मानहानि का मुकदमा : मेधा पाटकर को पांच महीने की जेल व 10 लाख रुपये का जुर्माना

Last Updated 01 Jul 2024 06:06:14 PM IST

दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर को 2001 में वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कराए आपराधिक मानहानि मामले में पांच महीने के कारावास 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।


मेधा पाटकर

सजा की घोषणा करते हुए, साकेत कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को सक्सेना की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए उन्हें मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया।

सक्सेना की ओर से अधिवक्ता गजिंदर कुमार, किरण जय, चंद्रशेखर, दृष्टि और सौम्या आर्य ने अदालत में पैरवी की।

गजिंदर कुमार ने आईएएनएस को बताया कि अदालत से दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को मुआवजे की राशि आवंटित करने का अनुरोध किया गया था।

पाटकर को 24 मई को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के मामले में अदालत ने दोषी ठहराया गया था।

सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उस समय वह अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

पिछली सुनवाई के दौरान, सजा के मामले में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें दी थीं। शिकायतकर्ता सक्सेना ने पाटकर को अधिकतम सजा देने की मांग की थी। उन्होंने दलील दी थी कि पाटकर अक्सर कानून की अवहेलना करती रहती हैं। सक्सेना ने कोर्ट में पाटकर का आपराधिक इतिहास भी पेश किया। उन्होंने बताया कि झूठी दलीलों के लिए एनबीए को सुप्रीम कोर्ट भी फटकार लगा चुका है।

सक्सेना ने पाटकर को कड़ी सजा देने की मांग करते हुए कहा था कि वह अक्सर कानून की अवहेलना करती रहती हैं। उन्होंने अदालत में लंबित 2006 के एक अन्य मानहानि मामले का हवाला भी दिया।

शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया था कि पाटकर नैतिकता का भी ध्यान नहीं रखती हैं। यह उनके पिछले आचरण और आपराधिक इतिहास से स्पष्ट है।

सक्सेेना की ओर मांग की गई थी कि,"पाटकर को रोकने और समाज में एक उदाहरण स्थापित करने के लिए उन्हें अधिकतम सजा दी जानी चाहिए, ताकि दूसरे लोग देश के विकास में बाधा डालने वाले कृत्यों में शामिल होने से परहेज करें।"

मानहानि का यह मामला 2000 में शुरू हुआ था। उस समय, पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ उन विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए मुकदमा किया था। पाटकर ने दावा किया था कि ये विज्ञापन उनके और एनबीए के लिए अपमानजनक थे।

इसके जवाब में, सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मानहानि के दो मामले दर्ज कराए थे। पहला, टेलीविजन कार्यक्रम के दौरान उनके बारे में कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए और दूसरा, पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस बयान से जुड़ा था।

पाटकर को दोषी ठहराते हुए मजिस्ट्रेट शर्मा ने उल्लेख किया कि पाटकर ने आरोप लगाया और प्रकाशित किया कि शिकायतकर्ता ने मालेगांव का दौरा किया, एनबीए की प्रशंसा की और 40 हजार रुपये का चेक जारी किया। यह चेक लाल भाई समूह से आया था, जो एक कायर और देश विरोधी था।

मजिस्ट्रेट शर्मा ने उल्लेख किया था, "उपरोक्त आरोप प्रकाशित करने के पीछे आरोपी का सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का इरादा था। उसे विश्वास था कि इस तरह के आरोप से शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा।"

पाटकर की सजा के लिए आदेश देते हुए मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा कि प्रतिष्ठा किसी भी व्यक्ति की सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है।

आईएएनएस
नई दिल्ली


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