मुद्दा : योगी के लिए किसान सर्वोच्च प्राथमिकता
औरों के लिए अन्नदाता का हित राजनीति का विषय हो सकता है, पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए कतई नहीं। वह दिल से किसानों का हित चाहते हैं।
मुद्दा : योगी के लिए किसान सर्वोच्च प्राथमिकता |
दरअसल, अपने समय में किसानों का वोट पाने के लिए सभी दलों ने किसानों के हित में नारे तो बेहद आकषर्क दिए पर उसके अनुरूप किया कुछ भी नहीं। सच पूछिए तो यही नाते देने वाले दल ही किसानों की बदहाली की मूल वजह भी हैं।
आज से नहीं मुख्यमंत्री बनने के पहले से कम लोगों को मालूम होगा कि सांसद रहते हुए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की स्थापना के लिए उन्होंने सरकार को गोरखनाथ मंदिर की करीब 60 एकड़ जमीन दे दी। यह निजी क्षेत्र का प्रदेश का पहला केवीके था। इसके पीछे मंशा यह थी कि किसान केवीके के जरिए खेतीबाड़ी में हो रहे अद्यतन प्रयोगों, फसल संरक्षा के सामयिक उपयोगी जानकारियों को जानकर कृषि विविधीकरण से अपनी आय बढ़ाएं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी किसान उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता में रहे। बसपा और सपा के कुशासन से प्रदेश का खजाना करीब-करीब खाली था। बावजूद चुनावी वायदे के मुताबिक उन्होंने बगैर किसी सहयोग के प्रदेश के 86 लाख लघु-सीमांत किसानों के 36 हजार करोड़ रु पये के कर्जे माफ कर दिए। वर्षो पहले पूर्व की सरकारों ने ‘लैब टू लैंड’ का नारा दिया था। मकसद यह था कि प्रयोगशाला में जो खेतीबाड़ी को लेकर जो शोध हो रहे हैं, वह किसानों के खेत तक पहुचेंगे तभी किसानों को असली लाभ होगा। योगी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में 18 केवीके की सौगात देकर पहली बार इस नारे को साकार किया।
प्रदेश में इसी मकसद से पहली बार 2019 में कृषि कुंभ का आयोजन हुआ। हर फसली सीजन के शुरू में ‘द मिलियन फार्मर्स स्कूल’ के जरिए लाखों किसानों तक खेतीबाड़ी की अद्यतन तकनीक के अलावा विभाग की योजनाओं से भी लाखों की संख्या में किसान अवगत हुए। इस योजना को दुनिया के कई देशों में सराहा गया। फसल विविधीकरण के जरिए किसान अपनी आय बढ़ाएं इसके लिए झांसी में स्ट्राबेरी, मुजफ्फरनगर एवं लखनऊ में गुड़, सिद्धार्थनगर में काला नमक महोत्सव का आयोजन किया। सरकार की योजना उन सभी जिलों में ऐसे महोत्सव करने की है, जिनके ओडीओपी (एक जिला, एक उत्पाद) खेतीबाड़ी से जुड़े हों। कोरोना के कारण इस पर थोड़ा गतिरोध लग गया। किसान अपने ही बीच के नवाचारी और प्रगतिशील किसानों से खेतीबाड़ी के उन्नत तौर-तरीकों को सुनें, जानें और सीखें, इसके लिए किसान सम्मान योजना शुरू की। यह निर्विवाद सत्य है कि पानी को छोड़ खेती हर चीज की प्रतीक्षा कर सकती है। यही वजह है कि हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए मोदी और योगी सरकार ने कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं। प्राथमिकता में वे योजनाएं हैं जो पिछली सरकारों की उपेक्षा के कारण वर्षो से लंबित हैं। इसी बाबत केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री सिंचाई योजना’ शुरू की। इस योजना के जरिए केंद्र की मदद से सरकार दशकों से लंबित कई सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन्हीं योजनाओं में करीब पांच दशक से लंबित ‘बाणसागर परियोजना’ को सरकार पूरी कर चुकी है। 26 हजार करोड़ रु पये की लागत वाली बुंदेलखंड की ‘अर्जुन सहायक नहर परियोजना’ भी लगभग तैयार है। सरकार की योजना सभी नई सिंचाई परियोजनाओं को कृषि जलवायु क्षेत्र के अुनसार ड्रिप एवं स्प्रिंकर से जोड़ने की है। कोरोनाकाल में भी मुख्यमंत्री ने निजी रूप से इस बात में दिलचस्पी ली कि किसानों को मड़ाई, उपज बेचने और नई फसल के लिए खाद-बीज की कोई दिक्कत न हो। योगी के लिए किसान हित सर्वोपरि है, तमाम योजनाओं से लाभान्वित लाखों-लाख किसान इसके गवाह हैं। प्रदेश में तीन नई चीनी मिलें लगाने के साथ ही योगी सरकार ने कोरोनाकाल में भी प्रदेश की सभी चीनी मिलों का संचलन कराया। इतना ही नहीं, अबतक का रिकार्ड 1.44 लाख करोड़ गन्ना मूल्य का भुगतान भी योगी सरकार के नाम है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से 79 हजार करोड़ रु पये की खाद्यान्न खरीद और शत प्रतिशत भुगतान, पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को 37 हजार करोड़ रु पये से अधिक की सहायता, पीएम फसल बीमा योजना में 26 सौ करोड़ रु पये से अधिक की क्षतिपूर्ति आदि ऐसे उदाहरण हैं, जो योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में राज्य को किसान हित में पहले पायदान पर स्थापित करते हैं। लखीमपुर की घटना की घटना पर राजनीति करने वाले यह तथ्य भले न बताएं, पर जनता जानती है। लखीमपुर की घटना के बाद जिस तरह मुख्यमंत्री ने किसानों की सारी मांग मान ली; उसके लिए भी उनकी सराहना हो रही है।
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