यौन हिंसा : बहस के उपेक्षित पक्ष
बढ़ती यौन हिंसा और इससे जुड़ी क्रूरता जिस तेजी से बढ़ी है, उससे पूरा देश आहत है, और विचलित है। कई स्तरों पर गहरी चिंता बार-बार व्यक्त की जा रही है।
यौन हिंसा : बहस के उपेक्षित पक्ष |
इस विषय पर बहस तेज हुई है पर इस विमर्श में अधिक जोर इस ओर ही दिया जा रहा है कि कड़ी सजा हो और कानूनी कार्यवाही में तेजी आए पर यह तो इस गंभीर मुद्दे का केवल एक पक्ष ही है। लेकिन मूल बात तो यह है कि इस तरह की हिंसा की प्रवृत्ति बुनियादी तौर पर तेजी से कम हो।
कह सकते हैं कि हमारा समाज कई तरह के नये असर और तकनीकी के दबाव में बहुत तेजी से बदल रहा है। लेकिन सामाजिक बदलाव की इस तेज गति को संभालने के लिए जो तैयारी चाहिए वह हमने नहीं की है। आर्थिक और राजनीतिक पक्ष की ओर ही हमारा ध्यान अधिक जाता है। सामाजिक बदलाव के महत्त्वपूर्ण मुद्दे तो सिरे से दबे से और उपेक्षित से रह जाते हैं। तेज सामाजिक बदलाव के दौर में पुरानी और परंपरागत सामाजिक मर्यादाएं टूटती हैं। अत: यह जरूरी है कि समय के अनुकूल नई मर्यादाओं को स्थापित या प्रतिष्ठित किया जाए पर यही महत्त्वपूर्ण कार्य उपेक्षित हुआ है।
पुराने समाज में महिलाओं पर बहुत रोक-टोक थी, परदा था, साथ ही कई भी नियंत्रण थे। यह बहुत अच्छी बात है कि ये सब कम हो रहे हैं। इस बदलाव का खुले दिल से स्वागत होना ही चाहिए। इससे पूरे समाज की तरक्की होगी पर जिस तरह पुराने समाज की कुछ मर्यादाएं थीं, उसी तरह नये बदलते समाज की भी कुछ मर्यादाएं स्थापित करनी होंगी। लेकिन इस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। यौन संबंधें के बारे में भी समाज की धारणाएं बहुत तेजी से बदली हैं। गौरतलब है कि पुराने समाज में इस संबंध में कुछ मर्यादाएं थीं, जो आज कहीं बिला सी गई हैं। इसलिए जरूरी है कि नये समाज की दृष्टि से अब नई मर्यादाएं स्थापित करना जरूरी हो गया है। पर ऐसा हो नहीं पा रहा है और यौन नैतिकता को लेकर समाज में भरपूर अनिश्चय की स्थिति है।
पोनरेग्राफी का प्रसार हाल में तेजी से हुआ है, और यौन सोच इससे अत्यधिक या सर्वाधिक संभावित या कह सकते है कि प्रभावित हुई है। जापान में यौन अपराध के लिए सजा प्राप्त होने वाले व्यक्तियों को लेकर एक सव्रेक्षण किया गया था। और उनसे पूछा गया था कि क्या वे पॉर्न में जो देखते थे, क्या वही वास्तविक जीवन में करना चाहते थे तो उनमें से लगभग आधे व्यक्तियों ने कहा कि वे वैसा ही करना चाहते थे। किशोर अपराधियों में यह प्रतिशत और भी अधिक था। नवीनतम अनुसांन ने बताया है कि पोनोग्रार्फी से मस्तिष्क का वह भाग विशेष तौर पर प्रतिकूल प्रभावित होता है, जो नैतिकता के आचरण के लिए प्रभावी है। इससे परिपक्वता प्रभावित होती है।
अपेक्षाकृत अधिक उम्र के व्यक्तियों के मस्तिष्क पर ऐसा असर पड़ सकता है, जिससे वे अनियंत्रित ढंग से कार्य करने की दिशा में बढ़ते हैं। शराब का चलन भी बड़ी तेजी से बढ़ा है। अध्ययनों के अनुसार दुनिया में लगभग 50 प्रतिशत यौन अपराधों में हमलावर ने शराब पी होती है। टॉल्सटाय ने लिखा है कि कोई भी गलत कार्य करने के लिए अपने को अपराधी तैयार करता है, तो प्राय: शराब का सेवन करता है क्योंकि उससे भले या बुरे का भेद समाप्त करने और नैतिकता की उपेक्षा करने में मदद मिलती है।
मौजूदा माहौल में जेंडर या लैंगिक मुद्दों पर संवेदनीलता बढ़ाने की जरूरत है। हमें ऐसा समाज चाहिए जो खुला समाज हो, रूढ़िवाद से मुक्त हो पर जिसमें यौन हिंसा और महिला विरोधी हिंसा न हो। इसके लिए जेंडर के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के अनेक कार्यक्रम निरंतरता से चलाने होंगे। साथ ही शराब (अन्य तरह के नशे भी) और पोर्नोग्राफी के बढ़ते और व्यापक प्रतिकूल असर को समझते हुए इस असर को न्यूनतम करने के लिए निरंतरता से प्रयास जरूरी हैं।
तेजी से बदलते समाज में आधुनिक समाज की जरूरतों के अनुसार नई मर्यादाओं को स्थापित और प्रतिष्ठित करना जरूरी है। देखा गया है कि जब भी समाज में अपराधीकरण बढ़ता है तो यौन हिंसा भी बढ़ती है। इसलिए जरूरी है कि समाज में अपराधी तव प्रतिष्ठित और ताकतवर न बनने पाएं। और इसके लिए भी हमें निरंतरता से प्रयास करते रहने होंगे। इस कड़ी में हमें खुले अपराधियों और सफेदपोश अपराधियों, दोनों के समाज पर पड़ सकने वाले असर को तेजी से कम करना होगा।
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