कर्ज का चस्का

Last Updated 23 Sep 2023 01:27:08 PM IST

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India) ने पिछल दिनों कहा था कि घरेलू बचत पिछले पांच दशकों में सबसे कम हो गई है। दूसरी तरफ कर्ज या सालाना वित्तीय देनदारी बढ़कर 5.8 फीसद हो गई, जो 2021-22 में 3.8 फीसद थी।


रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

रिसर्च में सामने आया कि लोगों की आमदनी कम हो रही है, जबकि कर्ज बढ़कर दोगुने से अधिक यानी 15.6 लाख करोड़ पहुंच चुका है। कहा गया कि इस घरेलू बचत से निकासी का बड़ा हिस्सा भौतिक संपत्ति में चला गया है। केवल 7.1 लाख करोड़ रुपये आवास ऋण व अन्य खुदरा कर्ज के तौर पर बैंकों से लिया गया। कोविड महामारी के दौरान घरेलू ऋण व जीडीपी का अनुपात बढ़ा था, जिसमें गिरावट दर्ज की गई है।

वित्त मंत्रालय ने रजनीतिक हलकों व सोशल मीडिया पर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अपना पक्ष रखा। उन्होंने घरेलू बचत में गिरावट कारण लोगों का कर्ज लेकर ज्यादा घर व गाड़ियां लेना बताया। यह सच है कि नया मध्यवर्ग तेजी से बढ़ रहा है। जैसा कि सरकार दावा करती है गरीबी रेखा से लोग ऊपर उठते जा रहे हैं। ये सारे लोग अपना जीवन स्तर सुधारना चाहते हैं। देश में हर तीन में से एक भारतीय अभी मध्यवर्ग में आता है। कहा जा रहा है 2047 तक इनकी संख्या दोगुनी हो सकती है।

साथ ही उपभोक्तावाद अपने चरम पर है। लोगों में भौतिक सुविधाओं के प्रति आकषर्ण बढ़ता जा रहा है। इसलिए खुद को मध्यवर्ग में शामिल करने के लोभ में कर्ज लेकर सुविधाएं जुटाने में सहूलियत मान रहे हैं। यह भी सच है कि बैंकों व अन्य आर्थिक संस्थाओं पर कर्ज बांटने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। वे सुविधाजनक तरीके से कर्ज मुहैया कराने का प्रयास करते हैं। यह भी मानना होगा कि कोरोना महामारी ने लोगों के भीतर एक तरह की दहशत पैदा की है।

उन्हें जिंदगी जीने में अब देरी करना फिजूल लगने लगा है। मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने वाले कमजोर आय वर्ग वालों ने अपना भविष्य वयस्क बच्चों के कांधों पर डाल दिया है। जिनके बच्चे ठीक-ठाक नौकरी पा चुके हैं, वे भी अपना रहन-सहन बदल रहे हैं। बचत करने में माहिर रहा आम मध्य वर्ग संकट के लिए केवल रकम जोड़ कर नहीं रख रहा। बल्कि उन्होंने तरह-तरह के बीमा और अन्य निवेशों में जोखिम लेना भी चालू किया है।



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