सामयिक : नेतृत्व और संकल्प का समावेश

Last Updated 14 Jan 2025 01:33:45 PM IST

प्रयागराज त्रिवेणी संगम से आ रहे दृश्य अद्भुत हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर भारत ही एकमात्र देश है जहां इस तरह के अद्भुत आयोजन संभव हैं। केवल भारत नहीं, संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए यह न भूतो न भविष्यति वाली स्थिति है।


इसलिए नहीं कह सकते कि एक बार जब देश और नेतृत्व अपनी प्रकृति को पहचान कर आयोजन करता है तो वह एक मानक बन जाता है और आगे ऐसे आयोजनों को और श्रेष्ठ करने की प्रवृत्ति स्थापित होती है। यह मानना होगा कि 144 वर्ष बाद पौष पूर्णिमा पर बुधआदित्य योग जिसे, महायोग युक्त कह रहे हैं, उस महाकुंभ का श्री गणोश उसकी आध्यात्मिक दिव्यता के अनुरूप करने की संपूर्ण कोशिश केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है।

भारत में दुर्भाग्यवश, राजनीतिक विभाजन इतना तीखा है कि ऐसे महान अवसरों, जिससे केवल भारत और विश्व नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड के कल्याण का भाव पैदा होने की आचायरे की दृष्टि है, उसमें भी नकारात्मक वातावरण बनाया जा रहा है। होना यह चाहिए था कि राजनीतिक मतभेद रहते हुए भी संपूर्ण भारत और विशेष कर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल ऐसे शुभ और मंगलकारी आयोजन पर साथ खड़े होते, आने वालों का स्वागत करते और संघषर्, तनाव, झूठ, पाखंड, ईष्र्या, द्वेष, घृणा से भरे विश्व में भारत से शांति की आध्यात्मिक सलिला का मूर्त अमूर्त संदेश विस्तारित होता।

हमारे देश का संस्कार इतना सुगठित और महान है कि नेताओं के वक्तव्यों की अनदेखी करते हुए करोड़ों लोग अपने साधु-संत, आचायरे के द्वारा दिखाए रास्ते का अनुसरण करते हुए जाति, पंथ, क्षेत्र, भाषा, राजनीति सबका भेद भूलकर संगम में डुबकी लगाते, आवश्यक अपरिहार्य कर्मकांड करते आकषर्क दृश्य उत्पन्न कर रहे हैं, अन्यथा समाजवादी पार्टी और उनके नेता जिस तरह के वक्तव्य दे रहे हैं उनसे केवल वातावरण विषाक्त होता। थोड़ी देर के लिए अपनी दलीय राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलकर विचार करिए। क्या स्वतंत्र भारत में पूर्व की सरकारों ने ऐसे अनूठे उत्सव या आयोजन को उसके मूल संस्कारों और चरित्र के अनुरूप भव्यता प्रदान करने, संपूर्णता तक पहुंचाने एवं संपूर्ण विश्व को बगैर किसी शब्द का प्रयोग किए भारत के आध्यात्मिक अनुकरणीय शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए इस तरह केंद्रित उद्यम और व्यवस्थाएं किए थे? इसका ईमानदार उत्तर है, बिल्कुल नहीं।

कहने का तात्पर्य यह नहीं कि पूर्व सरकारों ने कुंभ के लिए कुछ किया ही नहीं। लाखों करोड़ों व्यक्ति और संपूर्ण भारत के सारे संत-संन्यासी-साधू-महंत आचार्य दो महीने के लिए वहां उपस्थित हों तो सरकार के लिए उसकी व्यवस्था और अपरिहार्य हो जाती है। सच यह है कि जिस तरह मोदी सरकार और योगी सरकार ने कुंभ को उसकी मौलिकता के अनुरूप वर्तमान देश, काल, स्थिति के साथ तादात्म्य बिठाते हुए कार्य किया वैसा पहले कभी नहीं हुआ। वास्तव में हमारे शीर्ष नेतृत्व में देश और प्रदेश दोनों स्तरों पर एक साथ कभी ऐसे लोग नहीं रहे जिन्हें महाकुंभ या हमारे धार्मिंक- सांस्कृतिक-आध्यात्मिक आयोजनों, मुहूतरे, कर्मकांडों का महत्त्व, इसका आयोजन कैसे, किनके द्वारा, किन समयों पर होना चाहिए ना इसका पूरा ज्ञान रहा और न लेने के लिए कभी इस तरह प्रयत्न हुआ। प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी संन्यासी हैं और उन्हें इसका ज्ञान है।

उनके मंत्रिमंडल में भी ऐसे साथी हैं जो इन विषयों को काफी हद तक समझते हैं, जिनकी निष्ठा है। निष्ठा हो और संकल्प नहीं हो तो ज्ञान होते हुए भी साकार नहीं हो सकता। आप योगी आदित्यनाथ के समर्थक हों या विरोधी इन विषयों पर उनकी समझ, निष्ठा व संकल्पबद्धता को किसी दृष्टि से नकार नहीं सकते। जब इस तरह की टीम होती है तभी महाकुंभ, अयोध्या या काशी विनाथ अपनी मौलिकता के साथ संपूर्ण रूप से प्रकट होता है। केंद्र का पूरा मार्गदशर्न और उसके अनुरूप सहायता हो तो समस्याएं नहीं आती। 2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद प्रयागराज में ही 2019 में अर्धकुंभ आयोजित हुआ था और वहां से नया स्वरूप सामने आना आरंभ हुआ। पहली बार लोगों ने केंद्र व प्रदेश का संकल्प देखा। 2019 में पहली बार राज्य सरकार ने 2406.65 करोड़ व्यय किया जिसकी पहले कल्पना नहीं थी। इस बार सरकार की ओर से 5496.48 करोड़ रुपये व्यय अभी तक हुआ और केंद्र ने भी इसमें 2100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त सहयोग दिया है। कुंभ के आयोजन के साथ गंगा और यमुना दोनों में शून्य डिस्चार्ज सुनिश्चित करने की कोशिश हुई है।

सभी 81 नालों का स्थाई निस्तारण सुनिश्चित करने की तैयारी की गई। यह तो नहीं कह सकते कि गंगा, यमुना और त्रिवेणी संगम का जल शत-प्रतिशत शुद्ध और स्वच्छ हो गया, किंतु अधिकतम कोशिश कर हरसंभव परिणाम तक ले जाने के परिश्रम से हम इनकार नहीं कर सकते। कुंभ को हरित कुंभ बनाने की दृष्टि से पहली बार मोटा-मोटी 3 लाख के आसपास पौधरोपण का आंकड़ा है। उसी तरह केवल रिकॉर्ड संख्या में डेढ़ लाख शौचालय बनाए गए बल्कि 10 हजार से अधिक सफाई कर्मचारियों की तैनाती की गई। शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए लगभग 1230 किलोमीटर पाइपलाइन, 200 वाटर एटीएम तथा 85 नलकूप अधिष्ठान की व्यवस्था है। हालांकि हिन्दुओं और सनातनियों के अंदर तीर्थयात्राओं में कष्ट सहने की मानसिकता और संस्कार है।  हमारा चरित्र ऐसा है जहां जो कुछ व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं उसी में अपना कर्मकांडीय दायित्व पूरी करते हैं। किंतु सरकार व्यवस्था करे तो सब कुछ आसान सहज और अनुकूल होता है।

आप राजनीतिक रूप से आलोचना करिए किंतु सत्य है कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही ने कभी ऐसे अवसरों को इस तरह जन-जन तक मीडिया के माध्यम से पहुंचाने और लोगों के अंदर आने की भावना पैदा करने की दृष्टि से विचार ही नहीं किया। टीवी चैनलों पर विहंगम दृश्य देखकर आम लोगों की प्रतिक्रियाएं हैं कि एक बार अवश्य जाना जाकर वहां डुबकी लगानी चाहिए। अयोध्या में पिछले वर्ष श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में हमने प्रदेश सरकार की पहली बार ऐसी व्यवस्था देखी और अब महाकुंभ में उसका विस्तार है। एक साथ हजारों की संख्या में यज्ञ अनुष्ठान से बना माहौल, मंत्रों की ध्वनि संगीत, जयकारे सब सूक्ष्म रूप से पूरे वातावरण में कैसी दिव्यता उत्पन्न करेंगे इसकी कल्पना करिए।
(लेख में विचार निजी है)

अवधेश कुमार


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