राजनीति की धुरी

Last Updated 23 Sep 2023 01:38:39 PM IST

संसद के विशेष सत्र के चौथे और अंतिम दिन लोक सभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई कोटा देने वाला नारी शक्ति वंदन विधेयक राज्य सभा में भी सर्वसम्मति से पारित हो गया।


राजनीति की धुरी

जनगणना और परिसीमन जैसी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद जब चुनावों में आरक्षण की यह नई व्यवस्था लागू होगी तो लोक सभा और विधानसभा के परिदृश्य बदले हुए दिखाई देंगे। सदन महिलाओं की भारी उपस्थिति के साक्षी बनेंगे। संसद में इस विधेयक पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हुई बहसों ने पुरानी दरारों को फिर से उजागर कर दिया जिनकी वजह से दो-ढाई दशकों से महिला आरक्षण विधेयक पारित नहीं हो पा रहा था।

भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू), डीएमके आरक्षण के माध्यम से समाज के अन्य पिछड़े वर्ग के सशक्तीकरण के समर्थक रहे हैं। वास्तव में अन्य पिछड़ा वर्ग का एक रूप नहीं है। इसमें अनेक जातियां हैं जिनके प्रति सामाजिक न्याय का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियां अपनी रुचि दिखा रही हैं। विशेष रूप से मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद इनके रुख में ज्यादा तेजी आई।

इन सभी दलों की मांग है कि महिला आरक्षण में अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए भी आरक्षण का प्रावधान किया जाए। भाजपा के हिंदुत्व की लहर को रोकने के लिए बिहार के राजद, जद (यू) और सपा ने जाति आधारित जनगणना की राजनीतिक को आगे बढ़ाया है। दिलचस्प यह है कि अब कांग्रेस पार्टी भी इस समूह में शामिल हो गई है। राहुल गांधी का विश्वास है कि महिला आरक्षण विधेयक तब तक पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाएगा जब तक कि उसमें अन्य पिछड़े तबके की महिलाओं के लिए कोटा आरक्षित नहीं किया जाएगा। इसका मतलब है कि इस संबंध में राजनीति थमेगी नहीं। यह मांग लगातार उठती रहेगी।

कांग्रेस समझ रही है कि वर्तमान समय में अन्य पिछड़ा वर्ग भाजपा की धुरी बने हुए हैं। जब तक इस वर्ग की जातियों के मन में भाजपा के प्रति शंकाएं पैदा नहीं की जाएंगी तब तक सत्ता में वापसी संभव नहीं। इसका अर्थ है कि जाति आधारित जनगणना विपक्षी राजनीति की धुरी बनने जा रही है। राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी जातियां शक्तिशाली और प्रभावशाली हैं। इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां इनकी मान-मनौव्वल करने में जुटी हुई हैं।



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