सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की टिप्पणी : OTT पर ’हानिकारक सामग्री‘ पर नियंत्रण को नए कानून की जरूरत

Last Updated 23 Feb 2025 07:07:02 AM IST

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय डिजिटल मंचों पर ‘अश्लीलता और हिंसा’ दिखाए जाने की शिकायतों के बीच ‘हानिकारक’ सामग्री को विनियमित करने के लिए एक नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता और मौजूदा वैधानिक प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है।


यह एक यूट्यूब कार्यक्रम में रणवीर इलाहाबादिया की अभद्र टिप्पणियों को लेकर पैदा हुए विवाद के बाद सोशल मीडिया पर सरकार द्वारा निगरानी बढ़ाए जाने के लिए कदम उठाए जाने का संकेत है। 

संसदीय समिति को दिए अपने जवाब में मंत्रालय ने कहा, समाज में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि डिजिटल मंचों पर अश्लील और हिंसक सामग्री दिखाने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग किया जा रहा है।

मंत्रालय ने भाजपा नेता एवं सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थाई समिति को बताया, वर्तमान कानूनों के तहत कुछ प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन ऐसी हानिकारक सामग्री को विनियमित करने के लिए एक सख्त एवं प्रभावी कानूनी ढांचे की मांग बढ़ रही है। इसने कहा, मंत्रालय ने इन घटनाक्रम पर ध्यान दिया है और वह वर्तमान वैधानिक प्रावधानों एवं नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता की समीक्षा कर रहा है। 

मंत्रालय ने कहा, कई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, सांसदों और राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी वैधानिक संस्थाओं ने इस मुद्दे पर बात की है, जो सोशल मीडिया ‘इंफ्लूएंसर’ रणवीर इलाहाबादिया की अभद्र टिप्पणियों की व्यापक निंदा के बाद सुर्खियों में आया है। 

इलाहाबादिया के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से तो राहत दी, लेकिन उनकी टिप्पणियों की निंदा करते हुए उन्हें अश्लील और ‘गंदे दिमाग’ की उपज बताया है, जिसने समाज को ‘शर्मसार’ किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूब जैसे मंचों पर सामग्री साझा करने के मामले में कानून में मौजूद ‘शून्यता’ को रेखांकित किया और कहा, सभी तरह की चीजें चल रही हैं। मंत्रालय ने समिति से कहा, वह समुचित विचार-विमर्श के बाद एक विस्तृत नोट प्रस्तुत करेगा। 

समिति ने 13 फरवरी को मंत्रालय से यह बताने को था कि नई प्रौद्योगिकी और मीडिया मंचों के उभरने के मद्देनजर विवादास्पद सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए मौजूदा कानूनों में क्या संशोधन आवश्यक हैं। विभिन्न दलों के सदस्यों ने इलाहाबादिया की टिप्पणियों पर नाराजगी जताई जिसके बाद समिति ने सरकार को पत्र लिखा। 

पारंपरिक प्रिंट्र और इलेक्ट्रॉनिक’ सामग्री विशिष्ट कानूनों के अधीन आती हैं लेकिन ओटीटी मंच या यूट्यूब समेत इंटरनेट द्वारा संचालित नयी मीडिया सेवाओं के लिए कोई विशिष्ट नियामक कानूनी ढांचा नहीं है।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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