पाकिस्तान : मृत्युदंड : जुर्रत या तकाजा!

Last Updated 19 Dec 2019 06:13:43 AM IST

पिछले कुछ वर्षो से पाकिस्तानी अदालतें अपने फैसलों की वजह से देश-विदेश में चर्चा के केंद्र में रही हैं।


पाकिस्तान : मृत्युदंड : जुर्रत या तकाजा!

चाहे पनामा पेपर लीक में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल करने का मामला हो या अभी हाल ही में सैन्य प्रमुख कमर जावेद बाजवा के तीन वर्षीय एक्सटेंशन पर जरूरी सवाल उठाते हुए इमरान खान सरकार को स्पष्ट कानून बनाने के लिए छह महीने का वक्त देने की बात हो, अदालतों ने साफ कर दिया है कि उनके सामने व्यक्ति की राजनीतिक, सामाजिक और सैन्य पहुंच/ताकत का कोई खास मतलब नहीं है। इसी कड़ी में अगला मामला पाकिस्तान के पूर्व सैन्य प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का हैं,  जिन्हें बीती 17 दिसम्बर को इस्लामाबाद में एक विशेष अदालत ने उच्च-राजद्रोह के मुकदमे में दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई है।
तीन जजों की खंडपीठ ने मुशर्रफ को वर्ष 2007 में देश में संविधान को रद्द करके आपातकाल लगाने के लिए दोषी मानते हुए उनकी अनुपस्थिति में  एक के मुकाबले 2 के बहुमत से फैसला सुनाया है।

पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद छह में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति, जो संविधान को रद्द करता है या नष्ट करता है या स्थगित करता है, या उसे रद्द करने या नष्ट करने या स्थगित करने की बलपूर्वक या गैरकानूनी तरीकों से साजिश का प्रयास करता है, उसे उच्च राजद्रोह का दोषी माना जाएगा। गौरतलब है कि नवम्बर, 2007 में जब पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी परवेज मुशर्रफ के दोबारा राष्ट्रपति बनने के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाने वाले थे, तो उसके ठीक पहले मुशर्रफ ने देश में आपातकाल लागू कर दिया था। माना जाता है कि मुशर्रफ को अंदेशा था कि इफ्तिखार चौधरी उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने को गैरकानूनी करार दे सकते हैं। इसलिए उन्होंने संविधान को स्थगित करते हुए आपातकाल लागू कर दिया था। साथ ही, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को एक गैरकानूनी अस्थायी संवैधानिक आदेश के अंतर्गत फिर से शपथ लेने को कहा। बहुत से न्यायाधीशों ने ऐसा किया लेकिन इफ्तिखार चौधरी समेत कुछ ऐसे भी न्यायाधीश थे जिन्होंने फिर से शपथ लेने से इंकार कर दिया। 
मुशर्रफ के इस गैरकानूनी कृत्य के लिए पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल के दौरान दिसम्बर, 2013 में मुकदमा पंजीकृत किया गया और मार्च, 2014 में आरोप तय किए गए। इस संदर्भ में अभियोजन पक्ष ने सितम्बर, 2014 तक सभी सबूत और दस्तावेज अदालत के समक्ष रखे लेकिन कानूनी पेचीदगियों और विभिन्न अपीलों के कारण मामला काफी समय तक लंबित रहा। इसी बीच मार्च, 2016 में चिकित्सा कारणों का हवाला देकर मुशर्रफ पाकिस्तान से बाहर चले गए और वापस नहीं आए। विशेष अदालत में उनका मुकदमा बिना उनकी दैहिक उपस्थिति के ही चलता रहा तथा अदालत ने कई बार उनसे व्यक्तिगत तौर पर हाजिर होकर अपना पक्ष रखने को कहा। लेकिन अदालत के निर्देशों के पालन में मुशर्रफ ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अलबत्ता, यह जरूर कहा कि उनका पक्ष वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुन लिया जाए जिसे अदालत ने नहीं माना।
बीती 19 नवम्बर को विशेष अदालत ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखते हुए 28 नवम्बर को आदेश जारी करने की बात कही तो पाकिस्तान के राजनीतिक हलकों में सुगबुगाहट तेज हो गई। अब तक अंदेशा हो गया था कि मुशर्रफ को निश्चित रूप से दोषी मानते हुए सजा सुनाई जाएगी। पाकिस्तान में सिविल-मिलिट्री संबंधों के इतिहास को देखते हुए यह असामान्य घटना थी। अत: आनन-फानन में नींद से जागी इमरान खान सरकार ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में नई अर्जी डालकर विशेष अदालत के फैसले को स्थगित करने का निवेदन किया। फलस्वरूप 27 नवम्बर को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत को मुशर्रफ मामले में फैसला सुनाने से रोक दिया और सरकार को एक नई अभियोजन टीम बनाने का निर्देश दिया। पांच दिसम्बर को यह टीम विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित हुई जिसके बाद न्यायालय ने सुनवाई 17 दिसम्बर तक स्थगित कर दी और यह भी स्पष्ट किया कि वह 17 तारीख को अभियोजन पक्ष की दलीलें सुन कर उसी दिन फैसला सुनाएगी। बीते मंगलवार को जब अभियोजन पक्ष मुकदमे में नई दलील पेश न कर सका तो अदालत ने पाकिस्तान के इतिहास में मील का पत्थर साबित होने वाला फैसला सुनाते हुए मुर्शरफ को मृत्युदंड की सजा सुना दी।
इस फैसले ने देश के राजनितिक और सैन्य नेतृत्व को तगड़ा झटका दिया है। जहां पाकिस्तान सरकार ने इस ट्रायल को अनुचित और अन्यायपूर्ण बताते हुए इसके खिलाफ अपील करने की मंशा स्पष्ट की है वहीं पाकिस्तान की सेना ने अपने पूर्व प्रमुख के साथ खड़े होने की बात कही है। आईएसपीआर के महानिदेशक मेजर जन. आसिफ गफूर ने एक वक्तव्य में स्पष्ट किया कि सेना ने विशेष अदालत के फैसले से सेना के अंदर ऊपर से नीचे तक पीड़ा है। यह वक्तव्य रावलपिंडी में सेना के बड़े अधिकारियों के बीच एक विशेष बैठक के बाद जारी किया गया है। इसमें जोर दिया गया है कि अदालत में कानून और संविधान की जरूरी प्रक्रियाओं, मूल अधिकारों, और स्वरक्षा के अधिकारों  की अनदेखी की गई है। सेना ने यह भी रेखांकित किया कि एक पूर्व सैन्य प्रमुख; जो पाकिस्तान का राष्ट्रपति भी रहा हो और जिसने देश को चार दशकों तक सेवा दी हो, देश के लिए युद्ध लड़ा हो; कभी राजद्रोही नहीं हो सकता। मुशर्रफ, जो दुबई के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हैं, का कहना है कि उन्होंने देश को वर्षो तक सेवा दी और इस मुकदमे में बिना उन्हें सुने ही फैसला सुना दिया गया।
पाकिस्तान, जहां सेना को सबसे संगठित राजनीतिक दल की संज्ञा से नवाजा जाता है और सेना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देश की महत्त्वपूर्ण नीतियों के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाती प्रतीत होती है, में एक पूर्व सैन्य प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति को सजा-ए-मौत दे देना असामान्य घटना है। जहां तक इस सजा के  क्रियान्वयन का प्रश्न है, तो स्पष्ट है कि पाकिस्तान की वर्तमान संरचना में इस की कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन यह भी साफ है कि पाकिस्तान में अदालतें अब सबसे ताकतवर मानी जाने वाली संस्था के गैरकानूनी कृत्यों के लिए न केवल उनकी जिम्मेदारी तय कर रही हैं, बल्कि संविधान और कानून के दायरे में उन्हें दंडित करने से भी नहीं हिचक रहीं। पाकिस्तान के लिए यह एक शुभ संकेत है।

आशीष शुक्ल


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