BRICS : ताकतवर बनकर उभरे पुतिन

Last Updated 26 Oct 2024 01:13:21 PM IST

अधिनायकवादी नेताओं की वैश्विक नीतियां उनके शासन के लक्ष्यों से प्रभावित होती हैं। वे अपने लिए रणनीतिक साझेदार ढूंढते हैं और अक्सर उन देशों के साथ संबंध स्थापित करते हैं जो उनके विरोधियों के खिलाफ खड़े होते हैं।


यह स्थिति उन्हें वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने में मदद करती है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आधुनिक दुनिया के अग्रणी अधिनायकवादी राष्ट्राध्यक्ष है जो अपनी शक्ति को बनाएं रखने और अपने देश के लिए एक खास प्रकार की वैश्विक पहचान बनाने की कोशिशों में सफल रहे हैं। करीब ढाई दशक से रूस की सत्ता के केंद्र में रहने वाले पुतिन की नेतृत्व शैली और नीतियां उन्हें एक शक्तिशाली और विवादास्पद नेता बनाती हैं, जिनका प्रभाव न केवल रूस में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी देखा जाता है।

रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हुआ और पुतिन ने बेहद कूटनीतिक चतुराई से चीन और भारत के राष्ट्राध्यक्षों के बीच सुलहनामा को बहुप्रचारित करके सबको चमत्कृत कर दिया।  पुतिन ने सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और जिनपिंग को लेकर थम्स अप का इशारा कर अमेरिका और यूरोप को यह संदेश भी दे दिया की दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को उनका समर्थन हासिल है।

भारत पश्चिम के साथ कुछ मौकों पर खड़ा तो दिखाई पड़ सकता है, लेकिन वह विसनीय रणनीतिक भागीदार रूस का ही  रहेगा।  दरअसल, पुतिन ब्रिक्स का उपयोग रूस के लिए एक ऐसे रणनीतिक मंच के रूप में  करने में सफल रहे है जो उन्हें वैश्विक राजनीति में अधिक प्रभावी बनने में मदद करता है। ब्रिक्स जैसे मंच पर रूस ने अपने दो बड़े सहयोगियों और दो सबसे बड़े आबादी वाले देशों के नेताओं की मुलाकात को यादगार दिखाकर इसे दुनिया भर में अपनी रणनीतिक सफलता के रूप में  दिखाने की कोशिश की। यह भी दिलचस्प है कि भारत और अमेरिका के संबंध हाल के वर्षो में काफी मजबूत हुए हैं।

दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियारों की बिक्री और रक्षा प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है। दोनों देश एक दूसरे के लिए महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं तथा कई मुद्दों पर साझा हित भी रखते है। अमेरिका चीन को एक प्रमुख रणनीतिक प्रतिस्पर्धी मानता है। इसका मुख्य कारण चीन की तेजी से बढ़ती सैन्य शक्ति, आर्थिक प्रभाव और वैश्विक स्तर पर उसकी विस्तारवादी नीतियां हैं। अमेरिका चीन  के वैश्विक प्रभाव को रोकना चाहता है और इसीलिए उसने क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधनों को तरजीह दी है। दक्षिण चीन सागर से विश्व व्यापार का एक बड़ा हिस्सा गुजरता है। क्वाड, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच है।

दक्षिण चीन सागर में चीन की चुनौती एक जटिल मुद्दा है जो क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक हित और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर रहा है। क्वाड के सदस्य देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताएं अलग अलग होने से, इस समूह के राष्ट्रों के बीच ही अंतर्विरोध देखा जा रहा है। यही कारण है कि क्वाड का प्रभाव न तो सामरिक और कूटनीतिक स्तर पर दिखाई पड़ता है और न ही चीन से निपटने के लिए कोई प्रभावी कार्ययोजना और दीर्घकालिक रणनीति आगे बढ़ सकी है। पुतिन के लिए चीन बेहद खास सहयोगी है तथा भारत की भूमिका के बिना क्वाड की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

पुतिन ने भारत और चीन के बीच संबंधों के सामान्य होने का संदेश देकर अमेरिकी मंसूबों को गहरा झटका दिया है। कजान में हिस्सा लेने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन भी पहुंचे थे। अर्दोआन अपने पश्चिम के पारंपिक सहयोगियों से आगे बढ़कर ब्रिक्स देशों से नजदीकी बनाने में जुटे हैं। तुर्की 1952 से नाटो का सदस्य है और यह संगठन के लिए एक रणनीतिक स्थान रखता है। तुर्की की भौगोलिक स्थिति उसे नाटो के लिए एक महत्त्वपूर्ण सदस्य बनाती है।

यह मध्य पूर्व, काकेशस और यूरोप के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है। नाटो का विस्तार पूर्व सोवियत गणराज्यों की ओर हुआ है जिसे रूस अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया का अधिग्रहण और पूर्वी यूक्रेन में संघर्ष ने नाटो-रूस संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया। नाटो ने पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाया है, जो रूस के लिए चिंता का विषय है। तुर्की और नाटो के संबंध वैश्विक सुरक्षा और भू-राजनीतिक संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं। तुर्की की सेना नाटो की दूसरी सबसे बड़ी सेना है, जो नाटो के सामूहिक रक्षा सिद्धांत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पुतिन ने नाटो के अहम सदस्य को अपने खेमे में लाने के संकेत देकर यूरोप की सुरक्षा को अंदेशे में डाल दिया है।

ब्रिक्स के माध्यम से रूस को ऐसे देशों के साथ सहयोग करने का अवसर मिलता है जो अक्सर पश्चिमी नीतियों का विरोध करते हैं, जैसे कि चीन और भारत। यह एक सामूहिक शक्ति के रूप में उभरने में मदद करता है। अब ईरान और तुर्की जैसे सहयोगी रूस को मजबूत कर रहे हैं। ब्रिक्स सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने से रूस को आर्थिक अवसर मिलते हैं।

पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए पुतिन ने ब्रिक्स को आर्थिक विकल्प के तौर पर पेश किया है। उन्होंने चीन, भारत, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात में नये व्यापारिक साझेदारों की तलाश कर यूरोप को कड़ा जवाब दिया है। पुतिन ने पश्चिमी देशों के प्रति एक स्पष्ट और चुनौतीपूर्ण रुख अपनाया है, जिससे वैश्विक राजनीति में नया समीकरण उभरता है।  ब्रिक्स सम्मेलन की समाप्ति के बाद भारत और चीन को क्या हासिल होगा यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन पुतिन ने एक बार फिर ताकतवर और माहिर होने का सबूत दिया है।
(लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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