दोहरा निशाना
मतभेदों का सम्मान किया जाना चाहिए और सद्भाव से रहने की कुंजी एकजुटता है। यह कहना है राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख मोहन भागवत ने महाराष्ट्र के भिवंडी में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान ध्वाजारोहण के बाद कही।
दोहरा निशाना |
भागवत ने विविधा के संदर्भ में कहा कि गणतंत्र दिवस उत्सव के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों को याद करने का अवसर भी है। किसी को दबाया नहीं जाना चाहिए, आपकी अपनी विशेषताएं हो सकती हैं मगर आपको दूसरों के प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहिए। यदि आपका परिवार दुखी है तो आप खुश नहीं रह सकते।
अगर आप जीना चाहते हैं तो सामंजस्यपूर्ण जीवन जीना चाहिए। कुछ ही समय पहले भागवत द्वारा हर धर्म के देवी-देवताओं के सम्मान की भी बात की गई थी, जिस पर विवाद छिड़ गया था। सौहार्द और जिम्मेदारियों को लेकर की गई उनकी बात को लेकर एक बार फिर संदेह किया जा सकता है। संघ के तौर-तरीकों व विवादास्पद विचारों की बजाए भागवत का एकजुटता को लेकर दिया गया भाषण रणनीति भरा व दूरदर्शितापूर्ण कहा जा सकता है। मगर उनके विरोधियों को यह रास नहीं आ सकता।
बहुसंख्यकों के हितों पर मुखर रूप से बोलने वाले भागवत अब देश में सभी को साथ रहने और इसे भारत की संस्कृति बताते हैं। हालांकि पिछले दिनों राम मंदिर निर्माण को देश की दूसरी आजादी से जोड़ने वाले उनके बयान पर कांग्रेस ने तल्ख टिप्पणी की थी। आरोप लगाया था कि वे संविधान को आजादी का प्रतीक नहीं मानते। यह कहना गलत नहीं है कि भागवत हिन्दुओं के नेता बनने की ललक के चलते विरोधाभाषी या विवादास्पद बयानबाजी करने से चूकना नहीं चाहते।
भाजपा के संघ को दरकिनार करने के संकेतों से निपटने के लिहाज से भी वह पलटवार करते नजर आते हैं। कभी एक-दसरे के पूरक रहे भाजपा व संघ के मतभेदों को पाटने के उनके ये प्रयास भी हो सकते हैं। कड़वी गोलियों के दरम्यान कुछ मीठी चीजों को पल्रोभन के लिहाज से देते रहना भागवत की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। विपटल पर अपनी छवि सुधारने और जनता के समक्ष अपना महत्त्व बनाये रखने के हथकंडों की उन्हें जरूरत है।
जिस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बीज के दम पर भाजपा की फसल लहलहा रही है। उन बीज को संघ प्रमुख बेकार नहीं होने देना चाहेंगे, न ही उनके उन्नत संस्करणों पर पूरी तरह सत्ताधारी दल को काबिज ही होने देना चाहेंगे। विविधता व सामंजस्य की बात कर वह एक तीर से दो निशाने साधते नजर आ रहे हैं।
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