फाइल पर बैठने वाले अफसरों पर कभी नहीं होती कार्रवाई : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार अप्रसन्नता व्यक्त करने के बावजूद सरकारी प्राधिकारियों द्वारा अपील दायर करने में विलंब के अनवरत सिलसिले की कड़ी निंदा की है।
सुप्रीम कोर्ट |
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यह विडंबना ही है कि फाइल पर बैठने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने बंबई हाईकोर्ट के पिछले साल फरवरी के आदेश के खिलाफ उप वन संरक्षक की अपील खारिज करते हुए विलंब से अपील दायर करने के रवैए की निंदा की।
यही नहीं, पीठ ने ‘न्यायिक समय बर्बाद’ करने के लिए याचिकाकर्ता पर 15,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘यह विडंबना ही है कि बार-बार कहने के बावजूद फाइल पर बैठने और कुछ नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।’
पीठ ने कहा, ‘इस मामले में तो अपील 462 दिन के विलंब से दायर की गई और इस बार भी इसकी वजह अधिवक्ता की बदला जाना बताई गई है। हमने सिर्फ औपचारिकता के लिए इस न्यायालय आने के बार बार राज्य सरकारों के इस तरह के प्रयासों की निंदा की है।’
शीर्ष अदालत ने इसी साल अक्टूबर में ऐसे ही एक मामले में सुनाए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उसने ‘प्रमाणित मामलों’ को परिभाषित किया है जिसका मकसद प्रकरण को इस टिप्पणी के साथ बंद करना होता है कि इसमे कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि शीर्ष अदलत ने अपील खारिज कर दी है।
| Tweet |