वैश्विकी : विदेश नीति के मतैक्य पर सवाल

Last Updated 05 Jun 2021 11:52:50 PM IST

नरेन्द्र मोदी सरकार के सात वर्ष पूरे होने पर इस बार कोरोना महामारी के संकट के कारण कोई विशेष आयोजन नहीं हुआ।


विदेश नीति के मतैक्य पर सवाल

सरकार की घरेलू और विदेश नीति को लेकर गंभीर लेखा-जोखा नहीं लिया गया, लेकिन पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति को लेकर राजनयिकों के बीच एक बहस शुरू हुई। सबसे पहले पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने मोदी सरकार की विदेश नीति के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता की घोषित नीति के कारण देश अंतमरुखी हो रहा है, जिससे विदेश नीति का दायरा संकुचित हुआ है। उनके अनुसार सरकार के राष्ट्रवादी रूझान के कारण पड़ोसी देशों में भी भारत का असर घटा है। मेनन ने पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ हुए संघर्ष और तनाव को लेकर भी मोदी सरकार पर आक्षेप किए। मेनन की आलोचना के जवाब में पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, वीना सिकरी आदि अनेक पूर्व राजनयिकों ने मोदी सरकार की विदेश नीति का बचाव करते हुए एक लेख लिखा।

राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को लेकर आरोप-प्रत्यारोप

आमतौर पर किसी भी देश की विदेश नीति राष्ट्रीय मतैक्य पर आधारित होती है। विदेश नीति के जरिये कोई देश अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाता है और उनका संरक्षण करता है। भारत में भी विभिन्न राजनीतिक दल विदेश नीति पर दलीय भावना से ऊपर उठकर विचार करते हैं। पिछले कुछ वर्षो के दौरान विदेश नीति भी दलीय राजनीति के दलदल में फंसती नजर आ रही है। विपक्षी दल मोदी सरकार को घेरने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कंवल सिब्बल और उनके सहयोगियों ने इसी प्रवृत्ति को लेकर देशवासियों को आगाह किया है। इन राजनयिकों के लेख का सार तत्व यह है कि मोदी सरकार ने देश की विदेश नीति की निरंतरता को कायम रखा है। मनमोहन सिंह सरकार और उसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने विदेश नीति की जो दिशा तय की थी, मोदी सरकार कुल मिलाकर उसी पर आगे बढ़ रही है। सरकार अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने और बाहरी खतरों का मुकाबला करने के उपाय कर रही है। लेख में शिवशंकर मेनन का सीधे रूप से उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि जिन लोगों पर पूर्व में विदेश नीति और सुरक्षा नीति के संचालन की जिम्मेदारी थी वे अब मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं।

परमाणु नीति

राजनयिकों ने इस संबंध में देश की परमाणु नीति का जिक्र किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को परमाणु शक्ति बनाने के बाद अमेरिका से परमाणु नीति को लेकर गहन विचार-विमर्श किया। मनमोहन सरकार ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जिसकी परिणति भारत और अमेरिका के परमाणु समझौते के रूप में हुई। मोदी सरकार के दौरान रूस भारत का भरोसेमंद दोस्त बना रहा जबकि इस दौरान भारत में अन्य देशों के साथ नई साझेदारी की। खाड़ी देशों के साथ संबंधों को व्यापक बनाने की जो शुरुआत मनमोहन सरकार के समय हुई थी, उसे मौजूदा सरकार ने और व्यापक बनाया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी अरब और खाड़ी देशों के शासकों के साथ जैसे व्यक्तिगत संबंध स्थापित किए उसे बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की सक्रियता

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की सक्रियता की शुरुआत भी मनमोहन सरकार के दौरान हो गई  थी। पूर्ववर्ती सरकार की ‘लुक ईस्ट’ (पूर्व की ओर देखो) नीति को मौजूदा सरकार ने ‘एक्ट ईस्ट’ (पूर्व में सक्रियता) में बदला। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में भारत और अमेरिका के बीच होने वाले नौसेना अभ्यास का दायरा बढ़ाकर इसमें जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया गया। विदेश नीति को लेकर चल रहा यह मंथन आगामी दिनों में भारत के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है बशत्रे कि दलीय भावना और पूर्वाग्रह से मुक्त होकर राष्ट्रीय हितों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। महामारी के काल में भी भारत ब्रिक्स देशों की शिखर वार्ता का आयोजन करने वाला है। निरंतर जटिल हो रहे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कंटील रास्ते पर चलते हुए भारत अपने राष्ट्रीय हितों को कैसे आगे बढ़ाता है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा। आवश्यकता इस बात की है कि विदेश नीति के बारे में राष्ट्रीय मतैक्य और आम राय के पुराने सिद्धांत का पूरी तरह पालन किया जाए। मौजूदा दौर में भारत विभाजित मानसिकता और नीतियों के जरिये संकट का मुकाबला नहीं कर सकता।

डॉ. दिलीप चौबे


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