एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह का निधन

Last Updated 16 Sep 2017 09:44:52 PM IST

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह का आज शाम दिल्ली में सेना के रिसर्च एवं रेफेरल (आर आर) अस्पताल में निधन हो गया.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अस्पताल में बीमार एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह को देखने पहुंचे थे.

वह 98 वर्ष के थे और सुबह दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

वह 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भारतीय सेना के प्रमुख थे जिसमें भारत की विजय में वायु सेना का योगदान अतुलनीय माना जाता है. वह स्विजरलैंड में भारत के राजदूत और केन्या में उच्चायुक्त पद पर रहे थे. उन्हें 1965 के युद्ध में बेहतरीन नेतृत्व करने के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

अर्जन सिंह को आज सुबह दिल का दौरा पड़ा और उन्हें गंभीर हालत में सेना के आर आर अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

उनकी अस्वस्थता की जानकारी मिलते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अस्पताल जाकर उनका हालचाल पूछा था और शीध्र स्वस्थ होने की कामना की थी.

अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को अविभाजित पंजाब के लयालपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा मोंटगोमैरी से पूरी की थी. 1938 में जब वह कॉलेज में थे तो मात्र 19 वर्ष की अवस्था में उनका चयन रॉयल एयरफोर्स क्रेनवैल में एम्पायर पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए हो गया था और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उन्होंने भारतीय वायु सेना की नम्बर वन स्क्वाड्रन का 1944 में अराकान अभियान के दौरान नेतृत्व किया था.

उन्हें 1944 में स्क्वाड्रन लीडर के रूप में पदोन्नति मिली और इम्फाल अभियान तथा बाद में बर्मा के रंगून में मित्र देशों की सेनाओं के अभियान में उन्होंने हिस्सा लिया. उनके बेहतरीन नेतृत्व को देखते हुए 1944 में उन्हें प्रतिष्ठित फ्लांइग क्रॉस से सम्मानित किया गया.

पन्द्रह अगस्त 1947 को उन्होंने लाल किले के ऊपर वायु सेना के सौ से अधिक विमानों के फ्लाइ पास्ट का नेतृत्व किया जो अपने आप में एक विशिष्ट सम्मान था. देश की आजादी के बाद उन्होंने ग्रुप कैप्टन के रूप में अम्बाला एयर स्टोशन की कमान संभाली और 1949 में एयर कोमोडोर की रैंक पर पदोन्नत होने के बाद वह संचालन कमान के वायु कमांडिंग अधिकारी नियुक्त किये गये जो बाद में पश्चिमी वायु कमान के नाम से जानी गयी.



उन्हें 1949-1952 और 1957-1961 के दौरान संचालन कमान का सबसे लम्बे समय तक एओसी होने का गौरव प्राप्त है. 1962 में भारत-चीन युद्ध की समाप्ति के बाद वह एयर स्टाफ के डिप्टी चीफ नियुक्त किये गये और 1963 में उन्हें एयर स्टाफ का वाइस चीफ बनाया गया.

अर्जन सिंह को एक अगस्त 1964 को एयर मार्शल की रैंक में चीफ ऑफ एयर स्टाफ बनाया गया और वह पहले वायु सेना प्रमुख थे जिन्होंने चीफ ऑफ एयर स्टाफ की रैंक में भी नियमित तौर पर उडान जारी रखी. द्वितीय विश्व युद्ध के पहले के बाईप्लेन से लेकर ग्नाट्स और वेंपायर जैसे समकालीन आधुनिक प्रकार के 60 से अधिक विभिन्न लडाकू विमानों में उडान भरने का गौरव हासिल है.

सितंबर 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब रक्षा मंत्री कार्यालय ने वायु सेना की मदद का आग्रह करते हुए उनसे पूछा कि भारतीय वायु सेना अपने अभियान में कितने समय में तैयार हो जायेगी तो उनका जवाब था एक घंटा और अपने शब्दों पर खरा उतरते हुए भारतीय वायु सेना ने मात्र एक घंटे में पाकिस्तानी हमले का करारा जवाब दिया और इस युद्ध में उन्होंने भारतीय वायु सेना की अगुवाई कर बेमिसाल नेतृत्व का परिचय दिया.     

वह जुलाई 1969 में सेवानिवृत्त हो गये और इसके बाद उन्हें स्विजरलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया. उनकी विशिष्ट सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें जनवरी 2002 में मार्शल ऑफ द एयरफोर्स की पदवी से सम्मानित किया गया जो भारतीय वायु सेना के पहले पांच सितारा रैंक के अधिकारी का दर्जा है.      

भारतीय वायु सेना ने 2016 में पश्चिम बंगाल के पानागढ़ वायु स्टेशन का नाम सम्मान के तौर पर एयरफोर्स स्टेशन अर्जन सिंह रखा था. उनके निधन से भारतीय वायु सेना के गौरवपूर्ण युग का अंत हो गया और आने वाली पीढ़ियों के लिए वह प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे.

वार्ता


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