बिना कानूनी राय के धोखाधड़ी में FIR दर्ज कर सकेगी पुलिस
जालसाजी, धोखाधड़ी, अमानत में खयानत आदि के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पूर्व जिले के सरकारी वकील की कानूनी राय हासिल करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है।
बिना कानूनी राय के धोखाधड़ी में FIR दर्ज कर सकेगी पुलिस |
हाई कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं करने वाले पुलिस अफसरों को अवमानना की चेतावनी दी गई थी। यूपी सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की पुलिस के अधिकार बहाल कर दिए हैं।
जस्टिस सीटी रविकुमार और संजय करोल की बेंच ने अगली सुनवाई तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के 18 अप्रैल, 2024 के निर्णय पर स्टे दे दिया।
हाई कोर्ट का कहना था कि कॉमर्शियल और सिविल विवादों को बड़े पैमाने पर आपराधिक मामलों में तब्दील किया जा रहा है, इसलिए आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 408 (अमानत में खयानत), 420 (जालसाजी), 467 (धोखाधड़ी), 471 (जाली दस्तावेज को असली बताना) के तहत एफआईआर दर्ज करने से पहले संबंधित जिले के शासकीय अधिवक्ता या उप-शासकीय अधिवक्ता से कानूनी राय ली जाए।
सरकारी वकील की अनुशंसा के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की जाए और एफआईआर के अंत में सरकारी वकील की राय का जिक्र किया जाए।
उत्तर-प्रदेश सरकार बनाम सोने लाल तथा अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्टे ऑर्डर के बाद यूपी सरकार ने राहत की सांस ली है। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया और हाई कोर्ट के फैसले के कुछ पैराग्राफ पर रोक लगा दी, जिनमें डीजीपी सहित अन्य प्राधिकारों को कई निर्देश जारी किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि नोटिस जारी किया जाता है। इस पर चार सप्ताह में जवाब दिया जाए। आपराधिक याचिका पर पारित 18 अप्रैल, 2024 के आदेश के पैराग्राफ 15 से 17 का संचालन और कार्यान्वयन अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। आदेश का पालन न करने पर हाई कोर्ट ने अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
हाई कोर्ट ने भूमि के मालिकाना हक से संबंधित एक दीवानी विवाद की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था जिसमें मजिस्ट्रेट ने पुलिस को धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक विासघात के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।
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