बतंगड़ बेतुक : एक ठो आयुर्वेदिया एक ठो एलोपैथिया

Last Updated 05 Jun 2021 11:47:06 PM IST

झल्लन आया तो साथ में एक ठो बाबू एलोपैथिया और एक ठो बाबा आयुर्वेदिया को पकड़ लाया और दोनों को आमने-सामने ला बिठाया, फिर हमसे बोला, ‘देखिए ददाजू, इन्हें ठीक से देखिए, ये दोनों पूरे मुल्क में रार मचा रहे हैं।


बतंगड़ बेतुक : एक ठो आयुर्वेदिया एक ठो एलोपैथिया

दोनों अपना-अपना असली रंग दिखा रहे हैं, दोनों जिद पर अड़े हैं और न ये अपना झंडा झुका रहे हैं, न ये झुका रहे हैं।’ हमने कहा, ‘तो हमें इसमें क्या करना है, ये इनका आपसी मामला है जो इन्हें ही निपटना है, एलोपैथी बड़ी है या आयुर्वेद ये इन दोनों को ही तय करना है।’

पहले मुंह बाबा आयुर्वेदिया ने खोला और वह कटु प्रहारक अंदाज में बोला, ‘हमने असरदार आयुर्वेदिक औषधियों के भंडार भर लिये हैं, जान घातक कोरोना की दवा ईजाद कर लिये हैं पर हमारी व्याधिमारक उपलब्धियों पर ये एलोपैथिये बेबात हंगामा खड़ा कर दिये हैं।’ एलोपैथिया तैश में आकर बोला, ‘हंगामा हम नहीं तुम लोग खड़ा कर दिये हो, एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस घोषित कर दिये हो, अपनी स्टुपिड बातों से एलोपैथिया बिरादरी को गुस्से से भर दिये हो। जब भी इंसान की जान सांसत में आती है तो एलोपैथी ही काम आती है, बीमारों की भीड़ एलोपैथियों के पास जाती है, अपना पैसा एलोपैथियों पर पुजाती है और यही बात टट्पुंजिये आयुर्वेदियों को नहीं सुहाती है।’

आयुर्वेदिया ने प्रतिवाद किया, ‘हमारा औषधि विज्ञान शताब्दियों पुराना है लेकिन एलोपैथियों ने न कभी इसे समझा, न कभी इसे माना है। कोरोना महामारी में जितने लोग कोरोना से नहीं मर रहे हैं उससे ज्यादा एलोपैथी से मर रहे हैं, यह बात हम नहीं बड़े-बड़े विद्वान कह रहे हैं और हमने जो शर्तिया इलाज वाली कोविडवटी तैयार की है उस पर मातम कर रहे हैं।’ बाबू एलोपैथिया गुस्से से बोला, ‘काहे डींग हांक रहा है, काहे कोरी हवा फांक रहा है। जब किसी आयुर्वेदिया की जान पर बन आती है तो उसे तेरी दवा की नहीं बल्कि एलोपैथी की याद आती है और उसकी गाड़ी एलोपैथिया के दरवाजे पर पहुंच जाती है। हम तेरे कई संगी-संघातियों के नाम बता सकते हैं जो बीमार पड़े तो तेरे पास नहीं, हमारे पास आये, सिर्फ इसलिए कि उनकी जान बच जाये।’

हमने बीच में टोका, ‘भाई, तुम दोनों कांग्रेस-बीजेपी की तरह एक-दूसरे पर आरोप लगाओगे, एक-दूसरे पर खौखियाओगे, अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग गाओगे तो लोगों की सेवा कैसे करोगे?’ एलोपैथिया बोला, ‘हम जो दवाइयां देते हैं उन पर दुनियाभर में अनुसंधान होते हैं, परीक्षण होते हैं, उनका प्रभाव तय किया जाता है तब हमसे इलाज के लिए कहा जाता है। पूरी दुनिया में एलोपैथी से इलाज हो रहा है पर एलोपैथी के नाम पर हमारे बाबा के पेट में दर्द हो रहा है।’ आयुर्वेदिया बोला, ‘हम भी बिना अनुसंधान के औषधि निर्माण नहीं करते, बिना परीक्षण उनका प्रभाव तय नहीं करते, हमारी सनातन, सांस्कृतिक औषधि अनुसंधान पीठ में सारे नमूने परंपरानुसार लिये जाते हैं और सारे औषधि निर्माण उसी से किये जाते हैं। जिन बीमारियों का तुम्हारे पास कोई इलाज नहीं है, हम ऐसी पचासों बीमारियां गिना सकते हैं और हम अपनी औषधियों से इन बीमारियों को जड़ से मिटा सकते हैं। हमारा औषधि विज्ञान एलोपैथी से बहुत आगे है, लेकिन किसी एलोपैथिया की समझ में हमारा यह विज्ञान कभी नहीं आना है।’

एलोपैथिया चिढ़कर बोला, ‘तुझे न तो एलोपैथी की कोई जानकारी है, तेरे पास बीमारियों के निराकरण में एलोपैथी के योगदान की न कोई समझदारी है इसीलिए बेसिर-पैर की बातों का तेरा सिलसिला जारी है। अगर सचमुच तूने कोरोना की रामबाण दवा ईजाद कर ली है तो सरकार के पास क्यों नहीं जाता, सरकार को अपने चमत्कार के बारे में क्यों नहीं समझाता और कोविड के टीके-वीके सब बेकार लग रहे हैं, तो तू इनकी जगह पर मरीज को कोविडवटी क्यों नहीं खिलवाता?’ आयुर्वेदिया बोला, ‘हम यही तो चाहते हैं कि सरकार और कोविड से परेशान लोग हमारी बात समझ जायें, इधर-उधर न भटकें सीधे हमारे पास आयें और हमारी कोविडवटी खरीदकर ले जायें।’ एलोपैथिया बोला, ‘तुम्हारी कोविडवटी बिक नहीं रही है, इसीलिए तुम्हें एलोपैथिया इलाज खल रहे हैं।’ आयुर्वेदिया ने कहा, ‘तुम लोग ड्रग माफिया चला रहे हो, छोटे से इलाज के लिए लाखों के बिल बना रहे हो।’

हमने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘भाई, आपस का पंगा-दंगा रहने दो, जहां एलोपैथी काम आ रही है वहां एलोपैथी को काम करने दो, जहां आयुर्वेद काम करता है वहां उसे काम करने दो, और कौन किसका इलाज चाहता है यह बीमार को तय करने दो।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, यह एकदम गलत सलाह है, इसे हम नहीं मानेंगे और न इसे हमारे एलोपैथिया और आयुर्वेदिया बंधु मानेंगे। हमारी सलाह होगी कि दोनों सरकार और विपक्ष की तरह, केंद्र और बंगाल की तरह एक-दूसरे से पंगा लें, दोनों अपनी बात पर अड़े रहें और अपने तर्क-कुतर्क के हथियारों से एक-दूसरे को निपटाने के लिए खड़े रहें, यही इस देश की आधुनिक परंपरा है जिसे ये दोनों ही निभाएं और निष्ठा से आगे बढ़ाएं।’

विभांशु दिव्याल


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