‘औद्योगिक अल्कोहल’ पर राज्यों का है हर तरह का हक : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 24 Oct 2024 07:03:24 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक फैसले में कहा कि राज्यों को औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण और आपूर्ति करने का नियामक अधिकार है।


सुप्रीम कोर्ट

न्यायालय ने एक के मुकाबले आठ के बहुमत से पारित अपने फैसले में कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 8 में ‘मादक शराब’ वाक्यांश के दायरे में औद्योगिक अल्कोहल भी शामिल होगी।

बहुमत पीठ में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। 

हालांकि, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि राज्यों के पास औद्योगिक अल्कोहल या मिलावटी स्पिरिट को विनियमित करने की विधायी क्षमता नहीं है। 

उच्चतम न्यायालय के बहुमत के फैसले ने 1990 के सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति है।  औद्योगिक अल्कोहल मानव उपयोग के लिए नहीं होता है।

बहुमत का फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रविष्टि 8 में ‘कच्चे माल से लेकर मादक शराब के उत्पादन तक’ हर चीज को विनियमित करने का प्रयास किया गया है। सात न्यायाधीशों की तरफ से भी सीजेआई ने फैसला लिखा।

पीठ ने 364 पन्नों के फैसले में कहा कि संसद केवल सूची-एक की प्रविष्टि 52 के तहत घोषणा करके पूरे उद्योग के क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर सकती।

पीठ ने कहा कि संसद के पास मादक शराब के उद्योग पर नियंत्रण करने के लिए कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं है। बहुमत के फैसले में कहा गया है कि प्रविष्टि 8 में ‘मादक शराब’ वाक्यांश में शराब से संबंधित वे सभी तरल पदार्थ शामिल हैं जो लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि आठ, राज्यों को ‘मादक शराब’ के निर्माण, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने का अधिकार देती है।

वहीं संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में उन उद्योगों का उल्लेख है जिनके नियंतण्रको ‘संसद ने कानून द्वारा सार्वजनिक हित में समीचीन घोषित किया है।’

संसद और राज्य विधानमंडल दोनों समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून बना सकते हैं, लेकिन केंद्रीय कानून को राज्य कानून पर प्राथमिकता दी जाएगी।

समय डिजिटल डेस्क
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment