हैदराबाद निकाय चुनाव : भाजपा की सफलता के मायने
भाजपा ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में 48 सीटें जीत कर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) को 44 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर सिमटा देगी तथा सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) 55 सीटों तक सीमित रहकर बहुमत से वंचित रह जाएगी, इसकी उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी।
हैदराबाद निकाय चुनाव : भाजपा की सफलता के मायने |
आखिर, एक्जिट पोलों में भी टीआरएस को बहुमत मिलता दिखाया गया था। ध्यान रखिए 2016 में टीआरएस ने 150 में से 99 वॉर्ड जीत कर बहुमत प्राप्त किया था जबकि एआईएमआईएम 44 सीटें तथा भाजपा को केवल चार सीटें मिली थीं। भाजपा के लिए चार से 48 की उछाल सामान्य नहीं है। वोट के अनुसार भाजपा टीआरएस से केवल 0.25 प्रतिशत वोट पीछे है। भाजपा को सिर्फ 8500 वोट और मिलते तो वह पहले स्थान पर होती। 2016 में टीआरएस को कुल 14,68,618 वोट मिले थे। इस बार घटकर 12,04,167 रह गए। तब भाजपा को केवल 3,46,253 वोट मिला था। इस बार उसके वोटों की संख्या है,11,95,711 जबकि 2016 में उसे 10.34 प्रतिशत वोट मिला था तो इस बार 34.56 प्रतिशत। हालांकि ओवैसी का वोट 2016 में 15.85% से बढ़कर 18.28% हो गया है। इसका कारण मुस्लिम मतों का उनके पक्ष में ध्रुवीकरण होना रहा।
वास्तव में भाजपा ने जिस तरह ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम का चुनाव लड़ा वो बहुत लोगों को हैरत में डालने वाला था। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह के नेतृत्व में हर चुनाव को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में लड़ना भाजपा का स्वभाव बन चुका है। इसके पीछे उसका स्पष्ट राजनीतिक लक्ष्य होता है। इस तरह हैदराबाद नगर निगम चुनाव को वर्तमान भाजपा के स्वभाव के अनुरूप माना जा सकता है। किंतु नहीं। यहीं तक सीमित कर देने से इसका व्यापक परिप्रेक्ष्य ओझल हो जाएगा। प्रश्न है कि भाजपा के राजनीतिक लक्ष्य थे क्या? चुनाव प्रचार के दौरान अपनाए गए तेवरों तथा परिणाम के बाद आ रही प्रतिक्रियाओं से इसे काफी हद तक समझा जा सकता है। सच यह है कि हैदराबाद भाजपा के लिए उसकी अपनी दृष्टि में अनेक अन्य ऐसे चुनावों से परे व्यापक राजनीतिक महत्त्व वाला था। चुनाव अभियानों ने इसे काफी हद तक स्पष्ट कर दिया था। अब परिणामों ने उनको और पुष्ट किया है। स्वयं गृह मंत्री अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर जैसे नेताओं को भाजपा ने उतारा। भूपेन्द्र यादव को चुनाव प्रभारी बनाया तथा दक्षिण के उभरते युवा नेता तेजस्वी सूर्या सहित अनेक नेताओं को वहां केंद्रित कर दिया तो यह यूं ही नहीं था। महाराष्ट्र मूल के लोगों को खींचने के लिए जावड़ेकर के अलावा देवेंद्र फडणवीस तक को प्रचार के लिए बुलाया गया।
हैदराबाद एवं तेलंगाना तक सीमित होकर विचार करें तो भाजपा को भी पता था कि उसे बहुमत नहीं मिलेगा किंतु वर्तमान प्रदशर्न उसे संतुष्ट करने वाला है तथा इससे भविष्य के लिए उम्मीद काफी बढ़ गई है। भाजपा के प्रदेश प्रमुख बी संजय कुमार ने इसे भगवा हमला कहा है। अन्य नेताओं के बयानों में भी आपको टीआरएस का विकल्प होने के दावों के साथ हिंदुत्व के मुद्दे तथा ओवैसी का उल्लेख मिल रहा है। वास्तव में भाजपा के लिए यह स्थानीय यानी हैदराबाद से लेकर तेलंगाना तथा दक्षिण में विस्तार के साथ वैचारिक और राजनीतिक तौर पर राष्ट्रव्यापी संदेश की दृष्टि से महत्त्व को समझना होगा।
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। इसका सालाना बजट 6 हजार 150 करोड़ रु पये का है। इसकी आबादी तकरीबन 80 लाख है, जिसमें से 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। इसमें हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मल्काजगिरि और संगारेड्डी समेत 4 जिले आते हैं। विधानसभा की 24 और लोक सभा की 5 सीट आती हैं। ओवैसी यहीं से लोक सभा सांसद हैं। प्रदेश की राजनीति के लिए इसका महत्त्व समझने में अब कठिनाई नहीं होनी चाहिए। हालांकि राजनीतिक तौर पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर मोदी सरकार के साथ खड़े नजर आते हैं, संसद में सहयोग करते हैं पर वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का भाग नहीं हैं। तेलंगाना में भाजपा का आधार वर्षो पुराना है। संयुक्त आंध्र के इस इलाके से उसे सीटें मिलती थीं। हैदराबाद में प्रदशर्न पर पार्टी का बयान है कि हम टीआरएस का विकल्प बनकर उभर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस और तेदेपा का जनाधार नेस्तनाबूद होने के बाद भाजपा के लिए स्थान बनता है। तो तय मानिए हैदराबाद नगर निगम के साथ भाजपा ने 2023 विधानसभा चुनाव के लिए प्रयाण कर दिया है। भाजपा दक्षिणी राज्यों में जहां संभव है वहां अकेले नहीं तो दलों के गठबंधन से अपने विस्तार की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
ओवैसी केवल एक लोक सभा सीट जीतते हैं पर देश में मुसलमानों के सबसे मुखर तथा कट्टर नेता के रूप में उभर चुके हैं। आक्रामक मुस्लिमवाद के प्रतीक बन चुके हैं। उनके विरोधी उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना का अवतार घोषित करते हैं। हैदराबाद के उनके गढ़ में भाजपा नेताओं द्वारा खुलेआम उनका नाम लेकर चुनौती देने का असर राष्ट्रव्यापी असर होना निश्चित है। भाजपा यह संदेश देने में सफल है कि ओवैसी और उनके समर्थकों को चुनौती देकर काबू करने में वही सफल हो सकती है। योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह ओवैसी पर हमला किया, फैजाबाद को अयोध्या तथा इलाहाबाद को प्रयागराज करने की तर्ज पर सत्ता में आने के बाद हैदराबाद को भाग्यनगर करने का वादा किया, वह भाजपा की ऐसी रणनीति है जिससे उसका जनाधार देशव्यापी मजबूत होगा। उसने स्थानीय मुद्दों को साइड किया और राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया। नगर निगम के चुनाव में बिजली, पानी, सड़क, कूड़ा-करकट जैसे स्थानीय मुद्दे गौण रहे तथा राष्ट्रीय और हिंदुत्व की ध्वनि गूंजती रही। सर्जिकल स्ट्राइक, जम्मू कश्मीर से 370 का अंत, बांग्लादेशी घुसपैठिए, रोहिंग्या सब थे। तेजस्वी सूर्या कहते थे कि ओवैसी भाइयों ने तो केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है। ओवैसी को वोट भारत के खिलाफ वोट है।
हैदराबाद की विजय ने भाजपा के अंदर आत्मविश्वास और उत्साह परवान चढ़ा दिया है। इसका असर उसके चुनावी व्यवहार में दिखाई देगा। हैदराबाद के नुस्खे पूरी शक्ति से बंगाल में आजमाए जाएंगे। वहां 29 प्रतिशत मुसलमानों के कारण ओवैसी भी कूद रहे हैं तो वहां चुनाव अभियान में हैदराबाद आएगा ही। ओवैसी भाजपा के लिए बिन मांगे वरदान साबित हो रहे हैं। तो तैयार रहिए अभी से पूरे बंगाल में हैदराबाद की गूंज ज्यादा प्रभावी तरीके से सुनने के लिए।
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