सरोकार : हम लौट आए ओल्ड नॉर्मल की तरफ

Last Updated 13 Dec 2020 12:45:06 AM IST

लॉकडाउन ने हम सबको बदल दिया था। ज्यादा सोना, पसंद का खाना खाना, अपनी रुचियों के लिए ज्यादा समय निकालना।


सरोकार : हम लौट आए ओल्ड नॉर्मल की तरफ

इसके अलावा मिल-जुलकर घर परिवार की देखभाल करना, बच्चों का खयाल रखना और घर का काम करना। लेकिन जैसे-जैसे हालात न्यू नॉर्मल की तरफ बढ़े, ये बदलाव अपनी धुरी पर वापस आ गए। शोध बताते हैं कि ये बदलाव अस्थायी थे। महामारी की वजह से पुरु ष केयरिंग के काम में लगे जरूर थे, लेकिन धीरे-धीरे वापस अपनी भूमिकाओं में आ गए। अवैतनिक काम फिर से औरतों के जिम्मे आ गया।
यूके के ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिसटिक्स (ओएनएस) के डेटा बताते हैं कि पहले लॉकडाउन के दौरान भले ही पुरुषों ने बच्चों की देखभाल में अधिक समय खर्च किया, लेकिन अब मामला पलट गया है। ओएनएस ने मई में देखा कि लॉकडाउन के चलते बच्चों की देखभाल में पुरु षों का जितना समय व्यतीत होता है, उसमें 58 फीसद की बढ़ोतरी हुई। 2015 में महिलाएं जितना वक्त बच्चों की देखभाल में खर्च करती थीं, पुरुष उसका सिर्फ  39 फीसद समय बच्चों का खयाल रखते थे। ब्रिटेन में पहले लॉकडाउन के दौरान यह समय बढ़कर 64 फीसद हो गया। लेकिन स्कूल खुलने के बाद बच्चों की देखभाल का जिम्मा औरतों पर आ गया। वे पुरु षों के मुकाबले 99 फीसद अधिक समय बच्चों की देखभाल पर खर्च कर रही हैं। अगर सिर्फ  माता-पिता नहीं, पूरी आबादी के लिहाज से इस बात का आकलन किया जाए कि बच्चों की देखभाल में कौन सबसे ज्यादा समय बिताता है तो महिलाएं एक दिन में औसत 33.6 मिनट, और पुरुष 16.9 मिनट इस काम में लगाते हैं। यानी हम ओल्ड नॉर्मल की तरफ लौट रहे हैं।

अब कुछ जायजा अपने देश का भी। केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसएस) ने एक नई तरह का सर्वेक्षण किया जिसका नाम है, समय के उपयोग का सर्वेक्षण। इसे जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 के बीच कराया गया था। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि घरेलू कार्यों- खाना पकाने, सफाई, घरेलू प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका सर्वाधिक 81.2 फीसद है, जबकि इसमें पुरु षों का योगदान महज 26.1 फीसद है। इन कार्यों के लिए जहां महिलाएं एक दिन में 299 मिनट (करीब पांच घंटे) खर्च करती हैं, वहीं पुरु ष इसमें 97 मिनट (1 घंटे और 37 मिनट) ही खर्च करते हैं। इसके अलावा परिवार के सदस्यों की देखरेख में भी पुरु ष एवं महिलाओं द्वारा लगाए जाने वाले समय में काफी अंतर है। सिर्फ  14 फीसद पुरु ष परिवार के सदस्यों यानी कि बच्चों या फिर बुजुगरे की देखभाल करने का कार्य करते हैं और इसके लिए प्रतिदिन वे अपना औसतन 76 मिनट (एक घंटे 16 मिनट) खर्च करते हैं। इसके मुकाबले महिलाएं इन कार्यों के लिए पुरु षों के मुकाबले दोगुना समय दो घंटा और 14 मिनट प्रतिदिन खर्च करती हैं।
लॉकडाउन के दौरान इसमें थोड़ा बहुत बदलाव हुआ होगा, लेकिन ब्रिटेन की ही तरह यहां भी दोबारा स्थिति वही हो रही है। महिलाओं के अवैतनिक काम से अक्सर देखभाल में होने वाला खर्च बच जाता है और परिवार के अन्य लोग घरेलू काम से भारमुक्त रहते हैं। लेकिन उनकी इस मेहनत को कभी सम्मान के साथ स्वीकार नहीं किया जाता। हां, महामारी ने दिखाया है कि अवैतनिक काम असल में दुनिया के लिए एक सामाजिक सुरक्षा की तरह है। ये दूसरों के लिए बाहर जाकर कमाना संभव बनाता है। पुरु षों को बस यह सोचना होगा कि उन्हें महिलाओं का हाथ नहीं बंटाना- अपने घर का काम करना है।

माशा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment