जल दिवस : खतरे की घंटी घटता भू-जल
विश्व जल दिवस 22 मार्च को है, तो इस अवसर पर यह देखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि दुनिया जल दिवस तो मना रही है, पर क्या उसके उपयोग को लेकर वह गंभीर, संयमित व सचेत है या नहीं?
जल दिवस : खतरे की घंटी घटता भू-जल |
आज जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भू-जल स्तर गिरता जा रहा है.
पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहां अब पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है. साफ है कि बीते दस-बारह सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिंता का विषय है. अगर केवल भारत की बात करें तो भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर वर्ष 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था.
आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के जलाशयों के जलस्तर में काफी गिरावट पाई गई थी. आयोग की तरफ से यह भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जलस्तर जितना अंकित किया गया था, वह तब ही काफी कम था. लेकिन 2014 में वह गिरकर तब से भी कम हो गया. 2015 में भी लगभग यही स्थिति रही. गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) देश के 85 प्रमुख जलाशयों की देख-रेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है.
संभवत: इन स्थितियों के मद्देनजर ही जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए की एक अध्ययन रिपोर्ट में 2025 तक भारत के जल संकट वाला देश बन जाने की बात कही गई है. अध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है. देश की सिंचाई का करीब 70 फीसद और घरेलू जल खपत का 80 फीसद हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है.
घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती है, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता. हालांकि गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने जन-संवाद कार्यक्रम ‘मन की बात’ में घटते भूजल की इस समस्या को उठाया गया था और जल संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा ‘सोक पिट’ बनाने जैसे कार्य किए गए हैं. मगर समस्या की विकरालता के अनुपात में ये प्रयास पर्याप्त नहीं हैं.
अभी इन्हें और विस्तार देने की आवश्यकता है. सवाल यह कि भू-जल स्तर के इस तरह निरंतर रूप से गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती हैं. घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है.
आज दुनिया अपनी जल जरूरतों की पूर्ति के लिए सर्वाधिक रूप से भू-जल पर ही निर्भर है. लिहाजा, अब एक तरफ तो भू-जल का अनवरत दोहन हो रहा है, वहीं औद्योगीकीकरण के अंधोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों-पहाड़ों आदि की कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है.
परिणामत: धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है. यह एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा. इससे निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संरक्षण किया जाए.
जल संरक्षण की यह व्यवस्थाएं हमारे पुरातन समाज में थीं. पर विडम्बना यह है कि आज के इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं. बहरहाल, जल आज जरूरत है न सिर्फ राष्ट्र स्तर पर, बल्कि विश्व स्तर पर भी एक ठोस योजना के तहत घटते भू-जल की समस्या की भयावहता व जल संरक्षण आदि इसके समाधानों को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाए, जिससे जल समस्या की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हो और वे सजग हो सकें.
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