडिया’ के मौजूदा गठबंधन को 26 करोड़ वोट मिले थे। पर ये वोट इतने सारे दलों में आपसी मुकाबले के कारण बंट गए जिससे इनकी हार हुई। अगर यह गठबंधन ईडी, सीबीआई और आईटी की धमकियों के बावजूद एकजुट बना रहता है, और मुकाबला आमने-सामने का होता है, तो जो परिणाम आएंगे वो स्पष्ट हैं। दूसरा पक्ष यह है कि जहां एनडीए आज 60 करोड़ भारतीयों पर राज कर रही है, वहीं ‘इंडिया’ संगठन 80 करोड़ भारतीयों पर आज राज कर रहा है, और इसके शासित राज्य भी एनडीए से कहीं ज्यादा हैं। जहां तक परिवारवाद का आरोप है तो दोनों संगठनों में परिवारवाद प्रबल और समान है। अंतर यह है कि जहां एनडीए में शामिल 39 दलों में परिवारवादी नेताओं का कोई जनाधार नहीं है, और उनमें से ज्यादातर दल ऐसे भी हैं, जिनमें एक भी विधायक तक नहीं है जबकि ‘इंडिया’ संगठन में जो परिवारवाद है, उसके सदस्य दशकों तक राज्यों का शासन चलाने के मामले में अनुभवी और बड़े जनाधार वाले नेता हैं।
जहां बीजेपी के नेताओं ने शुरू में दावा किया था कि वो कांग्रेसमुक्त भारत बनाएंगे, वहां आज एनडीए स्वयं ही कांग्रेसयुक्त संगठन बन चुका है, जिसमें कई केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री वो हैं, जो कांग्रेस के स्थापित नेता थे पर ईडी, सीबीआई की धमकियों से डरकर बीजेपी में शामिल हुए हैं। आने वाले चुनाव में ‘इंडिया’ संगठन को टिकट बांटने में कम दिक्कत आएगी क्योंकि उनके सब दावेदार जनाधार वाले हैं, और कई चुनाव जीत चुके हैं। अलबत्ता, उन्हें अपने अहम और महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगाना होगा जबकि एनडीए में शामिल ज्यादातर दल ऐसे हैं, जो आज तक विधायक का चुनाव भी नहीं जीते हैं पर अब लोक सभा के लिए ये सभी अपनी हैसियत से ज्यादा टिकट मांगेंगे।
तब बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी। बीजेपी का इतिहास रहा है कि शिवसेना जैसे जितने भी दलों ने उसका साथ दिया उन सबको बीजेपी ने या तो अपमानित किया या उनको हड़प ही गई। ऐसे में अबकी बार फिर से एनडीए में शामिल हुए दल अपना अस्तित्व खोने के डर से ग्रस्त रहेंगे। उन्हें इस बात का भी सामना करना पड़ेगा कि आरएसएस उन्हें अपने रंग में रंगने का भरपूर प्रयास करेगा। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो ‘इंडिया’ संगठन बनने से बीजेपी और एनडीए संगठन के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, जिसको देखते हुए 2024 का चुनाव बहुत रोचक होने जा रहा है।
जिस तरह भाजपा को विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम के संगठन से आपत्ति हो रही है, उसका असल कारण विपक्ष की एकजुटता है। वरना जब दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना की एक क्षेत्रीय पार्टी ने अपना नाम बदल कर ‘भारत राष्ट्र समिति’ कर दिया तो भाजपा या एनडीए के किसी भी सहयोगी दल ने आपत्ति नहीं जताई। विपक्ष की इस एकजुटता को भाजपा आगामी लोक सभा चुनावों में गंभीर चुनौती मान रही है। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी लोक सभा चुनाव के मैदान में उतरे थे तब ऐसी कोई चुनौती उनके सामने नहीं थी। ‘इंडिया’ संगठन बनने के बाद इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि विपक्षी दल ना सिर्फ एकजुट होते दिखाई दे रहे हैं, बल्कि एनडीए के खिलाफ युद्ध करने को चुनावी बिगुल भी बजा रहे हैं। भाजपा के कुछ नेता ‘इंडिया’ संगठन के अंग्रेजी नाम को लेकर भी काफी असहज दिखाई दिए हैं। इतने असहज कि इंडिया नाम को अंग्रेजों की देन बता कर उसका विरोध भी कर रहे हैं।
उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर से भी इंडिया को हटा कर भारत रख दिया है। विपक्ष ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि यदि इंडिया नाम से इतनी आपत्ति है, तो क्या सरकार द्वारा चलाई जाने वाली उन सभी योजनाओं के नाम भी बदले जाएंगे जहां ‘इंडिया’ का उपयोग किया गया है? मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और स्टैंडअप इंडिया आदि। क्या भाजपा अपने सोशल मीडिया हैंडल के नाम एख्घ्4क्ष्दड्डत्ठ्ठ को भी बदलेगी? यदि अन्य राजनैतिक पार्टयिों के नाम को खंगाला जाए तो ऐसी कई पार्टयिां मिलेंगी जिनके नाम में भारत, भारतीय, इंडिया, इंडियन शब्द अवश्य मिलेगा। तो फिर इस बेतुके विवाद को क्यों खड़ा किया जा रहा है? असल में भाजपा और एनडीए को जिस बात से अधिक परेशानी है, वो विपक्षी दलों का ऐसा ऐलान है, जिसका सामना भाजपा को आने वाले लोक सभा चुनावों में करना पड़ेगा। गौरतलब है कि विपक्षी नेताओं ने इस बात की घोषणा कर दी है कि वो लोक सभा चुनावों में भाजपा और एनडीए के हर प्रत्याशी के खिलाफ ‘इंडिया’ संगठन के तहत अपने सभी दलों का समर्थित एक प्रत्याशी ही उतारेंगे जो उस संसदीय क्षेत्र में काफी लोकप्रिय होगा। जाहिर सी बात है कि इससे विपक्षी दलों में बंटने वाले वोट एकजुट हो जाएंगे और भाजपा को काफी नुकसान हो सकता है।
आगामी महीनों में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। उनके परिणाम देश की दिशा तय करेंगे। उसके बाद लोक सभा चुनाव में जहां बीजेपी के नेता हिन्दू मुसलमान के नाम पर ध्रुवीकरण करवाने की हर संभव कोशिश करेंगे वहीं ‘इंडिया’ बेरोजगारी, महंगाई, दलितों पर अत्याचार और समाज में बंटवारा कराने के आरोप लगाकर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करेगा। विपक्ष मोदी से 2014 में किए गए वायदों के पूरा न होने पर भी पर सवाल करेगा जबकि बीजेपी भारत को विश्व गुरु बनाने जैसे नारों से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगी। अब देखना यह होगा कि मतदाता किसकी तरफ झुकता है।
| Tweet |