ताकत का केंद्रीकरण

Last Updated 29 Jan 2021 01:33:07 AM IST

ऑक्सफेम संस्था ने हाल में जारी रिपोर्ट में बताया है कि लॉकडाउन के दौरान गरीब भले ही संकट में रहे पर अरबपतियों की दौलत तेज गति से बढ़ी।


ताकत का केंद्रीकरण

रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की दौलत में 35 फीसद का इजाफा हुआ है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट ‘इनइक्वालिटी वायरस’ में बताया गया कि मार्च 2020 के बाद की अवधि में भारत में 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रु पये की बढ़ोतरी हुई है। इतनी राशि को अगर देश के 13.8 करोड़ सबसे गरीब लोगों में बांट दिया जाए तो सबके हिस्से में 94,045 रु पये आ जाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया कि महामारी के दौरान भारत के 11 प्रमुख अरबपतियों की आय में जितनी बढ़ोतरी हुई, उससे मनरेगा और स्वास्थ्य मंत्रालय का मौजूदा बजट एक दशक तक प्राप्त हो सकता है। सत्ता चाहे और राजनीतिक हो या आर्थिक मोटे तौर पर उसका वितरण तो असमान ही है।

राजनीतिक सत्ता के केंद्र में भी चुनिंदा परिवार हैं। देश में पचास राजनीतिक परिवारों के हाथ बहुत जबरदस्त राजनीतिक सत्ता है। इसी तरह से आर्थिक ताकत भी कुछ औद्योगिक घरानों और कारोबारियों के पास है। अमीर होना श्रमपूर्वक और ईमानदारी से वांछनीय है। गरीब देश में ऐसे उद्योगपति और उद्यमियों की सख्त जरूरत है। पर जब तमाम उद्योग-धंधे कुछ ही उद्योगपतियों के हाथों में जाने लगें, तो आर्थिक के साथ राजनीतिक सवाल भी खड़े हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि नीतिगत स्तर पर असमानता को कम करने की कोशिशें हुई नहीं है। कुछ सालों पहले कुछ श्रेणी की कंपनियों पर कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलटी टैक्स लगाया गया था। इन कंपनियों को अपने मुनाफे पर एक न्यूनतम दर से कर देना होता है सरकार को। पर असमानता कम होने का नाम नहीं ले रही है। दुनिया भर में विमर्श इस बात पर चल रहा है कि किस तरह से धन का केंद्रीकरण कम किया जाए।

फ्रेंच अर्थशास्त्री थामस पिकेटी ने कुछ साल पहले ‘केपिटल’ नामक ग्रंथ लिखकर इस विमर्श को अपनी तरह से समृद्ध किया था। राजनीतिक अर्थशास्त्र के इस विषय पर कोरोना काल में एक नये आयाम से चिंतन की जरूरत है। संकट अमीर को और ज्यादा अमीर बनाकर जाता है। पर जो भी हो, इतना तो सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि परम संपन्नता के टापुओं से बाहर दम तोड़ते थके हारे मजदूर प्रवासी नहीं दिखें, जैसे कोरोना काल में देश ने देखे थे। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के बहाने असमानता पर सार्थक विमर्श होना चाहिए।



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