छात्राओं को सुविधाएं
सरकार स्कूली छात्राओं के लिए शौचालयों की व्यवस्था (Provision of Toilets)करे। अदालत ने देश के सभी सरकारी, सहायता प्राप्त व आवासीय स्कूलों में छात्राओं के लिए उनकी संख्या के आधार पर शौचालयों के निर्माण को लेकर राष्ट्रीय आदर्श नियमावली बनाने को भी कहा।
छात्राओं को सुविधाएं |
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चन्द्रचूड़ (DY Chandrachud) ने केन्द्र सरकार से सेनेटरी नैपकिन वितरित करने की नीति पर भी सवाल किया। पीठ ने आदेश दिया कि सभी राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश चार सप्ताह के भीतर मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन की रणनीति व योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को दें।
अदालत कांग्रेस नेता व जया ठाकुर की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 11 से 18 साल वाली लड़कियां शिक्षा प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना कर रही हैं जबकि अनुच्छेद-21 के तहत यह उनका मूल अधिकार है। मासिक धर्म को लेकर जागरूकता व जानकारी के अभाव में लड़कियों की पढ़ाई बाधित होती है।
केन्द्र ने बताया कि स्कूली लड़कियों को मुफ्त नैपकिन बांटने के लिए राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार किया गया है। अपने समाज में प्राथमिक शिक्षा के बाद रुकावटें आनी शुरू हो जाती हैं। जिनके मूल कारणों में शिक्षण संस्थानों में शौचालय न होना है। जहां ये हैं भी वहां गन्दगी, जलभराव, उचित साफ-सफाई का अभाव रहता है।
कुछ जगह केवल एकाध शौचालय ही है, जिससे छात्राओं खासी दिक्कत आती है। उस पर मासिक शुरू होते ही समुचित व्यवस्था तथा इससे निपटने के लिए सुरक्षित स्थान ना होने के कारण वे स्कूल जाने से कतराती हैं। विभिन्न कार्यक्रमों के तहत सरकारों ने शौचालयों का निर्माण कराया तो है मगर उनकी समुचित देखभाल व नियमित साफ-सफाई के प्रति घोर लापरवाही नजर आती है। रही बात सेनेटरी नैपकिनों के वितरण की तो उसके लिए शिक्षण संस्थानों को जवाबदेह बनाया जाए।
उनकी गैरजिम्मेदारी पर सख्त कार्रवाई की व्यवस्था हो। साथ ही स्कूलों में छात्राओं को मासिकधर्म व इस दौरान विशेष साफ-सफाई की उचित जानकारी दी जाए। उन्हें शारीरिक संरचना व मनोवैज्ञानिक तौर पर विस्तारपूर्वक समझाया जाए कि मासिक डरावनी, बुरी या गन्दी चीज नहीं है। इस दरम्यान होने वाली पीड़ा के प्रति भी उन्हें आगाह किया जाए और उससे निपटने के घरेलू नुस्खे बताए जाएं।
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