मुद्दा : तय हो सांसदों-विधायकों की जवाबदेही

Last Updated 26 Oct 2024 12:59:55 PM IST

चौदहवीं लोक सभा के अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी (Somnath Chatterjee) ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि संसद का बहिष्कार करने वाले सांसदों का दैनिक भत्ता काट लिया जाना चाहिए।


आपको शायद ज्ञात हो कि लोक सभा सत्र के दौरान मात्र एक मिनट की कार्यवाही पर सदन का खर्चा लगभग ढाई लाख रुपए आता है। चटर्जी का मानना था कि ऐसे कानूनी प्रावधान या नियम तय किया जाना चाहिए जिनसे सांसद सदन के प्रति अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाएं। पर अफसोस है कि इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर तब से अब तक ऐसा कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। नि:संदेह यह गंभीर समस्या है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहे वे सांसद हो या विधायक अक्सर सदन के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह गंभीरता से नहीं करते।

वैसे तो सांसदों के आचरण से क्षुब्ध हो कर तत्कालीन दिवंगत लोक सभाध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने भी यह मांग उठाई थी और कुछ सख्त कार्यवाही पर सहमति भी बनी थी पर उसे लागू करने में विभिन्न पार्टी नेताओं की आनाकानी से उसमें वे सफल नहीं हो पाए थे, परंतु इस मुद्दे पर यदि गंभीरता से सभी पार्टी नेता अपना सहयोग सांसदों के आचरण के सुधार की पहल में करते हैं तो कोई कारण नहीं जो लोक सभा की कार्यवाहियों के समय को जाया जाने से बचाया न जा सके। अगर ऐसा लोक सभा में हो जाता है तो इससे सीख लेकर प्रदेश सरकार अपने-अपने विधानसभाओं में विधायकों को सांसदों के आचरण का अनुसरण जैसी सीख देने में सफल हो सकते हैं वरना जनता के खून-पसीने की कमाई को यूं ही जनसेवक बर्बाद करते रहेंगे और जनता यूं ही देखती रह जाएगी।

ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां सांसदों के आचरण के कारण कई लोक सभा सत्र के दौरान हो-हल्ला मचने से बर्बाद हुए। अब आप समझ सकते हैं कि मात्र एक मिनट लोक सभा कार्यवाही का खर्चा जब ढाई लाख रुपए आता है तो बीते लोक सभा सत्रों के दौरान इतने समय की कीमत से अगर विकास कार्य होता या किसानों के कर्ज को माफ किया गया होता तो आए दिन कर्ज के कारण देश जिस प्रकार किसान आत्महत्या कर रहे हैं उनमें से कुछ को अवश्य ही बचाया जा सकता है। एक तरफ तो कर्ज और भुखमरी के कारण लोग असमय मर रहे हैं और दूसरी ओर समय की कीमत को न समझना यह समझदारी कतई नहीं हो सकती।

कुछ वर्ष पहले पत्रकार सूर्य प्रकाश ने सांसदों के व्यवहार पर एक शोध किया। अनेकों सांसदों से बातचीत के आधार पर उन्होंने अंग्रेजी में अपनी पुस्तक ‘व्हाट एल्स इंडियन पार्लियामेंट-एन एग्जक्टिव डायग्नोसिस’ छापी। जिसमें खुद सांसदों ने यह स्वीकारा था कि वे किस तरह का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार सदन में करते हैं। मसलन, सांसदों ने ही बताया कि किस तरह बिना कोरम पूरे किए ही महत्त्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा की खानापूर्ति हो जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि अक्सर सांसदों की रुचि संसद की कार्यवाही में नहीं होती और वे अपनी उपस्थित रजिस्टर पर दस्तखत करके सत्र के दौरान सदन से गायब रहते हैं, दस्तखत इसलिए करते हैं कि उन्हें भत्ते के रूप में मिलने वाली धनराशि 1000 मिल जाए। सांसदों ने यह भी बताया कि प्रश्न पूछने के लिए किस तरह के गैर-जिम्मेदाराना कार्य किए जाते हैं, जिनसे अपने क्षेत्र या देश का हित नहीं बल्कि निहित स्वाथरे का हित पूरा होता हैं। पिछले एक दशक में उजागर हुए अनेक किस्म के घोटालों से बहुत से सांसदों के चरित्र और कार्य शैली पर प्रश्नचिह्न लग गए हैं, जिनका यहां खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।

इस सब के बावजूद यह जरूरी है कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहे वे सांसद हो या विधायक सदन के प्रति जिम्मेवारी से व्यवहार करें और इसके लिए कानून और नियमों में आवश्यक सुधार किए जाएं। सांसदों को अनुशासित करने की दृष्टि से लोक सभा अध्यक्ष को यह पहल करनी ही चाहिए और हर दल के अध्यक्ष को इस प्रयास में सकारात्मक सहयोग देना चाहिए। इससे सदन की गरिमा बढ़ेगी और विधायिका के प्रति जनता में विश्वास बढ़ेगा। जब सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों और निजी क्षेत्र में लगे लोगों से अनुशासित आचरण की अपेक्षा की जाती हैं और जरा सी लापरवाही पर दण्डात्मक कार्यवाही की जाती है तो फिर सांसदों और विधायकों से ऐसे आचरण की अपेक्षा क्यों न की जाए।

कहावत भी है कि यथा राजा तथा प्रजा। सांसदों और विधायकों का आचरण अनुकरणीय होना चाहिए। निजी जीवन में न सही पर कम से कम सदन में तो उसकी मर्यादा के अनुरूप आचरण किया ही जाना चाहिए। जो भी सांसद या विधायक सदन की कार्यवाही के दौरान उपस्थित रजिस्टर पर दस्तखत करने के बाद भी उपस्थित न रहे उनका दैनिक भत्ता तो काटा ही जाए लगातार तीन बार ऐसा करने पर संसदीय समितियों से हटा दिया जाए और इसके बावजूद उनका व्यवहार न बदले तो दिल्ली में दी गई उन्हें आवास या अन्य सुविधाएं वापस लेने की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए। कुल मिलाकर प्रयास यही होना चाहिए कि सांसद और विधायक सदन के सत्र के दौरान जिम्मेदारी से व्यवहार करें, जिससे जनता की आस्था उनमें बढ़े। जो भी लोक सभा अध्यक्ष, जब भी ऐसा प्रयास करे, तो ऐसे प्रयास का मुक्त हृदय से समर्थन किया जाना चाहिए। पूरे देश के जागरूक नागरिकों विशेषकर युवाओं को ऐसे प्रयास के समर्थन में अध्यक्ष को पत्र भी लिखने चाहिए जिससे उनका मनोबल बढ़े।

रजनीश कपूर


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