भरोसा जगाने वाला फैसला
भ्रष्टाचार से खीझाए-उकताए लोगों के लिए यह खबर राहतकारी हो सकती है। संयुक्त सचिव या इनसे भी बड़े ओहदे पर बैठे आला अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई जांच के लिए पूर्व इजाजत की जरूरत नहीं है।
भरोसा जगाने वाला फैसला |
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने दिल्ली स्पेशल पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम की धारा 6ए में संशोधन के तहत अफसरों को दिए गए कानूनी संरक्षण को अवैध करार देते हुए उसे रद्द कर दिया है। यह फैसला आमजन का न्यायालय में विश्वास को कायम रखने वाला और दूरगामी महत्त्व का एक बड़ा फैसला है।
वहीं, सरकार के संदर्भ में यह थोड़ा कड़ा हो सकता है। इस निर्णय का असर यह होगा कि सीबीआई को 11 सितम्बर 2003 के पहले-जब यह धारा जोड़ी गई थी-के मामलों में भी सीबीआई को अब सक्षम प्राधिकार से हरी झंडी मिलने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सोमवार को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह फैसला दिया कि इस मामले में 2014 में इस संशोधन को असंवैधानिक बताने का सर्वोच्च अदालत द्वारा फैसला सही था।
यह खुली सच्चाई है कि देश में कुछ सरकारी अफसरों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के सैकड़ों मामले हैं, जिनमें सीबीआई वर्षो से सक्षम प्राधिकारों की इजाजत मिलने का इंतजार कर रही थी। उम्मीद है कि अब जांच तेज होगी तो ऐसे अफसरों की जिम्मेदारी भी तय होगी और उसके अनुरूप फैसले आएंगे। देश का आम आदमी तो उम्मीद खो चुका है कि ऐसे अफसरों का बाल भी बांका हो सकता है। इसलिए भी कि ऐसे अफसर अपने भ्रष्ट आचरणों को ‘ऊपर’ का दबाव बता कर जायज ठहरा लेते हैं।
हालांकि यह ‘ऊपरवाला’ कौन है, इसे समझदार समझते हैं। इसलिए इन लोगों को इस फैसले के अंतिम साबित होने का विश्वास कम ही होगा। यह कि, सरकारी अफसरों को बेवजह के मामले में फंसा कर उन्हें परेशान होने से बचाने के नाम पर अब कोई विधेयक या अध्यादेश इसके बाद नहीं लाया जाएगा। दरअसल, ऐसी कोशिश 1969 से ही जारी है, जब सीबीआई को ऐसे मामले में करणीय-अकरणीय बिंदुओं का एकल निर्देश केंद्र की तरफ से जारी किया गया था। इसे सर्वोच्च अदालत ने 18 सितम्बर 1997 को अवैध करार दिया था तो ऐसे ही आशय का एक अध्यादेश 25 अगस्त 1998 को लाया गया था। तब यह संशोधन आया था।
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