अरबपतियों की दुनिया
दुनिया भर में अरबपतियों की संपत्ति 2024 में दो हजार अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर पंद्रह अरब अमेरिकी डॉलर हो गई।
अरबपतियों की दुनिया |
2023 की तुलना में यह तीन गुना है। विश्व आर्थिक मंच की वाषिर्क बैठक से पहले ऑक्सफेम इंटरनैशनल ने ‘टेकर्स, नॉट-मेकर्स’ शीषर्क से रिपोर्ट पेश की जिसके अनुसार 2024 में एशिया में अरबपतियों की संपत्ति में 299 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई। रिपोर्ट के अनुसार अरबपतियों की अत्यधिक संपत्ति काफी हद तक अनुपयुक्त है क्योंकि इसका 60% अब विरासत, एकाधिकार शक्ति या सांठ-गांठ वाले संबंधों से प्राप्त होती है।
ऑक्सफेम ने कहा कि दुनिया के सबसे समृद्ध लोगों की संपत्ति औसतन प्रति दिन लगभग दस करोड़ अमेरिकी डॉलर के हिसाब से बढ़ी। भारत में भी अरबपतियों की संख्या में इजाफा होते हुए उनकी कुल संख्या 185 हो चुकी है जिससे इस क्षेत्र में भारत तीसरे स्थान पर आ चुका है। अमेरिकी अरबपतियों की संख्या दिसम्बर में 835 थी जबकि चीन में 423 थी। हालांकि भारत में 185 में से 108 पब्लिकली लिस्टेड पारिवारिक बिजनेस हैं।
सरकारी आंकड़ों में गरीबी भले ही कम हो रही हो मगर विरोधाभास यही है कि गरीबी, बेरोजगारी और भरपेट खाने के अभाव में जीने वाले भी कम नहीं हैं। संयुक्त राट्र की रपट के अनुसार दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग घोर गरीबी में जीने को मजबूर हैं। मुनाफाखोरी के चलते बड़ा वर्ग संपत्ति बटोरने में इस कदर जुटा है कि उन्हें घोर गरीबी और भुखमरी में जीने वालों के प्रति तनिक रुचि नहीं रही।
हालांकि अरबपतियों में ऐसा वर्ग भी है जो अपनी संपत्ति का निश्चित हिस्सा दान करने का काम करता रहा है। फिर भी धन विभाजन के इस प्रचलित रवैये से समाज में पैदा हुए गहरे असंतुलन को संभालना नामुमकिन होता जा रहा है। दुनिया में 58 करोड़ नाबालिग घोर गरीबी में बताए जाते हैं जिनके प्रति इन अरबपतियों को संवेदनशील रुख अपनाना चाहिए न कि धन एकत्र कर अति समृद्धों की सूची का विस्तार कर पूंजी के गुणगान में जुट जाएं।
हकीकत से मुंह नहीं चुराया जा सकता कि अरबपति उचित समय पर सटीक निर्णयों द्वारा धन बढ़ाने के प्रयास करते रहते हैं। विरासतन मिलने वाला धन कई गुणा होकर स्वत: ही वृद्धि करता रहता है। यह दौर यूं भी पैसों की चकाचौंध और धन के गुणगान का बन चुका है। ऐसे में अरबपतियों को समानता या धन विभाजन का पाठ पढ़ाया जाना मुमकिन नहीं लगता।
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