वायु प्रदूषण से बचने के लिए जरूरी है सतर्कता
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण फिर विकराल रूप धारण कर रहा है। दिवाली से पहले ही हवा की क्वालिटी बहुत खराब कैटेगरी पर पहुंच गयी है।
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257 एक्यूआई दर्ज होते ही ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) का दूसरा चरण लागू हो गया, जिसके चलते दिल्ली-एनसीआर में डीजल से चलने वाले जनरेटरों पर तत्काल रोक लगा दी गई है। इसमें वाहन पार्किग शुल्क बढ़ाने की सिफारिश भी की गई है।
बॉयोमास जलाने से बचाने के लिए इलेक्ट्रिक हीटर उपलब्ध कराने की तैयारी चल रही है। लोगों को चेतावनी दी गई है कि वे बहुत जरूरी होने पर ही बाहर निकलें। कोशिश हो कि सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल किया जाए। थर्मल पॉवर प्लांटों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने साथ-साथ होटल-रेस्टोरेंट व ढाबों-खोमचों में तंदूर में लकड़ी /कोयले के जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध है। उत्तर भारत में पराली जलाने पर काबू पाने में सरकार बुरी तरह असफल है।
लोग जागरूक नहीं हो रहे, न ही उनमें इस खतरनाक होती स्थिति के प्रति तनिक भी जिम्मेदारी का भाव जग रहा है। दिल्ली सरकार प्रतवर्ष की तरह सारा दोष उप्र व हरियाणा पर मढ़ रही है, जबकि यह सभी उत्तर भारतीयों की सेहत से खिलवाड़ साबित हो रहा है। वायु प्रदूषण में वाहनों के धुएं के साथ ही कारखानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाली गैसें भी हैं। सड़कों तथा निर्माणाधीन इमारतों से उठने वाली धूल को रोकना कतई आसान नहीं है।
इसमें अपशिष्ट जलाने से उठने वाला धुंआ भी शामिल है। दिल्ली देश का ही नहीं, दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में गिनी जा रही है। अक्टूबर से शुरू होकर यह प्रदूषण बरसात यानी तकरीबन जून तक चलता है, जिसके चलते शहरवासियों के साथ ही छोटे-छोटे बच्चों को सन संबंधी समस्याएं होनी आम हो रही हैं।
सरकारों को सख्ती के अतिरिक्त ऐसे कदम भी उठाने चाहिए, जिससे इस समस्या को कम करने के प्रति पुख्ता काम हो सके। आरोपों-प्रत्यारोपों से प्रदूषण नहीं कम होता। सारी पाबंदियां जनता पर लादने के साथ सरकारों व सरकारी महकमों को भी इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का जिम्मा निभाना सीखना होगा, जिसमें वहानों के काफिले, एसी का इस्तेमाल, इमारतों का निर्माण तो है ही।
बेवजह रैलियां या जनसभाएं भी हो सकती हैं। उन्हें ऑन-लाइन व वचरुअल बैठकें कर निजी दफ्तरों/स्कूलों को कम से कम आवाजाही करने के संदेश देना सीखना होगा।
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