तीन तलाक : हकूक पहचान रहीं महिलाएं

Last Updated 22 Mar 2017 03:07:45 AM IST

आजकल, योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक खबर गर्म है कि मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा को इसलिए मतदान किया था कि क्योंकि मौजूदा सरकार एक ही बैठक में तीन तलाक को गैर सरकारी घोषित करना चाहती है.


तीन तलाक : हकूक पहचान रहीं महिलाएं

वास्तव में इसमें कुछ बुरा नहीं क्योंकि एक बैठक में तीन तलाक से न जाने कितनी महिलाओं का संसार उजड़ गया और कितने घर बर्बाद हो गए. मुस्लिम पुरुष को जरा सा भी गुस्सा आता है तो वह एक बैठक में तीन बार अल्लाह के निकट सबसे नापसंदीदा शब्दों में एक शब्द ‘तलाक’ बोल कर पत्नी से छुटकारा प्राप्त कर लेता है.

वास्तविकता तो यह है कि तलाक का मुस्लिम मदरे ने इस कदर नाजायज इस्तेमाल किया है कि अब सरकार भी सोचने लगी है कि ऐसा कानून बनाया जाए कि, जिससे मुस्लिम महिलाओं को इस जहन्नुम से बचाया जाए. यदि खाने में नमक अधिक हो जाए, पत्नी साड़ी पहन ले, मायके हो आए आदि ऐसी छोटी-छोटी बातों पर भी एक सेकेंड में ‘तलाक’ उस संबंध को समाप्त कर दिया जाता है, जिसको कभी तीन बार ही शब्द, ‘कुबूल’ कह कर अपनाया गया था. यह कैसी विडम्बना है, मुस्लिम महिलाओं की! हद तो यह है एक बार टीवी पर बहस चल रही थी कि एक व्यक्ति को रास्ता चलते-चलते गुस्सा आ गया और उसने सड़क के बीचों-बीच पत्नी को तलाक दे, दूसरा रास्ता ले लिया. स्त्री बेचारी अपने दो बच्चों को लादे हुए चलती रही.

वास्तव में जब इसकी बहुतायत होने लगी तो मुस्लिम महिलाओं ने सर्वोच्च न्यायालय की डगर पकड़ी और उधर सरकार का भी महिलाओं का साथ मिला. ऐसा समझा जा रहा है कि महंत आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के द्वारा ट्रिपल तलाक पर काबू पाया जाएगा. कुछ मुस्लिम धर्म विद्वान इस पर घोर आपत्ति जता रहे हैं. वास्तव में यह मुद्दा मुस्लिम ब मुकाबला भाजपा या धर्म ब मुकाबला राजनीति है ही नहीं. इसको तो कुछ मुस्लिम धर्म नेता राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए मीडिया में उठाना चाह रहे हैं. इस विषय में चाहे तलाक देने वाले मुस्लिम पुरुष हों, भाजपा हो, न्यायिक व्यवस्था हो या कोई भी हो; तलाक की पेचीदगी को समझना बड़ा जरूरी है.

सबसे पहली बात तो यह कि हमें यह समझना होगा कि हजरत मुहम्मद (स) का तलाक के बारे में क्या विचार था. एक बार एक सहाबी, अर्थात हजरत मुहम्मद के साथी, उनके पास गए और कहने लगे कि वह अपनी पत्नी को तलाक देना चाहते है क्योंकि उससे वह खुश नहीं हैं. इस पर हजरत मुहम्मद ने उनसे कहा कि उसमें कोई तो ऐसी बात होगी कि जो ठीक या अच्छी होगी. सच्चाई तो यह है कि हर व्यक्ति चाहे कितना ही बुरा हो, उसमें कम-से-कम एक अच्छाई तो अवश्य होती है, सहाबा ने दसियों बुराइयां गिनाने के बाद एक अच्छाई बताई. उस पर हजरत मुहम्मद ने कहा कि सहाबा को चाहिए कि बस उस एक अच्छाई को देखते हुए ही वह अपनी सारी उम्र उसके साथ गुजारे और तलाक का बिल्कुल न सोचें क्योंकि यह अल्लाह के नजदीक सबसे ना पसंदीदा चीजों में एक है.

तलाक का सही तरीका यह नहीं कि एक ही बैठक में आदमी इस भयंकर शब्द को तीन बार बोल कर, औरत से छुटकारा पाए बल्कि यह होता है कि तीन महीनों में तीन बैठकें करे और अगर बात बिल्कुल भी नहीं बने तब ही पृथकता इख्तियार करे. वैसे, सगे-संबंधी और आस-पास के लोग तीन मासिक माहवारियों से पूर्व तलाक नहीं होने देते ताकि किसी का घर न फुंके. इसे तलाक-ए-हुस्ना कहा जाता है क्योंकि इसमें गुस्सा ठंडा होने के बाद पुन: मिलन की अच्छी-खासी गुंजाइश रहती है. हजरत इमाम इब-ए-हम्बल और इमाम तैमिया तो उन लोगों को कोड़ों की सजा देते थे, जो एक बैठक में तलाक दिया करते थे. सच्चाई तो यह है कि अगर मुस्लिम ईमानदारी से हजरत मुहम्मद (स) और हदीस व शरअ को उसकी वास्तविक आत्मा के अनुरूप लें तो कोई समस्या उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं हैं. दूसरी बात यह है कि आए दिन इस प्रकार के झमेलों से इस्लाम की जग हंसाई होती है. उधर, मीडिया वालों और विशेषकर चैनलों को दो-तीन रोज का टीआरपी को बढ़ाने का अवसर भी मिलता है क्योंकि मुस्लिम संप्रदाय के कुछ हजरात तलाक का गैर-शरई और गैर कुरआनी कोण चिल्ला-चिल्ला कर पेश करते हैं और समझते हैं कि इस प्रकार से अल्लाह मियां उनको जन्नत में नवाजेगा.

खेद का विषय है कि वे यह बात नहीं समझ पाते कि बहस करने वाले एंकर उन्हें पिन मारते हैं, उकसाते हैं और वे इस बहकावे में आकर इस्लाम और मुसलमानों को एक चितण्रपेश करते हैं कि जो न तो हजरत मुहम्मद (स) का बताया होता है और न ही कुरान से होता है. उधर, मीडिया वालों को भी यह भाता कि वह उलेमा हजरात को भड़काएं और उससे वे अपना नियंत्रण खो दें. हालांकि, ऐसा कहा या लिखा नहीं जाता मगर बखूबी समझा जा सकता है कि कुछ चैनलों को ध्येय यही होता है कि उलेमा हजरात को भड़काया जाए, मुस्लिम तबके की जग हंसाई हो. हाल ही में अभी तीन तलाक के मुद्दे पर कांस्टीट्यूशन क्लब में ‘मुस्लिम वेलफेयर मंच’ आयोजित मुस्लिम महिला सम्मेलन में पहली बार सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम महिलाएं हिजाब में पर्दे से बाहर निकली और तीन तलाक के विरुद्ध आवाज उठाई.

संगोष्ठी में मुस्लिम राट्रीय मंच महिला विभाग की अध्यक्ष शहनाज हुसैन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से मुस्लिम बहनों ने प्रधानमंत्री को समर्थन दिया है, उससे देश की अन्य मुस्लिम महिलाओं के हौसले बढ़े हैं. भारतीय नागरिक होने के नाते संविधान के अंतर्गत मुस्लिम महिलाओं का भी बराबरी का हक है, जिससे उन्हें दशकों से शरअ के नाम में वंचित रखा गया जबकि शरअ के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को सबसे अधिक अधिकार इस्लाम में ही कुरान के जरिए दिए गए हैं, जिसको मदरे ने छीन रखा है. मुस्लिम महिलाओं में अपने हुकूक की बयार चल पड़ी है और समय आ गया है कि उनके शौहर उन्हें एक तरह से देखा जाए तो बंदी बना कर न रखा जाए.

फिरोज बख्त अहमद
स्तंभकार


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