दूध में मिलावट करने वालों को मिले उम्रकैद: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मिलावटी दूध को लेकर बने मौजूदा कानून बहुत नरम हैं. राज्य सरकारें मिलावटी दूध के खतरों को बहुत हल्के में ले रही हैं.
दूध में मिलावट करने वालों को मिले उम्रकैद (फाइल फोटो) |
मौजूदा कानून इस अपराध से निपटने के लिए अपर्याप्त है. कानून में अपराधियों की सजा बहुत ही कम है. ऐसे में राज्य सरकारों को उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की तर्ज पर कानून में संशोधन कर कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए. इस अपराध में अधिकतम सजा आजीवन कारावास किए जाने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिंथेटिक दूध में मिलाए जाने वाले तत्व मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. इसके बावजूद सरकारें लापरवाह हैं.
अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 272/273 और खाद्य सुरक्षा अधिनियम मिलावट के मामलों से निपटने के लिए काफी नहीं है. ऐसे में यूपी और पश्चिम बंगाल की तरह राज्य सरकारों को कानून में संशोधन कर उम्रकैद की सजा का प्रावधान करना चाहिए. राज्य सरकारों के जवाब पर असंतोष व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश और पंजाब को विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.
राज्यों को अपने जवाब में मिलावट का अपराध करने वालों के खिलाफ की जाने वाली आपराधिक कार्रवाई का ब्यौरा पेश करना है. जस्टिस केएस राधाकृष्णन और एके सीकरी की बेंच के समक्ष याची के वकील ने कहा कि खाद्य सुरक्षा के लिए बनाए गए अधिनियम और आईपीसी की धाराओं के तहत दूध में मिलावट करने वालों के खिलाफ सिर्फ छह माह की सजा का प्रावधान है. इसी वजह से सिंथेटिक दूध का उत्पादन करने वालों को कानून का कोई डर नहीं है.
बेंच ने यूपी सरकार की ओर से पेश हुए खाद्य विभाग के प्रमुख सचिव और अन्य राज्यों की ओर से पेश हुए खाद्य आयुक्तों से इस बारे में पूछताछ की. दिल्ली के आयुक्त ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सिंथेटिक दूध का कोई नमूना नहीं मिला है. तब याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और एफएसएसएआई और कई वैज्ञानिक परीक्षणों का हवाला दिया.
उन्होंने कहा कि एफएसएसएआई की रिपोर्ट में जनवरी 2011 में 33 राज्यों से 1791 नमूने लिए गए. इनमें 147 दूध में डिटर्जेंट पाया गया.
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