दिव्यांग बच्चों को संरक्षण
पुलिस थानों से लेकर अदालतों तक न्याय प्रणाली दिव्यांग बच्चों की बढ़ती कमजोरियों को समझे तथा उन कार्रवाई करे। बाल संरक्षण पर हुए नौवें नेशनल एनुअल स्टेकहोल्डर वर्कशॉप को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने यह कहा।
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दिव्यांग बच्चों को उनकी शारीरिक चुनौतियों के साथ-साथ समाज में मौजूद गलत धारणाओं का भी सामना करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि लिंग, जाति, आर्थिक स्थिति मिल कर और भी भेदभाव पैदा करती हैं। न्यायिक व्यवस्था में पुनस्र्थापनात्मक न्याय के तरीकों को शामिल करने पर जोर देते हुए उन्होंने बच्चों की शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग मिलने की बात भी की।
सीजेआई ने समानता, सम्मान और भेदभावरहित व्यवहार बच्चों का मौलिक अधिकार बताया। पॉलसी बनाने वालों को उन्होंने सेक्सुअली ऑफेंस से पीड़ित बच्चों का डेटा कलेक्शन सिस्टम बनाने को प्राथमिकता देने की बात की। कहा कि दिव्यांग बच्चों के लिए न्याय तक पहुंचने का रास्ता सुविधाजनक हो तथा बच्चों की छोटी-छोटी कमजोरी को समझने के लिए न्याय प्रणाली से जुड़े लोगों को ट्रेनिंग लेने की बात भी की।
जस्टिस चंद्रचूड़ की दो बेटियां दिव्यांग हैं इसलिए दुनिया को देखने का उनका नजरिया प्रभावित हुआ है, जिन्हें वे विशेष मानते हैं। देश में बच्चों की कुल संख्या का 1.7% भाग दिव्यांग बच्चों का है। संविधान के अनुच्छेद 26 में दिव्यांग बच्चों के लिए 18 वर्ष की आयु तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है।
परंतु कुल दिव्यांगों में आधे से अधिक अशिक्षित हैं। परिवहन, अवरोधों को हटाना, पाठय़क्रम और परीक्षा प्रणाली में संशोधन के साथ ही दिव्यांगता पेंशन और सरकारी नौकरियों में आरक्षण जैसी सुविधाएं भी हैं। स्वरोजगार के लिए उन्हें ऋण दिए जाने की भी सुविधा दी गई है परंतु अपने समाज में दिव्यांगों के प्रति अनुचित बर्ताव किया जाता है।
उनके साथ होने वाले यौन शोषण पर आज तक कोई लेखा-जोखा रखने की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। दिव्यांगों के प्रति दया-भाव रखने से ज्यादा जरूरी है, उनके साथ भेदभाव रोका जाए और गलत धारणाओं पर लगाम लगाई जाए।
पुलिस, न्याय व्यवस्था के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं तथा स्थानीय प्रशासन को भी इन खास बच्चों के प्रति अपना रवैया बदलने के साथ ही उनके प्रति सम्मान का भाव लाना सीखना होगा।
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