सौम्या को न्याय मिला
दिल्ली की अदालत ने सौम्या विश्वनाथन की हत्या के चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुना दी है। अंग्रेजी समाचार चैनल की पत्रकार सौम्या की 2008 में 30 सितम्बर की दरम्यानी रात दक्षिणी दिल्ली में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।
सौम्या को न्याय मिला |
दोषी रवि कपूर, अमित शुक्ला, अजय व बलबीर को उम्रकैद व जुर्माने की सजा का ऐलान हुआ है। अदालत ने इससे पहले इनको धारा 302 के साथ मकोका यानी महाराष्ट्र संगठित अपराध अधिनियम प्रावधान के तहत दोषी ठहराया। पांचवे आरोपी अजय सेठी को संगठित अपराध को बढ़ावा देने, मददगार साबित होने या जानबूझकर सहायता करने की साजिश रचने का दोषी ठहराया।
पुलिस ने अपराध में प्रयोग की गई कार सेठी से बरामद की थी। उसे तीन साल की साधारण कारावास की सजा हुई। फैसले पर सौम्या की मां ने कहा कि पंद्रह सालों की कानूनी जंग के बाद हत्यारों को सजा मिली पर वह संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि उन्होंने माना इससे संदेश गया है कि जो ऐसा करेगा, उसे सजा मिलेगी। अदालत द्वारा दोष सिद्ध होने के बाद ही उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं, हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा मिले न कि एक बार में मौत ताकि हमने जो झेला है, उसका उन्हें अहसास होता रहे।
सौम्या के पिता इस फैसले के दरम्यान अस्पताल में आईसीयू में भर्ती थे। यह हत्या देर रात काम से लौटने वाली हर स्त्री और उसके परिवार के लिए खौफजदा करने वाली साबित हुई थी। उस पर न्याय मिलने में इतनी देरी, लूटपाट, उठाईगीरी, छेड़छाड़ व बलात्कार की नीयत से वीरान सड़कों पर मंडराने वालों के खौफ से आम जन कतई मुतमईन नहीं है। हालांकि कहा जा सकता है कि बीतते वक्त के दौरान प्रमुख चौराहों व सड़कों के मुहानों पर कैमरे लगाए गए हैं। पुलिस गश्त भी बढ़ी है।
मगर उसी तादाद में लड़कियों/महिलाओं की रात्रिकालीन पारियों में काम करने की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है। आपराधिक प्रवृत्ति वालों के इरादों व बढ़ते अपराधों को देखते हुए काम से लौटने वाली कर्मचारियों की सुरक्षा उपायों को लेकर मुस्तैदी बरती जाने लगी हैं। इसके बावजूद देर शाम लूट/जानलेवा हमलों व हत्याओं को रोकने में सफलता नहीं मिल पा रही। छोटे शहरों व कस्बों में तो हालात बद से बदतर हैं। संगठित अपराध थामने और त्वरित न्याय के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत पर बल देना होगा।
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