नई संसद भवन के लोकार्पण की रार को ऐसे समझा जा सकता है!

Last Updated 26 May 2023 12:31:43 PM IST

नई संसद भवन के उद्घाटन को लेकर इस समय सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के हाथों इसका उद्घाटन होना है। या यूँ कहिए कि इसका लोकार्पण होना है। मोदी के उद्घाटन करने की बात सुनकर विपक्ष को मिर्ची लग गई है।


newsansadbhawan

 विपक्ष चाह रहा है कि संसद भवन का लोकार्पण राष्ट्रपति के हाथों हो। बात छोटी है लेकिन बड़ी की जा सकती है, जैसा कि इस समय हो रहा है। यह सबको पता है कि वही होने वाला है जैसा कि  वर्तमान सरकार ने सोच रखा है। बावजूद इसके पिछले कई दिनों से इस पर राजनीति हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले को इतना बड़ा क्यों बनाया जा रहा है। सरकार राष्ट्रपति के हाथों से इसका लोकार्पण ना करवाकर प्रधानमन्त्री के हाथों लोकार्पण क्यों करवाना चाह रही है?

भारत लोकतांत्रिक देश है। जनता के चुने हुए लोग यहाँ प्रधानमन्त्री से लेकर तमाम मंत्री तक बनते हैं। यानि सैद्धांतिक तौर पर जनता मालिक है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर जनता क्या है यह सबको पता है। प्रधानमंत्री हों या राज्यों के मुख्यमंत्री सब जनता की मेहरबानी से कुर्सी पर विराजमान होते हैं, लेकिन सब के सब जनता के हिसाब से काम करें, यह जरुरी तो नहीं है। जनता को यह समझना चाहिए कि इतनी मुश्किल से कोई व्यक्ति उस कुर्सी पर बैठता है जिस पर बैठने के लिए ना जाने कितने  लोग रात दिन सपना देखते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति वहां विराजमान हो गया है, तो उसका हक़ बनता है कि  वह कुछ ऐसा भी काम करे जो उसका मन करता है।

 मन की बात करते-करते मोदी के मन मे भी बस इतनी सी बात शायद उनके जहन में आ गई होगी। इसलिए उन्होंने लोकार्पण करने का मन बना लिया। उन्होंने किन-किन मुशीबतों का सामना करते हुए एक ऐसी इमारत बनाई है, जिसे सदियों तक याद किया जाता रहेगा। जब भी कोई उसमे प्रवेश करेगा तो शिलापट पर मोदी के नाम को गौर से पढ़ेगा। अब तक पुरानी संसद भवन में हम लोग अंग्रेजों का नाम पढ़ते रहे हैं, लेकिन अब सभी भारत या विदेश के लोग सिर्फ उस शिलापट पर भारतीय का नाम पढ़ेंगे। यही नहीं इस संसद भवन का निर्माण करने वाले लोग भी भारतीय ही हैं।

सत्ता पक्ष के नेता बार-बार यही कह रहे हैं कि पुरानी संसद भवन को अंग्रेजों ने बनवाया था। उनकी बात सही है, लेकिन इसके जवाब में विपक्ष के नेता यह कहकर उनकी बात का जवाब दे रहे हैं कि भले ही पुरानी संसद भवन को अंग्रेजों ने बनवाया था, लेकिन उसमें पैसा तो हिदुस्तान का ही लगा था। अंग्रेजों ने उसे बनवाने के लिए अपने घर से पैसा नहीं लगाया था। दोनों की दलीलें सही हो सकती हैं। प्रधानमंत्री मोदी खुद उसका लोकार्पण कर रहे हैं, यह भी सही ही सकता है लेकिन इस लोकार्पण कार्यक्रम में राष्ट्रपति की भूमिका का अभी तक खुलासा नहीं हो पाया है।

भारत एक गणतंत्रीय देश है, जिसका सर्वे सर्वा राष्ट्रपति होता है। ऐसे में राष्ट्रपति इस कार्यक्रम में शायद शामिल भी नहीं होने वाली हैं। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति को प्रोटोकॉल की वजह से नहीं बुलाया गया है। चूंकि लोकार्पण प्रधानमंत्री मोदी को करना है। लिहाजा राष्ट्रपति सिर्फ मेहमान के तौर पर यहां नहीं आ सकती। उन्हें अगर बुलाया गया तो लोकार्पण भी उन्हीं के हाथों से करवाना पड़ता। जबकि पहले से तय है कि नई संसद भवन का लोकार्पण मोदी ही करेंगे।

सब कुछ ठीक रहा तो आगामी 28 मई को नई संसद भवन का लोकार्पण हो जाएगा। लेकिन इसके लोकार्पण को लेकर जो चर्चायें हो रही हैं। जिसमें बार-बार राष्ट्रपति को घसीटा जा रहा है, वह लोकतांत्रिक मर्यादा के लिए ठीक नहीं है। हिंदुस्तान में चल रहीं इन बातों को विदेश के लोग भी सुन रहे होंगे। ऐसे में विपक्ष यह मानकर भी शान्त हो सकता है कि चलो छोड़ो, सभी सरकारें कुछ न कुछ अपने मन की करती ही हैं। पहले किसी और ने किया होगा, आज मोदी को मौका मिला है तो वो कर रहे हैं।
 

 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment