सरोकार : अफगान महिला फुटबॉल टीम का क्या होगा!

Last Updated 22 Aug 2021 12:38:54 AM IST

अफगानिस्तान फिर से तालिबान के नियंतण्रमें है, और वहां की औरतों की हालत खराब है।


सरोकार : अफगान महिला फुटबॉल टीम का क्या होगा!

पर्दादारी, शिक्षा से महरूम करने, और नौकरियां गंवाने का खतरा तो है ही, साथ ही जान जाने का भी खौफ है। ऐसी औरतों में देश की महिला खिलाड़ी शामिल हैं। चूंकि औरतों का खेलों में हिस्सा लेना तालिबान को बर्दाश्त नहीं। कोपेनहेगन में रहने वाली अफगानिस्तान की पूर्व फुटबॉल कैप्टन खालिदा पोपल ने अपनी साथिनों से कहा है कि उन्हें अपने किट्स और यूनिफॉर्म को जला देना चाहिए। सोशल मीडिया से अपने प्रोफाइल हटा देने चाहिए। तभी तालिबान की नजरों से बच सकती हैं। वैसे अफगानिस्तान की साइकिलिंग फेडरेशन ने भी अपनी महिला सदस्यों को सलाह दी है कि घरों में रहें। सोशल मीडिया पर किसी तरह की पोस्ट कतई न करें। वैसे अफगानिस्तान की लड़कियों की रोबोटिक्स टीम की कुछ सदस्य कतर चली गई हैं। इस टीम को बनाने वाली हैं, रोया महबूब। टीम का नाम अफगान ड्रीमर्स है। 12 से 18 साल की लड़कयों वाली टीम ने पिछले साल कारों के पार्ट्स की मदद से वेंटिलेटर का एक प्रोटोटाइप बनाया था। कोविड-19 को देखते हुए यह काम किया गया था।

अफगानिस्तान की महिला फुटबॉल टीम 2010 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल रही है। यूं फुटबॉलर्स के लिए खेलना तब भी कोई आसान नहीं था। जैसा कि पोपल ने एक इंटरव्यू में कहा था, मेरे लिए सिर्फ  बंदूक थामने वाले तालिबान दिक्कत नहीं थे। मेरे लिए टाई, सूट और बूट पहनने वाले तालिबान ज्यादा बड़ी दिक्कत थे। तालिबान जैसी मानसिकता वाले लोग मेरे लिए समस्या थे, जो महिलाओं और उनकी आवाज के खिलाफ थे। तो, अफगान फुटबॉलर्स को भी ऐसे ही तालिबान से लड़ना पड़ा है। महिला फुटबॉलर्स हिजाब पहनकर मैच खेलती थीं पर यह खेल भर नहीं था। पुरुष प्रधान किसी खेल को खेलना अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी था। जुलाई 2020 में फीफा एथिक्स कमिटी ने अफगानिस्तान फुटबॉल फेडरेशन के अध्यक्ष को पद के दुरुपयोग और खिलाड़ियों के यौन शोषण का दोषी पाया था तो पता चला कि औरतों को कई मोचरे पर लड़ना पड़ता है।

इस बीच एक और जीत दर्ज हुई, जब मैच की स्टेडियम ऑडियंस में महिलाएं भी पुरु षों के साथ नजर आने लगीं। हंसती मुस्कुराती, और खिलाड़ियों का जोश बढ़ाने वाली महिला दशर्कों से स्टेडियम आबाद हुए तो एक अलग ही जीत नजर आई। अधिकारों की जीत। पर क्या अफगानिस्तान में महिला खेलों के भविष्य पर अंधेरा छाने वाला है? 2001 में अमेरिकी दखल से पहले के पांच साल, जब तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा था, काबुल का गाजी स्टेडियम फुटबॉल के लिए नहीं, किसी और बात के लिए जाना जाता था। वहां तालिबान के सख्त कानूनों का उल्लंघन करने वालों को फांसी दी जाती थी। यूं वहां टीम के भविष्य को लेकर सभी सशंकित हैं।

टीम की पूर्व कैप्टन शामिला कोहेश्तानी को उम्मीद नहीं है कि तालिबान अपना वादा निभा पाएगा। कोहेश्तानी का मानना है कि इस्लाम की यह  परंपरावादी परिभाषा थोड़ी मुश्किल है। जैसे तालिबान जिस शरिया कानून की बात करता है, उसमें औरतों को खेल खेलने की इजाजत नहीं है। इसीलिए कोहेश्तानी का कहना है कि ‘हम लोगों ने कई दिन पहले ही महिलाओं की फुटबॉल टीम को अलविदा कह दिया।’ आगे क्या होने वाला है, यह तो आगे ही पता चलेगा।

माशा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment