बाकी शहर भी तो सुधरें
भारत के शीर्ष तीन शहरों में बेंगलूरु को महिलाओं के लिए सामाजिक व औद्योगिक समावेश में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाला माना गया है।
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तमिलनाडु के आठ शहरों को इस सूची में स्थान प्राप्त हुआ, जिसमें कामकाजी महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित, समावेशी शहरों में दूसरे नंबर में राज्य की राजधानी चेन्नई है। जो बीते साल के सर्वेक्षण में पहले पायदान पर थी। लिंग समावेशी क्षेत्र के तौर पर 25 में से 16 शहर दक्षिण भारत के हैं। यह सर्वेक्षण महिलाओं के कामकाज, उनकी रहने की जगहों, आगे बढ़ने के तरीकों के आधार पर किया गया।
कोयंबटूर, तिरुचिरापल्ली, वेल्लोर, मदुरै, सेलम, इरोड, तिरुप्पुर भी इस सूची में शामिल हैं। देश में महिलाओं के लिए शीर्ष शहरों के सूचकांक, आदर्श शहरों व सवरेत्तम चलन की पहचान करता है। महिलाओं की प्रगति और उन्हें आग बढ़ने के मार्ग प्रशस्त करने में शहरों के मूल सिद्धांतों व सांस्कृतिक ताने-बाने की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। मुख्मंत्री एमके स्टालिन का दावा है कि भारत की औद्यौगिक महिला कार्यबल का चालीस प्रतिशत हिस्सा तमिलनाडु से आता है।
देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम कसने में बुरी तरह असफल सरकारों के लिए इस तरह के अध्ययन फौरी तौर पर राहत दे सकते हैं। मगर हकीकत यही है कि देश भर में प्रतिवर्ष तकरीबन चार लाख से अधिक मामले महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के दर्ज होते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार हर पंद्रहवें मिनट में बलात्कार की घटना दर्ज होती है, जिसमें राजस्थान शीर्ष पर है, उप्र-मप्र क्रमश: दूसरे-तीसरे स्थान पर हैं। कामकाजी महिलाओं के खिलाफ कार्यस्थल पर होने वाले शोषण के खिलाफ कानून लागू होने के बावजूद सुरक्षित वातावरण मिलना बेहद दुष्कर है।
हालांकि उक्त सर्वेक्षण में अध्ययन के लिए चुने गए शहरों के परिवेश व सांस्कृतिक महत्त्व को भी देखा जाना जरूरी है। क्योंकि दक्षिण के राज्यों में उत्तर की बनिस्पत शिक्षा अधिक है और लैंगिक विषमता भी कम है।
असल सवाल यह होना चाहिए कि महिलाओं के लिए सुरक्षित शहरों के तौर-तरीकों को अन्य राज्य सरकारें भी अपनाने का प्रयास करें। इससे महिला कार्य-बल की क्षमता भी बढ़ सकती है, वे उत्कृष्टतापूर्ण नतीजे देने में सफल होंगी, जो राष्ट्र की उन्नति व समृद्धि में महती भूमिका निभा सकता है।
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