कांग्रेस में बेचैनी, पार्टी सक्रिय कब होगी
कांग्रेस के भीतर इस बात की बेचैनी है कि संगठन को मजबूत करने के लिए पार्टी बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। नेता और कार्यकर्ता अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं।
कांग्रेस में बेचैनी, पार्टी सक्रिय कब होगी |
कुछ नेता तो दूसरे दलों में अपने लिए संभावनाएं भी तलाश रहे हैं। वरिष्ठ और कनिष्ठ दोनों तरह के नेता पार्टी हाईकमान पर बार-बार इस बात का दबाव बना रहे हैं कि नीचे तक के कार्यक्रम जल्द बनाए जाएं।
मूल संगठन के अधिक सक्रिय नहीं रहने का असर पार्टी के सहयोगी संगठनों और विभागों पर भी पड़ा है। कोरोना में युवक कांग्रेस के सिवा पूरी पार्टी की उपस्थिति जमीन पर कम ही नजर आई। संक्रमण में जब जनसामान्य को मदद की जरूरत थी तब पार्टी के जिला अध्यक्षों और जनप्रतिनिधियों को दिल्ली से कोई निर्देश ही नहीं दिए गए और न ही कोई रिपोर्ट ली गई।
पार्टी में पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता भी परेशान हैं कि उनके पास काम नहीं है, उनकी इससे भी बड़ी समस्या यह है कि वह निर्देश किससे लें। परोक्ष रूप से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सारे निर्देश देते हैं लेकिन उनकी उपलब्धता का संकट है। बहुसंख्यक नेता यही कहते हैं कि न वह सभी वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों के लिए आसानी उपलब्ध हैं और न वह राज्यों के विषय में दी गई सलाह पर बहुत अधिक गौर करते हैं। यह आम शिकायत है कि राहुल गांधी के यहां से पत्रों के संतोषजनक उत्तर भी नहीं मिलते। इसके लिए पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के दफ्तर के कर्मियों के व्यवहार को जिम्मेदार ठहराते हैं।
पिछले सात सालों में कांग्रेस से नेताओं ने पलायन ही अधिक किया है। कोई प्रमुख चेहरा पार्टी में शामिल नहीं हुआ। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि एकाध मामले को छोड़कर बाकी नेताओं और विधायकों को पार्टी छोड़ने से रोकने की कोशिश भी नहीं हुई। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, हमें कभी नहीं कहा गया कि भाजपा के असंतुष्टों को तोड़ा जाए जबकि भाजपा ने कांग्रेस के नेता ही नहीं तोड़े बल्कि राज्यों में सरकार छीनने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
उन्होंने कहा, आश्चर्य की बात यह है कि इस मसले पर कभी पार्टी के भीतर बात ही नहीं हुई। वरिष्ठ नेता ने कहा, शायद इसकी यह वजह रही होगी कि पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में बड़ी संख्या राहुल के करीबियों की रही।
संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की क्षमताओं को लेकर भी राज्यों में वरिष्ठ नेताओं के काफी सवाल हैं लेकिन वह राहुल के प्रिय हैं इसलिए कोई खुलकर कुछ नहीं बोलता। राज्यों के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि सकरुलर भेजने के सिवा उत्तर भारत के राज्यों में तो उनका संवाद न के बराबर ही है।
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