इतिहास : शताब्दी की हलचलों में अमन की आवाज

Last Updated 26 Nov 2023 01:39:28 PM IST

पिछली शताब्दी यानी 1924-2023 के दौरान विश्व में बड़ी हलचलें हुई जिन्होंने न्याय आधारित अमन-शांति के संदेश को और रेखांकित किया है। इस शताब्दी का आरंभ ऐसे समय में हुआ जब प्रथम विश्व युद्ध (1914-19) में हुई तबाही से विश्व उबरने का प्रयास कर रहा था।


इतिहास : शताब्दी की हलचलों में अमन की आवाज

इस युद्ध में जर्मनी की बड़ी हार के बाद उस पर जो बहुत अपमानजनक समझौता थोपा गया था, उसके कारण जर्मनी में उग्र उभार को आगे बढ़ाया विशेषकर हिटलर के नेतृत्व में नाजी ताकतें तेजी से जर्मनी में आगे बढ़ीं। उन्होंने जर्मनी की अधिकतर समस्याओं के लिए यहूदियों और साम्यवादियों को जिम्मेदार बताकर संकीर्ण आक्रामक राष्ट्रवाद की प्रवृत्ति व निर्थक हिंसा को बहुत आगे बढ़ाया। इटली में मुसोलिनी के नेतृत्व में इससे पहले से ही ऐसी संकीर्ण सोच फासीवाद के नाम में फैल रही थी।

1929-30 के आसपास से विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ी मंदी आई जिसने पूंजीवाद की अस्थिरताओं को लाखों लोगों की तेजी से गिरती आजीविका व आय के रूप में प्रकट किया। विश्व स्तर पर करोड़ों लोग बेरोजगार हुए या आर्थिक स्तर पर तबाह हुए। पर इसके साथ, विशेषकर अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट की नीतियों से ऐसे कार्यक्रम सामने आए जिन्होंने बड़े आर्थिक संकट के बीच अनेक लोगों को रोजगार दिए, नई उम्मीद दी। इससे भी पहले रूस की क्रांति (1917) ने विश्व के सभी शोषित लोगों को नई उम्मीद दी थी पर लेनिन की कम आयु में मृत्यु और स्टालिन की तानाशाही प्रवृत्तियों के कारण इस क्रांति से उत्पन्न उम्मीदें आरंभिक समय में ही धूमिल पड़ने लगीं। हालांकि हिटलर साम्यवाद का प्रबल विरोधी था पर हिटलर और स्टालिन ने अवसरवादिता आधारित एक समझौता किया जिसे हिटलर ने शीघ्र ही तोड़ दिया।

हिटलर ने आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, पोलैंड व फ्रांस के विशाल क्षेत्र पर आसानी से कब्जा कर लिया। 1939 में इस तरह दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई। ब्रिटेन ही मजबूती से जर्मनी की बढ़ती सेनाओं को रोक सका। उधर सोवियत संघ के विरुद्ध दूसरा मोर्चा पूर्व की दिशा में खोलकर जर्मनी ने बड़ी तबाही तो मचाई पर अंत में रूस के सैनिकों ने दृढ़ता से उसका सामना किया। उधर जापान ने जर्मनी व इटली का साथ देते हुए एशिया में तबाही मचाई व फिर पर्ल हारबर में अमेरिका पर भी हमला कर दिया। इस तरह अमेरिका को भी युद्ध में उतरना पड़ा। अंत में जर्मनी और जापान दोनों की हार में अमेरिका ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और द्वितीय युद्ध की समाप्ति के दौर में विश्व की सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभर सका।

द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 150 लाख सैनिक युद्ध में मारे गए, 40 लाख युद्धबंदियों को बुरे हालात में मरने दिया गया, संकीर्ण हिंसक भेदभाव के आधार पर 60 लाख यहूदियों व 40 लाख अन्य व्यक्तियों को मार दिया गया। 50 लाख नागरिक भी बमबारी में मारे गए। इस तरह 330 लाख के अधिक लोगों की दर्दनाक मौत प्रत्यक्ष रूप से हुई जबकि युद्ध से जुड़े अप्रत्यक्ष कारणों-भूख या बुनियादी सुविधाओं के ध्वस्त होने से संभवत: इससे भी अधिक लोग मारे गए। इतनी भयानक तबाही इसके बावजूद हुई कि लीग ऑफ नेशंस नामक संस्थान द्वारा अपनी ओर से युद्ध रोकने व निशस्त्रीकरण के प्रयास होते रहते थे। महात्मा गांधी ने अहिंसा के बड़े संदेश को प्रतिष्ठित किया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना विश्व शांति के नये उद्देश्य के लिए की गई। यूरोप की बड़ी औपनिवेशिक ताकतें इस युद्ध में कमजोर हो गई थीं व इस स्थिति में उनके उपनिवेशों के लिए आजादी के नये अवसर खुले विशेषकर भारत जैसे उपनिवेशों के लिए जहां स्वतंत्रता आंदोलन पहले से मजबूत था। ऐसे अनेक देश 1947-67 के बीच आजाद हुए। दूसरी ओर एक नया ‘शीत’ युद्ध शीघ्र ही आरंभ हो गया जिसके नेतृत्व में एक ओर सोवियत संघ व दूसरी ओर अमेरिका व उसके पश्चिमी मित्र देश थे।

नये शीत युद्ध के जो वास्तविक युद्ध थे वे प्राय: तीसरी दुनिया के देशों की धरती पर लड़े गए। वियतनाम, कोरिया, कंबोडिया, लाओस आदि के युद्धों में सत्तर लाख से अधिक लोग मारे गए। चिली में लोकप्रिय लोकतांत्रिक नेता अलेंदे की सरकार, ईरान में मोसादिक की सरकार व कांगो में लुमुम्बा सरकार को अमेरिका व पश्चिमी देशों ने गिरा दिया। उधर सोवियत संघ की तरह साम्यवादी चीन में भी तानाशाही व गैर-लोकतांत्रिक प्रवृत्तियों के कारण बड़ी मानवीय त्रासदियां घटित हुई व सोवियत संघ की तरह वहां भी लाखों लोग अकाल व दमन की कार्यवाहियों में मारे गए।
अहिंसक संघर्ष की राह को महात्मा गांधी की हत्या से क्षति पहुंची पर बादशाह खान, नेल्सेन मंडेला व मार्टिन लूथर किंग ने उनके संदेश व कार्य को ओर आगे बढ़ाया। दूसरी ओर बड़ी ताकतों ने विध्वंसक हथियारों को और आगे बढ़ाया। 1945 में परमाणु बम हिरोशिमा व नागासाकी (जापान) पर गिराए गए। फिर परमाणु हथियार और अधिक विध्वंसक होते रहे।

आज इन शस्त्रों का 10 प्रतिशत भी वास्तविक उपयोग हो जाए तो विश्व तहस-नहस हो जाएगा। 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के साथ बहुत से लोगों को लगा कि अमेरिका व सोवियत संघ की सबसे बड़े टकराव का खतरा दूर हो गया है। इसी समय के आसपास वैज्ञानिकों की चेतावनियां बढ़ने लगीं कि जलवायु बदलाव व लगभग दस अन्य गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं के कारण धरती की जीवनरक्षक स्थितियां ही गंभीर खतरे में हैं। अत: यह उचित समय था कि हथियारों की खतरनाक दौड़ से बचकर पर्यावरण रक्षा पर व सभी की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया जाए पर ऐसा नहीं हुआ और 9/11 के बाद अमेरिका ने आक्रामकता का नया दौर आरंभ किया जिसके तहत इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया जैसे देशों को  ध्वस्त किया गया जिससे आतंकवाद की समस्या और जटिल हो गई।

सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस एक संकट की स्थिति में गुजरा पर पुतिन के नेतृत्व में स्थिति में संभाला गया। दूसरी ओर पश्चिमी देश पुतिन के प्रति अधिक आक्रामक हो गए और यूक्रेन को रूस से प्रॉक्सी युद्ध की ओर धकेला गया। 2022-23 में इस युद्ध के कारण विश्व की सुरक्षा स्थिति और बिगड़ती गई व तीसरे युद्ध की संभावना पहले से कहीं अधिक बढ़ गई। तिस पर अक्टूबर, 2023 में इस्रइल और फिलिस्तीन संघर्ष बहुत गंभीर स्थितियों में तेज हो गया जिससे गाजा पट्टी में बहुत त्रासद स्थिति उत्पन्न हो गई। जहां मध्य-पूर्व क्षेत्र पहले से ही बहुत संवेदनशील रहा है, वहां अब यहां टकराव व तनाव की स्थितियां और गंभीर हो गई।

इस तरह पिछली शताब्दी के इतिहास में जहां औपनिवेशिक राज विरोधी संघर्ष, महात्मा गांधी के प्रेरक अहिंसक मार्ग, दर्जनों देशों की स्वतंत्रता अनेक महान व्यक्तियों के जीवन की प्रेरणादायक कहानी है, वहां 1924-23 के इस दौर में इससे भी बड़ी उपस्थिति निर्थक युद्धों की तबाही, आधिपत्य की अंधी होड़ व अधिकाधिक विध्वंसक हथियारों की दौड़ की है। साम्राज्यवादी ताकतों में जो अपना आधिपत्य स्थापित करने की होड़ थी, उसके कारण दो विश्व युद्ध हुए पर इससे जरूरी सबक न सीख कर आज तक आर्थिक, राजनीतिक व सैन्य स्तर पर आधिपत्य की होड़ चल रही है व दुनिया के लिए नये संकट उत्पन्न हो रहे हैं। यह भी तब हो रहा है जब धरती की जीवनदायिनी क्षमता को खतरे में डालने वाले संकट निरंतर बढ़ रहे हैं। अत: पिछली शताब्दी के इतिहास का सबसे बड़ा सबक है कि अब यदि धरती, इंसान व जीवन के सभी रूपों को बचाना है तो अमन-शांति, न्याय व समता, पर्यावरण व जैव विविधता की रक्षा को ही जीवन का आधार बनाना होगा।

भारत डोगरा


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