बुधवार को भारत की धरती चूमेगा राफेल
बुधवार 29 जुलाई को भारतीय वायुसेना के गौरवशाली इतिहास में एक और पन्ना लिखा जाएगा, जब पांच राफेल लड़ाकू विमान अम्बाला के एयर बेस की धरती को चूमेंगे।
आज भारत की धरती चूमेगा राफेल |
राफेल के लिए ही 17 स्क्वाड्रन यानी गोल्डन ऐरो स्क्वाड्रन को पुनर्जीवित किया गया है। गोल्डन ऐरो स्क्वाड्रन ने दो बार पाकिस्तान के दांत खट्टे किए और एक बार गोवा मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लिया।
27 जुलाई को फ्रांस के मेरिगनेट एयरबेस से पांच राफेल विमानों ने उड़ान भरी थी जो रात को सऊदी अरब के अल दफरा हवाई अड्डे पर उतरे थे। विश्राम के बाद अब वह बुधवार सुबह सऊदी से उड़ान भरेंगे और बुधवार को ही दिन में एक से तीन बजे के बीच अंबाला एयरबेस पर उतर जाएंगे। राफेल के स्वागत के लिए लिए अंबाला एयरबेस पर विशेष प्रबंध किए गए हैं। एयरबेस के आसपास से पक्षियों को दूर रखा जा रहा है। लोगों से अपील की जा रही है कि छतों में पक्षियों के लिए दाना-पानी न रखें। 2016 में जगुआर की लैंडिंग के समय पक्षियों का एक झुंड जगुआर के सामने आ गया था, जिससे बचने के लिए पायलट ने तेल के टैंक गिरा दिये थे। वायुसेना की 17 स्क्वाड्रन यानी गोल्डन एरो स्क्वाड्रन को 1951 में अंबाला में ही तैयान किया गया था। पांच और 14 स्क्वाड्रन में ागुआर और 21 में मिग-21 शामिल हैं।
गोल्डन एरो का गौरवशाली इतिहास रहा है। गोल्डन एरो 17 स्क्वाड्रन ने 1961 में गोवा लिब्रेशन कैंपेन में हिस्सा लिया था। इस स्क्वाड्रन ने 1965 और 1971 के युद्धों में अपने जौहर दिखाते हुए पाकिस्तान के दांत खट्टे किये थे और करगिल युद्ध के दौरान भी इस स्क्वाड्रन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में भी अम्बाला एयरबेस का इस्तेमाल किया गया था। अम्बाला एयरबेस की शुरुआत 1938 में स्टेशन हेडक्वार्टर के रूप में हुई थी। वर्ष 1951 से 1954 के बीच एयरफोर्स में 307 विंग की तैनाती की गई थी। कुछ समय बाद सेवन विंग स्थापित की गई, जो अभी भी मौजूद है। इसी स्थान में 1948 में फ्लाइंग इंस्ट्रक्शन स्कूल भी रहा, लेकिन 1954 में इसे चेन्नई के नजदकी तंबरम शिफ्ट कर दिया गया।
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