डोनाल्ड ट्रंप से उम्मीदें
अंतत डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47 में राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण कर ली। अपने पहले नीतिगत भाषण में जैसा कि अनुमान था इन्होंने ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीति को सर्वोपरि रखा।
ट्रंप से उम्मीदें |
ट्रंप अमेरिका में आकर रहने वाले अवैध आप्रवासियों के निष्कासन पर तुरंत काम करने की घोषणा की और पेरिस जलवायु समझौते की बाध्यकारी नीतियों से स्वयं को अलग करने की घोषणा की। अन्य बातों को छोड़ भी दें तो भारत की दृष्टि से अमेरिका फस्र्ट की अवधारणा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिका आज भी विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली देश है। अन्य देशों के साथ उसके सहयोग तथा विरोध के कारण वैश्विक राजनीति के समीकरण बनते बिगड़ते हैं।
भारत भी अपवाद नहीं है भारत के व्यापारिक और सामरिक अमेरिका से जुड़े हुए हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि मेक्सिको और सल्वाडोर के बाद अमेरिका में आप्रवासन करने वाले लोगों की बड़ी संख्या भारतीयों की है। माना जा है कि उनमें से उन भारतीयों की संख्या बहुत बड़ी है जो अवैध रूप से वहां पहुंचे हुए हैं या जिनके पास वैध दस्तावेज नहीं है। अगर ट्रंप और आप्रवासियों को खदेड़ने की नीति को क्रियान्वित करते हैं तो भारतीय भी इससे अछूते नहीं रहेंगे।
इसी तरह भारत को अपने सामरिक हित चीन की नीतियों को देखते हुए तय करने पड़ते हैं। उसे इस बात पर भी नजर रखनी होगी कि चीन के संबंध में अमेरिकी नीति क्या होगी और भारत उसको देखते हुए किस तरह अपने हितों का सामंजस्य बिठाएगा। वैसे तो मोदी के नेतृत्व वाला भारत ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका से दोस्ती का दावा कर सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंध अनेक कारकों से प्रभावित होते हैं। इसलिए इस संदर्भ में भी भारत को सतर्कता बरतनी होगी।
भारत को अपने आर्थिक हितों को भी इस तरह नियोजित करना होगा कि वह ट्रंप की अमेरिका प्रथम की नीतियों के साथ सामंजस्य बिठा सके। भारत को बिना दबे-झुके यह संदेश देना होगा कि अमेरिका के साथ मैत्रीपूर्ण आर्थिक, सामरिक संबंध जितने भारत के लिए जरूरी हैं अमेरिका के लिए भी भारत उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
भारत को एक तरफ जहां पारस्परिक गुंजाइश के लिए लचीला रुख अपनाना होगा तो दूसरी ओर अपनी अस्मिता को पूरी दृढ़ता के साथ स्थापित करना होगा। यह वैश्विक शांति के हित में होगा कि दोनों देशों के संबंध मजबूत रहें और पारस्परिक हित सधने वाले हों।
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