राजनीतिक दलों के चुनावी रेवड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- फ्री ऑफर कितना सही, बताए केंद्र
राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।
चुनावी रेवड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त |
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस संबंध में आनाकानी क्यों कर रही है। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है। इस पर वित्त आयोग से भी सुझाव लिया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार की माली हालत को देखकर वित्त आयोग फंड का आवंटन कर सकता है। वित्त आयोग राज्य सरकार के कर्ज का भार और मुफ्त में चीजें बांटने का तुलनात्मक अध्ययन कर सकता है। सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक रूप से इस पर काबू करना मुमकिन नहीं है। वित्त आयोग आवंटन के समय राज्य सरकार का कर्ज और मुफ्तखोरी के आकार को देखकर अपना निर्णय ले सकता है। वित्त आयोग एक उचित मंच है जो इस पर अपनी सही राय दे सकता है। अदालत भी वित्त आयोग से सुझाव ले सकती है।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्वाचन आयोग को ही निर्णय लेना है। केंद्र के रुख पर अदालत ने सख्त आपत्ति व्यक्त की। सीजेआई ने कहा कि आप साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि आपका इससे कोई लेना देना नहीं है। आप बताएं कि सरकार इसे एक गंभीर मुद्दा मानती है या नहीं। आप अपना स्टैंड लेने में आनाकानी क्यों कर रहे हैं। सरकार अपना विस्तृत हलफनामा दायर करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अगले हफ्ते इस पर फिर सुनवाई करेगा।
निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि चुनाव से पहले मतदाताओं से सरकारी खजाने से लुभावने वादे करने वाली राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार उसके पास नहीं है। चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना या बांटना संबंधित राजनीतिक दल का नीतिगत फैसला है। इस तरह का फैसला आर्थिक रूप से व्यावहारिक है या फिर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव वाला, यह संबंधित राज्य के मतदाताओं द्वारा विचार किया जाता है। निर्वाचन आयोग ने हलफनामे में कहा था कि सरकार बनाने वाले राजनीतिक दल की नीतियों और निर्णयों को चुनाव आयोग विनियमित नहीं कर सकता है। सरकारी खजाने के बदौलत लुभावने वादे करने वाले दलों की मान्यता रद्द करने की कार्रवाई उसके द्वारा किया जाना शक्तियों का दुरुपयोग होगा।
कहां-कहां मिला मुफ्त
- शुरुआत दक्षिण भारत से, मुफ्त चावल, टीवी आदि
- आंध्र प्रदेश : महिलाओं को मुफ्त धोती और 2 रुपए किलो चावल
- छत्तीसगढ़ में मुफ्त चावल
- उत्तर प्रदेश में मुफ्त लैपटॉप
- दिल्ली में 200 यूनिट बिजली, 20 हजार लीटर पानी फ्री, महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा
- पंजाब : 300 यूनिट बिजली फ्री
- झारखंड : 100 यूनिट बिजली मुफ्त
पंजाब के संदर्भ में दायर की गई थी जनहित याचिका
जनहित याचिका में राजनीतिक दलों के कथित तर्कहीन वादों को रित और अनुचित रूप से प्रभावित करने वाला बताया गया है। याचिका में राजनीतिक दलों के इन कथित तर्कहीन वादों को संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है।
इस वर्ष पांच राज्यों में हुए चुनावों से पूर्व दायर याचिका में वकील अनी उपाध्याय ने पंजाब के संदर्भ में दावा किया था कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए पंजाब सरकार के खजाने से प्रति माह 12 हजार करोड़ रुपए की जरूरत होगी, शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में आने पर उसके वादे पूरे करने के लिए प्रति माह 25 हजार करोड़ रुपए और कांग्रेस के सत्ता में आने पर उसके वादों के लिए 30 हजार करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी, जबकि सच्चाई यह है कि राज्य में जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ है।
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